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    Home » “सैनिकों का सम्मान: समर्पण और बलिदान की पहचान”
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    “सैनिकों का सम्मान: समर्पण और बलिदान की पहचान”

    News DeskBy News DeskMay 8, 2025No Comments5 Mins Read
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    हमारे सैनिक, जो सीमाओं पर अपने प्राणों की बाजी लगाते हैं, हमारे असली नायक हैं। युद्ध की आशंका में लौटते सैनिकों को ट्रेन में सीट दें, सड़क पर मिलें तो अपने वाहन से आगे छोड़ें, और होटलों में निशुल्क ठहरने की सुविधा दें। उनका सम्मान हमारा कर्तव्य है, न कि महज़ औपचारिकता। जहाँ भी मिले, सलाम करें – देश में इनसे बढ़कर कुछ नहीं। देवताओं के लिए भंडारे लगाते हो तो इन सैनिकों को भी माँ जैसा सम्मान दो। कहना कि ये तो सरकारी तनख्वाह लेते हैं, एक अपराध है। तनख्वाह सभी कर्मचारी लेते हैं, लेकिन ये अपने जीवन की बाजी लगाते हैं, अपने घर-परिवार से दूर रहते हैं, और हमारी सुरक्षा के लिए हर कठिनाई सहते हैं। आइए, इस परंपरा को मजबूत करें और सैनिकों का मान बढ़ाएं। जय हिंद!

     

    -डॉ. सत्यवान सौरभ

     

    हमारे देश के सैनिक, जो सीमाओं पर अपने प्राणों की आहुति देकर हमारी रक्षा करते हैं, केवल वर्दी का बोझ नहीं उठाते, बल्कि वे हमारे चैन और स्वतंत्रता की सुरक्षा का भी भार संभालते हैं। ऐसे वीरों का सम्मान हमारा नैतिक और सामाजिक कर्तव्य है। यह केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय चरित्र का मूल आधार होना चाहिए।

     

    सैनिकों का बलिदान: एक अविस्मरणीय सेवा

     

    सीमाओं पर खड़े सैनिक केवल गोलीबारी और बर्फीली तूफानों का सामना नहीं करते, वे उन अदृश्य दुश्मनों से भी लड़ते हैं, जो हमारे चैन और सुरक्षा के पीछे छिपे हैं। वे अपनी जान जोखिम में डालकर आतंकवाद, घुसपैठ और प्राकृतिक आपदाओं से हमें सुरक्षित रखते हैं। इनका जीवन एक स्थायी संघर्ष है – न दिन का पता, न रात का चैन।

     

    कल्पना कीजिए, जब हम त्योहारों पर अपनों के बीच हँसते-गाते होते हैं, तब वे बर्फ से ढके पहाड़ों पर, तपती रेत में या समुद्र की उफनती लहरों से जूझते हैं। वे अपनी जान हथेली पर रखकर देश की अखंडता और स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।

     

    यात्रा में सैनिकों का सम्मान

     

    अगर किसी ट्रेन में बिना रिजर्वेशन के खड़े सैनिक नजर आएं, तो अपने सीट का छोटा सा त्याग कर उन्हें बैठने का सम्मान दें। यह न केवल उनके प्रति सम्मान है, बल्कि उनके साहस और बलिदान की कद्र है। वे वे लोग हैं जो सीमा पर खड़े रहकर हमें चैन की नींद सुलाते हैं। यह छोटी सी पहल उनके साहस का सम्मान है।

     

    सड़क पर दिखें तो मदद करें

     

    अगर सड़क पर सैनिक अपने गंतव्य की ओर जाते दिखें, तो अपने वाहन में उन्हें अगले मुकाम तक छोड़ने में संकोच न करें। यह न केवल उनके प्रति सम्मान है, बल्कि हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी है।

     

    रहने और खाने की सुविधा

     

    होटलों, ढाबों और रेस्तरां में अगर कोई सैनिक ठहरने आए तो उसे निशुल्क रहने और खाने की सुविधा दी जानी चाहिए। यह एक छोटा सा योगदान है, लेकिन इसके माध्यम से हम अपने सैनिकों को यह महसूस करवा सकते हैं कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है। उनके लिए हर दरवाजा खुला रहे, हर रास्ता आसान हो।

     

    सैनिकों के परिवारों का सम्मान

     

    सैनिकों के परिवार भी इसी सम्मान के हकदार हैं, जो अपनों को सीमाओं पर भेजकर राष्ट्र सेवा में अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दे रहे हैं। उनका सम्मान करना भी उतना ही आवश्यक है जितना सैनिकों का। ये परिवार भी अपनी कठिनाइयों को सहते हुए अपने सैनिकों को मानसिक और भावनात्मक समर्थन देते हैं।

     

    सैनिकों के सम्मान की नई परंपरा

     

    हमारे समाज में त्योहारों और विशेष अवसरों पर हम देवताओं का पूजन, भंडारे और कीर्तन करते हैं, लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि वे सैनिक, जो हमारी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सीमा पर लड़ते हैं, उनके लिए क्या किया? क्या हम उनके लिए भी एक नई परंपरा की शुरुआत नहीं कर सकते? जैसे हर शहर, हर गाँव में सैनिकों के सम्मान में छोटे-बड़े समारोह हों, स्कूलों और कॉलेजों में ‘सैनिक सम्मान दिवस’ मनाया जाए, जहाँ उनके साहस की कहानियाँ सुनाई जाएँ।

     

    सरकारी सहायता और नागरिक पहल

     

    सरकार और नागरिक समाज को मिलकर सैनिकों के सम्मान को एक राष्ट्रीय परंपरा बनाना चाहिए। इसके लिए स्थानीय संगठनों, सामाजिक समूहों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे सैनिकों को विशेष सुविधाएं दें। उदाहरण के लिए, होटलों में उनके ठहरने की व्यवस्था, रेस्तरां में भोजन और परिवहन में रियायतें दी जा सकती हैं।

     

    एक नई परंपरा की शुरुआत

     

    आइए, हम एक नई परंपरा की शुरुआत करें, जहां हर सैनिक को उसकी बहादुरी और त्याग के लिए सर्वोच्च सम्मान दिया जाए। यह न केवल हमारे राष्ट्रीय चरित्र का प्रतीक होगा, बल्कि हमारे समाज की एक सकारात्मक छवि भी प्रस्तुत करेगा।

     

    सैनिकों के प्रति हमारा सम्मान केवल भाषणों और नारों तक सीमित न रहे। यह हमारे व्यवहार और आचरण में झलकना चाहिए। हमारे सैनिक हमारे असली नायक हैं, और उन्हें हर कदम पर सम्मानित करना हमारा कर्तव्य है।

    हमारे सैनिकों का बलिदान और उनके द्वारा किए गए संघर्षों का मूल्यांकन केवल शब्दों से नहीं किया जा सकता। वे हमारे असली नायक हैं, जो बिना किसी शिकायत के अपनी जान की बाजी लगाकर हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं। उनका सम्मान केवल सरकारी दायित्व नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक का नैतिक कर्तव्य है। हम अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे कार्यों से उनकी बहादुरी को सम्मानित कर सकते हैं—चाहे वह ट्रेन में एक सीट का त्याग हो, सड़क पर मदद करना हो, या उन्हें निशुल्क सेवाएं प्रदान करना हो।

     

    सिर्फ सैनिकों को ही नहीं, उनके परिवारों को भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए, क्योंकि वे भी अपने प्रियजनों को राष्ट्र सेवा में भेजकर मानसिक और भावनात्मक संघर्ष का सामना करते हैं। यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें अपनी आदतों, व्यवहारों और परंपराओं के माध्यम से सम्मानित करें।

     

    देशभर में एक ऐसी संस्कृति का निर्माण करना चाहिए, जहाँ सैनिकों को केवल औपचारिक सम्मान न मिले, बल्कि वे समाज के एक अहम अंग के रूप में सम्मानित हों। यह न केवल उनके साहस का सम्मान होगा, बल्कि यह हमारी राष्ट्रीय एकता और शक्ति को भी मजबूत करेगा।

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