Close Menu
Rashtra SamvadRashtra Samvad
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अन्तर्राष्ट्रीय
    • राज्यों से
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
      • ओड़िशा
    • संपादकीय
      • मेहमान का पन्ना
      • साहित्य
      • खबरीलाल
    • खेल
    • वीडियो
    • ईपेपर
      • दैनिक ई-पेपर
      • ई-मैगजीन
      • साप्ताहिक ई-पेपर
    Topics:
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Home » अंततः देश में जाति जनगणना: प्रतिनिधित्व या पुनरुत्थान?
    Breaking News Headlines मेहमान का पन्ना संपादकीय संवाद की अदालत संवाद विशेष

    अंततः देश में जाति जनगणना: प्रतिनिधित्व या पुनरुत्थान?

    News DeskBy News DeskMay 2, 2025No Comments5 Mins Read
    Share Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Share
    Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link

    भारत में दशकों से केवल अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गिनती होती रही है, जबकि अन्य जातियाँ नीति निर्माण में अदृश्य रहीं। जाति जनगणना केवल गिनती नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की नींव है। बिना सटीक आंकड़ों के आरक्षण, योजनाएं और संसाधन वितरण अधूरे रहेंगे। विरोध करने वालों को डर है कि उनके विशेषाधिकार चुनौती में पड़ सकते हैं। लेकिन यह गिनती वंचितों की दृश्यता और भागीदारी सुनिश्चित करने का औज़ार है, न कि समाज को तोड़ने का। जब नीति जाति पर आधारित हो, तो डेटा भी होना चाहिए।

    – प्रियंका सौरभ

    भारत को जातियों में बाँटा गया, लेकिन उसे जोड़ने की कोशिश कभी पूरी ईमानदारी से नहीं हुई। संविधान ने सबको समानता का अधिकार दिया, मगर समान अवसर की नींव जातिगत असमानता को पहचानने पर ही टिकती है। इसी बुनियाद पर जब आज जाति जनगणना की मांग ज़ोर पकड़ रही है, तो सवाल खड़ा होता है — क्या यह सामाजिक न्याय का औज़ार है या समाज को और अधिक खांचों में बाँटने की कवायद?

    भारत में पिछली बार व्यापक जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी। उसके बाद, आज़ादी के बाद के राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में एक आदर्श सामने रखा गया — ‘जातिविहीन समाज’। इस आदर्श का आकर्षण था, पर व्यवहार में यह एक तरह की चुप्पी थी। 1951 से लेकर 2011 तक हर जनगणना में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गिनती होती रही, बाकी जातियाँ ‘अदृश्य’ रहीं। लेकिन अगर नीति आरक्षण आधारित हो, योजनाएं वर्गों के लिए हों, तो आंकड़े क्यों न हों? क्या यह संभव है कि बिना जानकारी के न्यायपूर्ण वितरण हो?

    बिहार की जाति आधारित सर्वेक्षण ने एक नई लहर पैदा की। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की पहल ने अन्य राज्यों को भी सोचने पर मजबूर किया। एक ओर जातिगत गणना को सामाजिक न्याय की बुनियाद बताया गया, तो दूसरी ओर कुछ वर्गों ने इसे सामाजिक विभाजन का उपकरण कहा। कई राजनीतिक दल इस मांग को समर्थन दे रहे हैं, खासकर वे जिनकी राजनीति वंचित तबकों पर आधारित है। लेकिन केंद्र सरकार की भूमिका झिझकभरी रही है। केंद्र का कहना है कि यह बेहद जटिल प्रक्रिया है और इससे सामाजिक तनाव पैदा हो सकते हैं।

    जाति जनगणना के समर्थन में कई मजबूत तर्क दिए जा रहे हैं। अगर हम यह नहीं जानते कि कौन-सी जातियाँ किस आर्थिक व सामाजिक स्थिति में हैं, तो योजनाएं महज अंदाज़ों पर चलती रहेंगी। आरक्षण का पुनर्मूल्यांकन करना हो या सामाजिक योजनाओं का लक्ष्य तय करना हो, सटीक आंकड़ों की आवश्यकता है। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की जनसंख्या कई राज्यों में 40-50% तक मानी जाती है, जबकि उन्हें 27% आरक्षण मिलता है। यदि सही आंकड़े हों तो नीति ज्यादा न्यायसंगत हो सकती है।

    विरोध करने वालों की मुख्य दलील यह है कि जाति जनगणना समाज में जातीय पहचान को और मजबूत करेगी। इससे सामाजिक एकता को खतरा होगा और राजनीतिक दल केवल जाति कार्ड खेलकर वोट बटोरने लगेंगे। कुछ वर्गों को डर है कि अगर सही आंकड़े सामने आ गए, तो उनका ‘निहित अधिकार’ छिन सकता है — जैसे सवर्ण वर्गों को लगता है कि ओबीसी या दलितों की संख्या के अनुपात में अगर आरक्षण बढ़ा, तो उनके लिए मौके और कम हो जाएंगे।

    जब बिहार ने अपना जातिगत सर्वेक्षण कराया, तो केंद्र सरकार ने उससे दूरी बनाए रखी। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों में भी मांग उठी, लेकिन सर्वसम्मति नहीं बन सकी। कई बार यह तर्क दिया गया कि यह विषय केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है और इसे राष्ट्रीय स्तर पर ही किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में जाति आधारित जनगणना पर सीधे रोक नहीं लगाई, लेकिन कहा कि यह नीति का विषय है और सरकारें अपने विवेक से निर्णय लें।

    वंचित समुदायों के लिए जाति जनगणना केवल गिनती नहीं है, यह उनकी दृश्यता का सवाल है। अगर समाज में कोई वर्ग आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक रूप से पिछड़ा है, तो सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि वह है कहां? कितना है? डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था — “यदि आपको सुधार करना है, तो पहले तथ्यों को जानिए।” जातिगत आंकड़े भी ऐसे ही तथ्य हैं। यह आंकड़े केवल आरक्षण तय करने के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, स्वरोजगार जैसी नीतियों के लिए जरूरी हैं।

    आश्चर्य की बात है कि जाति जनगणना जैसे गहन विषय पर मुख्यधारा मीडिया में गंभीर बहस कम होती है। जो बौद्धिक वर्ग खुद को प्रगतिशील मानता है, वह या तो इसे ‘रिग्रेसिव’ बताकर खारिज कर देता है या चुप रहता है। दरअसल, समस्या यह नहीं कि जाति की गिनती हो रही है। समस्या यह है कि जिन्हें अपने ‘विशेषाधिकार’ की चिंता है, वे इस गिनती से असहज हैं।

    अब सबसे बड़ा सवाल — मान लीजिए कि जाति जनगणना होती है और सभी जातियों के आंकड़े सामने आते हैं। तब क्या होगा? क्या सरकारें इन आंकड़ों के आधार पर आरक्षण नीति में बदलाव करेंगी? क्या यह संभव होगा कि किसी जाति की संख्या ज़्यादा निकलने पर उन्हें ज़्यादा हिस्सेदारी दी जाए? या फिर आंकड़ों को दबा दिया जाएगा, जैसा 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) के साथ हुआ? 2011 में हुई SECC के आंकड़े आज भी सार्वजनिक रूप से अधूरे हैं। सरकारें आती गईं, लेकिन किसी ने इसे पूरी पारदर्शिता से नहीं जारी किया।

    जाति एक सामाजिक सच्चाई है, जिसे नज़रअंदाज़ करना संभव नहीं। जो सत्ताएं जातिविहीन समाज की बात करती हैं, वे चुनावी टिकट देने, मंत्रिमंडल गठन, और अफसरों की नियुक्ति में जाति ही देखती हैं — तो फिर आंकड़ों से डर क्यों? जाति जनगणना न सामाजिक टूटन लाएगी, न समाज की बुनियाद को कमजोर करेगी — बशर्ते इसका उपयोग न्यायपूर्ण नीति निर्माण के लिए हो। डर उन्हें है जिनके पास पहले से ही ज़्यादा है। जो वंचित हैं, वे तो सिर्फ अपनी मौजूदगी की पुष्टि चाहते हैं।

    आख़िर यह देश सभी जातियों का है — तो सभी की गिनती क्यों नहीं?

    Share. Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Previous Articleशब्द हिंसा का बेलगाम समय!
    Next Article आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक संकल्प

    Related Posts

    दलमा में 200 करोड़ की पर्यटन परियोजना का पर्यटन मंत्री का निरीक्षण

    May 18, 2025

    कराईकेला के लाल बाजार गांव में पेयजल समस्या को लेकर ग्रामीणों की बैठक आयोजित

    May 18, 2025

    पश्चिमी सिंहभूम के गुदड़ी प्रखंड के बिरसाईत समुदाय के धर्म स्थल देवाँ में बिरसाईत समुदाय का 37 वाँ धर्म दिवस समारोह आयोजित हुआ

    May 18, 2025

    Comments are closed.

    अभी-अभी

    बड़बिल पुलिस ने आयरन चोरी के आरोप में दो लोगों को किया गिरफ्तार

    दलमा में 200 करोड़ की पर्यटन परियोजना का पर्यटन मंत्री का निरीक्षण

    कराईकेला के लाल बाजार गांव में पेयजल समस्या को लेकर ग्रामीणों की बैठक आयोजित

    पश्चिमी सिंहभूम के गुदड़ी प्रखंड के बिरसाईत समुदाय के धर्म स्थल देवाँ में बिरसाईत समुदाय का 37 वाँ धर्म दिवस समारोह आयोजित हुआ

    अंसार खान के प्रयास से गुलाब बाग फेस 2 में नाली का निर्माण शुरू हुआ

    6 प्रतिबंधित मवेशी लदी पिकअप वाहन जप्त तस्कर फरार

    झोपड़ीनुमा ढाबे में रविवार की सुबह करीब तीन बजे भीषण आग

    पेट्रोल पंप लुट मामले का खुलासा, हथियार के साथ एक गिरफ्तार

    गरीब महिला सब्जी बिक्रेताओं को गर्मी से राहत दिलाने के लिए युवाओं की टोली निकली

    चेक बाउंस के मामले में एक साल की कैद की सजा

    Facebook X (Twitter) Telegram WhatsApp
    © 2025 News Samvad. Designed by Cryptonix Labs .

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.