त्वरित टिप्पणी
क्या एमजीएम अस्पताल के हादसे के बाद खुलेगी इरफान अंसारी की आँखें ?
क्या लावारिस की जान गाजर मूली की तरह होते हैं डॉक्टर साहब!
देवानंद सिंह
झारखंड के एमजीएम अस्पताल में छज्जा गिरने से मरीजों की मौत कोई हादसा नहीं, बल्कि सरकार की लापरवाही की कीमत है। वर्षों से जर्जर घोषित लावारिस वार्ड की अनदेखी प्रशासन की संवेदनहीनता को बेनकाब करती है।
मजे की बात यह कि अपनी जिम्मेदारी समझने के बजाय स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी कभी विपक्ष को धमकाते हैं, कभी इशारों में अपने सरकार के पूर्व मंत्री पर भी कटाक्ष करते हैं तो कभी पत्रकारों का मुंह बंद करने के लिए हथकंडे अपनाते हैं, लेकिन अपने मंत्रालय की दुर्दशा पर चुप्पी साध लेते हैं। दूसरे जिला की बात को छोड़ दें सिर्फ उनके गृह जिला और जमशेदपुर की बात करें तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे छोटे से कार्यकाल के दौरान क्या यही जवाबदेही है?
राज्य में अस्पतालों की बदहाली, और उनके गृह जिला के अस्पताल की हालत इस बात का सबूत हैं कि शासन नाम की चीज़ सिर्फ बयानबाजी तक सीमित है।
एक कल्याणकारी विभाग की परिभाषा में सुरक्षा, देखभाल और जवाबदेही प्राथमिक तत्व होते हैं, जिनकी झारखंड स्वास्थ्य विभाग में घोर कमी है। यह घटना झारखंड सरकार के मुंह पर करारा तमाचा है। वक्त आ गया है कि सरकार लापरवाही की गिरती ईंटों के नीचे दबने से पहले जागे, और इस घटना से स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी दूसरों को धमकाने के बजाय अपनी जिम्मेदारी समझें।
क्या लावारिस की जान गाजर मूली की तरह होते हैं डॉक्टर साहब!
हादसे को लेकर एमजीएम अस्पताल के उपाधीक्षक नकुल चौधरी का यह कहना कि यह भवन 40 साल से भी ज्यादा पुराना है. इस घटना में जो भी मरीज दबे हैं, सभी लावारिस हैं हास्यास्पद है क्या लावारिस की जान गाजर मूली की तरह होते हैं डॉक्टर साहब!