टाटानगर रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर्मचारियों के बीच किसी भी प्रकार का भय नहीं
कल पढ़े:अमल माझी गिरीश चंद्र पंडा के कारनामे
*भाग 02*
देवानंद सिंह
*जमशेदपुर, 26, अप्रैल :* टाटानगर रेलवे की जमीन पर बढ़ते अतिक्रमण ने जहां पूरे महकमे की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं कर्मचारियों के बीच किसी भी प्रकार का भय नजर नहीं आ रहा। लगभग 100 एकड़ जमीन के अवैध कब्जे के बावजूद अब तक किसी भी रेलवे कर्मचारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। कर्मचारियों के बीच यह धारणा बन चुकी है कि उनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। लंबे समय से जमे कुछ विभागीय कर्मचारियों पर अतिक्रमण को बढ़ावा देने और उससे अवैध वसूली करने के आरोप लगे हैं।
क्या सही मायने में अमल माझी और गिरीश चंद्र पंडा का किरदार कहानी में ट्विस्ट लाने में काफी अहम होने जा रहा है?
सूत्र बताते हैं कि इन कर्मचारियों ने ही पहले जमीन अतिक्रमित करवाई, फिर नोटिस भेजे और फिर सुविधा शुल्क लेकर अतिक्रमण को वैधता दी। जिनसे वसूली नहीं हो सकी, उनकी दुकानों पर कार्रवाई की गई। रेलवे ने कर्मचारियों की कमी का हवाला देकर अन्य विभागों से कर्मचारी तो मंगाए, पर उनकी जवाबदेही तय नहीं की। अतिक्रमण के इस खेल के पीछे संरक्षण प्राप्त अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। कर्मचारियों में यह मानसिकता घर कर गई है कि चाहे जो भी हो, उन पर कोई आंच नहीं आएगी। यही कारण है कि अतिक्रमण रुकने की बजाय तेजी से बढ़ता रहा। शहर के बीचोबीच रेलवे की इतनी बड़ी संपत्ति पर कब्जा हो जाना, स्थानीय प्रशासन और रेलवे दोनों की नाकामी को उजागर करता है।
रेलवे के आला अधिकारियों की निष्क्रियता से कर्मचारियों के हौसले बुलंद हैं। सवाल यह भी उठता है कि नोटिस प्रक्रिया में हो रहे घोटालों की उच्चस्तरीय जांच क्यों नहीं करवाई गई। यदि समय रहते जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाले समय में स्थिति और भी भयावह हो सकती है। फिलहाल, टाटानगर में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण और भ्रष्टाचार का यह खेल बदस्तूर जारी है। अमल माझी गिरीश चंद्र पंडा के कारनामे तो और चौंकाने वाले हैं जिस तरह करी जुड़ रही है बड़े पैमाने पर——–