कविता:कोरोना का कमाल
कवि:गुरुचरण महतो(जमशेदपुर)
घरों में कैद मानव-जात
प्रार्थना को उठ रहे हैं हाथ,
सीमित साधन में जी रहे सब
लेकर-देकर निभा रहे साथ।
एक वायरस ने कर दिया बवाल
पूछ रहे सब,एक-दूसरे का हाल
वाह रे वाह! कोरोना का कमाल।।
नदी-नाले में स्वच्छ व निर्मल
कल-कल करके बह रही जल,
दूर से दिख रही पहाड़ की चोटी
चल रही हवा, शुद्ध-अविरल।
बाकी योजनाओं की क्या है मजाल
लाॅकडाउन का देखो यह है धमाल
वाह रे वाह! कोरोना का कमाल।।
शांत नीले अंबर के तले
जीव जंतु बेफिक्र हैं चले,
पत्तियों की सरसराहट में
पंक्षियों ने फिर स्वर हैं घुले।
बाकी सब को कराके मलाल
प्रकृति रही अब खुद को संभाल
वाह रे वाह! कोरोना का कमाल।
वाह रे वाह! कोरोना का कमाल।।