सिक्कों की खनक पर नाचते हैं जमशेदपुर अक्षेस के विशेष पदाधिकारी?
गौरव ‘हिन्दुस्तानी’:-
जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति में अनियमितता, लापरवाही और राजस्व के मामले की जाँच के निर्देश मिलने के बाद भी जहाँ अभी तक कोई जाँच रिपोर्ट सामने नहीं आई है, वहीं जमशेदपुर अ.क्षे.स. में घोटाले और राजस्व की हानि के कई मामले उजागर होने की खबर आ रही है। खबर उजागर होने के बाद से ही विशेष पदाधिकारी आपा खोने लगे हैं पिछले दिनों सिटी मैनेजर के साथ हुए व्यवहार को पूरे झारखंड ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान देखा है राष्ट्र संवाद की पड़ताल में यह सिद्ध होने लगा है कि पूर्व में भी इनके कार्यकाल में जमशेदपुर के मंत्री विधायकों को आपस में उलझाने का काम इन्होंने किया है अब ताजा प्रकरण सामुदायिक भवन के तालाबंदी को लेकर सामने आने लगी है जो बातें उभर कर सामने आ रही है वह है कि अक्षेस के विशेष पदाधिकारी को मंञी, विधायक व उपायुक्त को अंधेरे में रखने में महारथ हासिल है!
गौरतलब हो कि 90 दिन से ज्यादा वक्त गुजरने के बाद भी फ़ाइल अभी तक लम्बित है।अवैध निर्माण और नक्शा विचलन में करवाई के आदेश जहाँ फाइलों से निकल कर धरातल पर नहीं आई है, वहीं सामुदायिक भवन में तालाबन्दी के मामले में पूर्वी और पश्चिम सिंहभूम के विधायक को बदनाम किया जा रहा है। पूर्वी में सामुदायिक भवन में तालाबन्दी का कारण पूछने पर विधायक सरयू राय और पश्चिम के कुछ क्षेत्र में विधायक बन्ना गुप्ता के कहने पर सामुदायिक भवन में ताला लगाया गया है ये कह कर उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही। अब ये किसी गंदी राजनीति का खेल है या विधायक के आड़ में बचने का प्रयास इसका पता लगना बाकी है।
सूत्रों के हवाले से जो आंतरिक खबर सामने आई है वो जमशेदपुर अ.क्षे.स में घोटाले और लापरवाही की एक नई कहानी पेश कर रही है। जमशेदपुर अ.क्षे.स के अंतर्गत साल 2016 से 2019 तक दुकान किराया और बंदोबस्ती की राशि से सेवाकर/जीएसटी की वसूली नहीं होने पर सरकार को लगभग 86 लाख के राजस्व की हानि हुई है। सूत्रों से यहाँ तक पता चला है कि एकरारनामा सेवाकर/जीएसटी में जो सरकार द्वारा कटौती की गई थी उसे जोड़ा गया है परंतु इसकी वसूली बन्दोबस्तिधारी और दुकान किरायेदारों से की गई है, जो साफ तौर पर किसी बड़े घोटाले की ओर इशारा कर रही है। आपको बता दे कि भारत सरकार द्वारा मई 2007 में जारी अधिसूचना में अनुछेद 65(105) में प्रावधान किया गया कि जून 2007 से अचल संपत्ति से किराया के रूप में सालाना 10 लाख या अधिक की प्राप्ति होती है तो सेवा प्रदाता द्वारा केंद्र उत्पाद सेवा कर का भुगतान किया जाएगा, लेकिन जुलाई 2017 से पूरे देश भर में जीएसटी लागू होने के बाद अचल संपत्ति से किराया के रूप में सालाना 10 लाख की सीमा को बढ़ाकर 20 लाख कर दिया गया था और प्राप्त राशि में जीएसटी की दर 18 प्रतिशत की गई थी।
इसके अलावा स्टाम्प ड्यूटी और निबंधन शुल्क की वसूली और एकरारनामा के भी कई सच सामने आए हैं, जिसके तहत सरकार को लगभग 33 लाख के राजस्व की हानि पहुँची है। ज.अ.क्षे.स के अंतर्गत किसी भी बंदोबस्ती के लिए किए गए एकरारनामा का निबंधन नहीं किया गया था। बंदोबस्ती की मूल्य पर 4 प्रतिशत स्टाम्प ड्यूटी और 3 प्रतिशत निबंधन शुल्क बंदोबस्ती करने वाले किसी भी व्यक्ति या ठेकेदार से नहीं किया गया। यहाँ तक कि सिर्फ एक बन्दोबस्तिधारी से एकरारनामा किया गया था वो भी मात्र 4 महीने का, बाकी किसी से कोई एकरारनामा नहीं किया गया। अब इसे लापरवाही कहती है या घोटाला ये तो जाँच रिपोर्ट बताएगी।
लापरवाही या घोटाला करने वाले की भूख इतनी थी कि कर्मचारी भविष्य निधि मद में कर्मचारी के वेतन में से अक्टूबर 2018 से मार्च 2019 तक कटौती की गई लगभग 9.5 लाख राशि भी उनके खाते में दिसम्बर 2019 तक जमा नहीं कि गयी। जिसकी वजह से कर्मचारियों को बचत खाते पर देय ब्याज का नुकसान हुआ, इसकी भरपाई ज.अ.क्षे.स करेगी, जहाँ पर लापरवाही और घोटालों की लिस्ट ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है ?
लापरवाही या घोटाले की हद इस कदर टूट रही है कि जहाँ आम जनता से वाहन पार्किंग के पैसे हर जगह वसूली जा रही है वहीं पार्किंग ठेकेदार द्वारा नवम्बर 2017 से जून 2019 तक का बकाया राशि 14 लाख दिसम्बर 2019 तक जमा ही नहीं कराया गया। इस लापरवाही की जिम्मेदारी आखिर किसके सर जाएगी जो आम जनता से वसूल करने के बाद भी सरकार को राजस्व में हानि पहुँचा रहे हैं।
जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के अंतर्गत सबसे बड़ा कारनामा तो ये हुआ कि भारत सरकार द्वारा जनवरी 2014 में शुरू की गई राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन द्वरा प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लाभार्थी ही गायब हो गए। सूत्रों द्वारा पता चला कि झारखंड सरकार ने कुल 23 एजेंसी को प्रशिक्षण हेतु चुना था और जिसके लिए लगभग 1498 लाख का एकरारनामा हुआ था और सरकार द्वारा 4 चरणों में इन पैसों को दिए जाने की बात कही गयी थी। इस एकरारनामा के अंतर्गत प्रथम चरण में 9 एजेंसी को तक़रीबन 125 लाख और दूसरे चरण में मात्र 7 एजेंसी को लगभग 215 लाख का भुगतान किया गया था। लेकिन तीसरे और चौथे चरण में किसी भी एजेंसी को कोई भुगतान नहीं किया गया, तो आखिर इसके पीछे माज़रा क्या था ?
आपको बता दें कि सरकार द्वारा पैसे दिए जाने के जो नियम थे उसके अनुसार प्रथम चरण में प्रशिक्षण केंद्र स्थापित होने और प्रशिक्षण शुरू होने पर 30% दिया जाता, दूसरे चरण में प्रशिक्षण की कुल अवधि का दो तिहाई पूर्ण होने पर 70% प्रशिक्षु का होना और उनका 75% उपस्थिति होने पर 30% दिया जाता। वहीं तीसरे चरण में प्रशिक्षण पूरी होने पर 20% और कुल प्रशिक्षु का 70% के प्लेसमेंट होने पर 20% दिया जाता। अब साफ तौर पर देखा जा सकता है कि किस तरह घोटालों की खान में तीसरे और चौथे चरण पर प्रशिक्षु गायब हो गए। सवाल ये उठता है कि इतने बड़े घोटाले के समय क्या उस समय की मौजूदा सरकार सो रही थी ? क्या उन्हें इस बात का जरा भी आभास नहीं हुआ या उन्होंने ये जानने की चेष्टा ही नहीं की कि लाखों रुपये जो दो चरण में दिए गए उसके बाद प्रशिक्षुओं का क्या हुआ, क्यों उन्हें प्रशिक्षण प्राप्त करने का प्रमाण पत्र नहीं दिया गया, क्यों उनका प्लेसमेंट कहीं नहीं किया गया ? क्यों प्रशिक्षण केंद्र ने तीसरे और चौथे चरण का पैसा नहीं माँगा ?
इन सवालों का जवाब और जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के अंर्तगत हुए लापरवाही और घोटाले का राज जाँच कमेटी द्वारा दिये जाने वाली जाँच रिपोर्ट से ही पता चलेगा।
*खुलासा जमशेदपुर अक्षेस भाग 01*
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