डॉक्टर अनीता शर्मा
आखिरकार वह घड़ी आ ही गई जिसकी चिर प्रतिक्षित प्रतीक्षा करोड़ों भारतीय पिछली पाँच शताब्दियों से कर रहे थे । वर्षों की भक्त पिपासु प्रतीक्षा, विभिन्न स्तर के संघर्ष और साधकों की साधना का ही यह फल है कि आज करोड़ों सनातनी भारतीयों का स्वप्न साकार होने जा रहा है । 5 अगस्त 2020 को द्वारा माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा रामलला की इस चिर अभिलाषित इस भव्य मंदिर की आधारशिला रखी जाएगी । हमारी पीढ़ियां भाग्यशाली है जिन्हें इस शुभ अवसर को देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा। प्रतीक्षा में पाँच सदियाँ बीत गई अपने ही देश में अपनी भूमि पर, जिसके लिए इतिहास गवाह है वहां राम को राम की जन्म भूमि का प्रमाण देना पड़ा । इस जन्म भूमि की मुक्ति के लिए बहुत बड़ा संघर्ष करना पड़ा भक्तों को तब जाकर उनकी यह अभिलाषा पूरी होने जा रही है।
यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि भारतीय राजनीति में हमेशा से सांप्रदायिक तुष्टिकरण की भावना रही है और राजनीतिक भावनाएं इतनी दृढ़ नहीं रही किसी भी प्रकार का निर्णय इस तरह लोगो की भावना को लेकर लिया जा सके।इतिहास की बात करें तो भारतीय संस्कृति सबसे पुरानी है । यही वह संस्कृति है जिसने समय समय पर अपने यहाँ आए अपने हर शरणार्थी को शरण दी है । और नतीजा यह हुआ की लोगों ने अपने ही घर में हमें बेघर कर दिया । इतिहासकारों के अनुसार अयोध्या को भगवान श्री राम के पूर्वज विवस्वान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था और तभी से इस नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का शासन महाभारत काल तक रहा। प्रभु श्री राम का जन्म यहीं हुआ और वाल्मीकि रामायण में प्रभु श्रीराम के जन्म की ,उनकी बाललीलाओं की सुंदर जानकारी है उसमें यह भी वर्णित है कि अयोध्या नगरी की छटा किस तरह इंद्रलोक की तरह मिलती जुलती थी। जहां साक्षात ईश्वर का अवतरण हुआ हो उस पावन पुनीत धरती के क्या कहने। जहां प्रभु के चरण रज जहां पड़े वहाँ चारों ओर खुशियां ही खुशियाँ फैल गयी। चारों ओर खुशहाली थी,और जिस राज्य की कल्पना हम करते हैं वह राम राज्य था। जब श्रीराम ने जल समाधि ली तब भी कुछ काल के लिए उजड़ी उजड़ी सी हो गयी। पुनः भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने एक बार राजधानी अयोध्या का निर्माण कराया और सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियां यहां राज करती रही। इसके साक्ष्य सरयू नदी और अयोध्या नगरी आज भी है । कालांतर में चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा अयोध्या में सरयू नदी के किनारे अपनी सेना के साथ एक यात्रा के क्रम में विश्राम करने पर इस चमत्कारिक भूमि का अनुभव किया गया और उन्हें पता चला कि यह श्रीराम जी अवध भूमि है ।वहां उन्होंने श्री राम जन्मभूमि के स्थान पर काले रंग के पत्थरो से वाले 84 स्तंभों का विशाल मंदिर बनवाया। विक्रमादित्य के बाद इस मंदिर की देखभाल समय-समय पर विभिन्न वंश के राजाओं ने की ।उसके बाद यह पांचवीं शताब्दी में यह साहित्य के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हुई। उसके पश्चात यहाँ मगध के मौर्यों,गुप्तों,एवं कन्नौज के शासकों ने शासन किया ।महमूद गजनी और तैमूर के आक्रमण के बाद निरंतर भारतवर्ष पर आक्रांताओं का आक्रमण होता रहा और आक्रमणकारियों ने विभिन्न जगहों पर लूटपाट की मूर्तियों को तोड़ने का क्रम जारी रखा। लेकिन यह अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो सके।
इतिहास गवाह है कि मुगल शासक बाबर 1526 में पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद भारत में अपना पांव पसारने लगा 1528 में वह वर्तमान अयोध्या तक पहुंचा और बाबर के सेनापति मीर बाकी में 1528 में एक मस्जिद का निर्माण कराया । 500 साल से मंदिर और मस्जिद का विवाद चल रहा था। यह सत्य है कि जो ढांचा ढहाया गया वही भगवान राम का जन्म स्थान है, और यह हिंदुओं की आस्था का निर्विवाद सत्य है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार मीर बाकी में जो मस्जिद का निर्माण कराया था वह खाली जमीन पर नहीं बनाई गई और मस्जिद के नीचे जो ढांचा था वह इस्लामिक ढांचा नहीं था। सोलहवीं शताब्दी का ढांचा जो हिंदू कारसेवकों ने ढहाया था वहां पर राम वे मंदिर बनाना चाहते थे ।धर्म और आस्था पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को धर्म और श्रद्धालुओं की आस्था को स्वीकार करना चाहिए ।अदालत को संतुलन बनाए रखना चाहिए। हिंदू इस स्थान को भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। मुस्लिम भी विवादित जगह के बारे में यही कहते हैं और प्राचीन इतिहास के ग्रंथ यह दर्शाते हैं कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है तो सारे के सारे ऐतिहासिक उदाहरणों से यह संकेत मिलता है कि हिंदुओं की आस्था में अयोध्या की राम जन्म भूमि यहीं है और यहां पर सीता रसोई, राम भंडार ग्रह की मौजूदगी स्थान की धार्मिक वास्तविकता के सबूत है ।
अयोध्या विवाद एक राजनीतिक ऐतिहासिक और सामाजिक धार्मिक विवाद है जो 90 के दशक में सबसे ज्यादा ज़ोर पर था। जिस विवाद का मूल मुद्दा राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर था ।विवाद इस बात को था कि वहां पर हिंदू मस्जिद को ध्वस्त कर मस्जिद बनाई गई थी और इसी से बाबरी मस्जिद को कार्य सेवकों द्वारा 6 दिसंबर 1992 को ध्वस्त कर दिया गया। इस ढांचे को ध्वस्त करने के बाद ही समूचे भारत में मानो दंगा हुआ और अव्यवस्था फैल गई। इसके बाद राम मंदिर के निर्माण हेतु कोर्ट में इसका केस दर्ज हुआ , इस केस की सुनवाई भी हुई ।लेकिन जो फैसला 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सुनाया था, इलाहाबाद हाईकोर्ट में 2.77 एकड़ जमीन को बंटवारा कर दिया और कोर्ट ने यह जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान जमीन के बीच बांटने का आदेश दिया गया। यह फैसला सर्वमान्य नहीं हुआ ।हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी गई ।वह । पुनः सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी और तब जाकर 9 नवंबर 2019 को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को हटा दिया एवं यह फैसला लिया गया कि सारी पुरानी याचिकाओं को खारिज किया जाए और विवादित स्थल को मंदिर का स्थल ही माना जाए । वह विवादित भूमि राम जन्मभूमि मानी गई। इसमें मस्जिद के लिए अयोध्या में 5 एकड़ जमीन देने का आदेश सरकार को दिया गया । एक ट्रस्ट बनाकर उस विवादित स्थल पर, राम जन्म भूमि पर , श्री राम के मंदिर का निर्माण का रास्ता साफ हो गया
आज पुनः करोड़ों भारतीय के सहयोग से अयोध्या 500 वर्षों के बाद राम के राजतिलक की तैयारी में है।ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वास्तव में श्रीराम का वनवास अब समाप्त हुआ है और यह शुभ घड़ी करीब आ रही है दीवारों पर राम कि लीलाओं के चित्र अंकित किए जा रहे हैं। भगवाधारी योगी आदित्यनाथ के हाथ में राम मंदिर की भूमि पूजन का सुख है। वह खुद राम मंदिर अनुष्ठान के साधक रह चुके हैं। राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का उत्सव राम नगरी के मठ मंदिरों में शुरू हो चुका है और ठीक उसी प्रकार यहां तैयारी हो रही है मानो कि सचमुच राम वनवास से लौट रहे हो सभी गलियां चौक चौराहे स्वच्छ किए जा रहे हैं ,धर्म स्थलों पर रंगाई पुताई चल रही है पूरी अयोध्या में राम धुन बजाई जा रही है । 5 अगस्त 2019 को दीपावली की तैयारी की जा रही है ।5 अगस्त को राम मंदिर की भूमि पूजन का कार्यक्रम है बुलंदशहर से राम मंदिर की आधारशिला में लगाने के लिए चांदी की ईंट भेजी जा रही है ।अयोध्या में 2 दिन तक दिए जलाए जाएंगे मंदिरों में लाइटिंग की जाएगी क्योंकि अभी कोरोना का यह काम चल रहा है इसलिए भक्तों से आग्रह किया गया है कि वह सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे और अपने अपने घरों में रहकर ही इस भव्य उत्सव को देखेंगे। राम जन्मभूमि पर 2 दिन तक दीपावली मनाई जाएगी 4 अगस्त को दीपदान का कार्यक्रम किया जाएगा। भारत के विभिन्न पवित्र जगहों से मिट्टी और जल एकत्रित किया जा रहा है इन मिट्टी और जल को गर्भगृह की नींव में रखा जाएगा शिलान्यास कार्यक्रम के लिए भगवान श्री राम की आराध्य नगरी काशी से आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में चांदी के पांच बेलपत्र और सवा पाव चंदन मंगाया गया है बाबा विश्वनाथ को अर्पित रजत बेलपत्र और चंदन मंदिर की नींव में पांच रजत शिलाओं के साथ रखा जाएगा।
संभवत 5 अगस्त 2020 का भूमि पूजन व शिलान्यास न केवल मंदिर का शिलान्यास होगा । बल्कि एक नए युग का शिलान्यास होगा । वह युग जहां राम से मर्यादा पुरुषोत्तम का शासन होगा ।यह विख्यात है कि राम मर्यादा के साक्षात प्रतिमान, पुरुषोत्तम और अवधपुरी के प्राण प्रिय रहे हैं। वहां पर पुनः एक युग जो रामराज्य हो उसका उसकी शुरुआत होने जा रही है।
डॉ अनीता शर्मा
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