वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर अच्छा है भारत का दृष्टिकोण
देवानंद सिंह
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का समाधान अब तक सुलझ नहीं पाया है। दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है, यह बात सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी की इस बात से स्पष्ट होती है, जिसमें उन्होंने यह कहा कि भारत अपनी सेना की तैनाती में तत्काल कोई कमी करने के पक्ष में नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रतिद्वंद्वी सेनाओं के बीच अभी भी कुछ हद तक गतिरोध बना हुआ है और विश्वास बहाली के लिए दोनों देशों को मिलकर काम करना होगा। यह स्थिति न केवल सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में भी इसकी गहरी छाप है।
सेना प्रमुख ने एलएसी पर मौजूदा स्थिति को ‘स्थिर लेकिन संवेदनशील’ बताया। इस समय सीमा पर हजारों सैनिक और भारी हथियार प्रणाली तैनात हैं, जो लगभग पांच वर्षों से एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं। यह केवल एक सैन्य विवाद नहीं है, बल्कि इसमें दोनों देशों की रणनीतिक महत्वाकांक्षाएं, क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक प्रभाव भी निहित हैं। एलएसी पर सैनिकों की तैनाती को ‘संतुलित और मजबूत’ बताया गया है, जो यह दर्शाता है कि भारत अपनी सैन्य ताकत को बनाए रखते हुए किसी भी आकस्मिकता से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
जनरल द्विवेदी ने यह भी स्पष्ट किया कि सर्दियों में सैनिकों की संख्या में कोई कटौती नहीं की जाएगी, क्योंकि मौजूदा जमीनी हालात ऐसी कोई भी कार्रवाई करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। गर्मियों में तैनाती पर फैसला, चीन के साथ होने वाली बातचीत के परिणामों पर निर्भर करेगा। इस बारीक रणनीतिक निर्णय को भारतीय सेना ने पहले ही प्रभावी रूप से समझ लिया है कि ऐसे मामलों में कोई भी जल्दबाजी नहीं की जा सकती और हर कदम को पूरी सावधानी से उठाना होगा।
यह बात उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के बीच तनाव की जड़ें काफी गहरी हैं और इसे केवल सैन्य तैनाती और रणनीतिक निर्णयों से सुलझाना आसान नहीं है। दोनों देशों के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर झड़पें और विवादों का सिलसिला पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है। 2020 में पूर्वी लद्दाख में हुए हिंसक संघर्ष के बाद स्थिति और अधिक संवेदनशील हो गई है, जहां दोनों पक्षों के बीच बड़े पैमाने पर सैन्य निर्माण और तैनाती हुई। यह संघर्ष दोनों देशों के बीच एक नए प्रकार के रणनीतिक गतिरोध को जन्म दे रहा है, जो केवल सैन्य और कूटनीतिक उपायों से हल किया जा सकता है।
भारत के पास ‘पर्याप्त रणनीतिक धैर्य’ है, जो इसे इस जटिल स्थिति से निपटने में सक्षम बनाता है, लेकिन यह धैर्य केवल सैन्य तैनाती और शक्ति प्रदर्शन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कूटनीतिक वार्ता और विश्वास बहाली की आवश्यकता भी है। इसके लिए, दोनों देशों को आपसी विश्वास की नई परिभाषा तैयार करनी होगी और शांतिपूर्ण समाधान के लिए मिलकर काम करना होगा।
भारत का मुख्य उद्देश्य एलएसी पर अपने सैनिकों की तैनाती को सुरक्षित और संतुलित रखना है, लेकिन साथ ही चीन से भी यह उम्मीद है कि वह अपनी अग्रिम स्थिति से पीछे हटे। भारत चाहता है कि चीन डी-एस्केलेशन की दिशा में आगे बढ़े और अपनी तैनाती को घटाए। भारत ने पूर्वी लद्दाख में देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया को भी पूरा किया है, जिससे दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच गश्त की गतिविधियां फिर से शुरू हो पाई हैं।
भारत की कोशिश यह है कि चीन अपनी सैन्य तैनाती को घटाकर सीमा पर एक स्थिर और शांतिपूर्ण माहौल बनाए, ताकि दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को कम किया जा सके। निश्चित रूप से, यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा, क्योंकि किसी भी प्रकार के सैन्य टकराव से बचने के लिए यह आवश्यक है कि दोनों देशों के बीच खुले संवाद और विश्वास का माहौल बने।
भारत के सैन्य और कूटनीतिक रणनीतिकार केवल चीन के साथ सीमा विवाद पर ही ध्यान नहीं दे रहे हैं, बल्कि पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने की स्थिति पर भी अपनी निगाह बनाए हुए हैं। सेना प्रमुख जनरल द्विवेदी ने पाकिस्तान को ‘आतंकवाद का केंद्र’ बताया और कहा कि पिछले साल जम्मू-कश्मीर में मारे गए 60% आतंकवादी पाकिस्तानी मूल के थे। उन्होंने यह भी कहा कि 80% सक्रिय आतंकवादी पाकिस्तान से थे, जो यह दर्शाता है कि पाकिस्तान की भूमिका सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने में अत्यंत सक्रिय है।
यह स्थिति भारत के लिए एक और गंभीर चुनौती पेश करती है, क्योंकि पाकिस्तान का आतंकवाद पर जारी समर्थन न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरे में डालता है, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। भारतीय सेना ने अपनी रणनीति में इन चुनौतियों का पूरी तरह से सामना किया है और सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ अपनी कार्रवाई जारी रखी है।
जनरल द्विवेदी ने विश्वास की नई परिभाषा की भी बात की, जो कि भारतीय सेना की दृष्टि में एक महत्वपूर्ण पहलू है। विश्वास बहाली के लिए कूटनीतिक स्तर पर संवाद को जारी रखना अत्यंत आवश्यक है। युद्ध या सैन्य संघर्ष के बजाय, दोनों देशों के बीच सही समझ और विश्वास के निर्माण की आवश्यकता है। यह समझ बनाने के लिए दोनों देशों के कूटनीतिक प्रतिनिधि और सैन्य प्रमुखों को एकजुट होकर काम करना होगा, ताकि क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे और कोई भी अप्रत्याशित घटनाक्रम दोनों पक्षों के लिए चुनौती नहीं बने।
कुल मिलाकर, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद केवल सैन्य दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत जटिल है। दोनों देशों के बीच संघर्ष की स्थितियां बदल रही हैं और यह आवश्यक है कि दोनों पक्ष आपसी विश्वास को पुनर्स्थापित करने के लिए मिलकर काम करें। इस दिशा में, भारत ने अपनी सैन्य तैनाती को संतुलित और मजबूत बनाए रखते हुए अपनी पूरी तैयारी की है और साथ ही चीन से भी डी-एस्केलेशन की दिशा में कदम बढ़ाने की उम्मीद जताई है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत की पहल को चीन किस तरह लेता है और क्या वाकई वह भी भारत की तरह शांति चाहता है या नहीं, आने वाले कुछ ही दिनों में यह स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।