बजट की घोषणा से पहले वित्तीय वर्ष 2025 में GDP वृद्धि दर में कमी का अनुमान चिंताजनक
देवानंद सिंह
अर्थव्यवस्था की गति और विकास दर किसी भी देश की समृद्धि का पैमाना होती है, जिस गति में गिरावट आए रहे तो, यह निश्चित ही चिंताजनक कहा जाएगा। कुछ ऐसा ही भारत में देखने को मिल रहा है। वैसे तो भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में हमेशा वैश्विक स्तर पर अपनी आर्थिक प्रगति को लेकर चर्चाओं का केंद्र रहा है। लेकिन नैशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) ने वित्त वर्ष 2025 में GDP वृद्धि दर को 6.4% के आसपास रखने का अनुमान दिया है, जो इस बात का संकेत देता है कि नए वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में धीमापन देखने को मिलेगा। इसे इसीलिए भी चिंताजनक कहा जा सकता है, क्योंकि यह अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लगाए गए 6.6% के अनुमान और पिछले वर्ष 2024 की 8.2% की वृद्धि दर से भी कम है। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि अगर, इसी तरह देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट आती रहेगी तो क्या भारत जब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना देख रहा है, क्या वह पूरा हो पाएगा ?
किसी भी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर कई तत्वों से प्रभावित होती है, जैसे कि उपभोक्ता खर्च, निवेश, निर्यात, सरकार की नीतियां, वैश्विक बाजार की स्थिति और घरेलू राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिरता। वित्त वर्ष 2024 की 8.2% की वृद्धि दर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा आंकड़ा था, उसकी तुलना में वित्त वर्ष 2025 के लिए 6.4% का अनुमान बिल्कुल भी शुभ नहीं कहा जा सकता है।
हालांकि, इसके पीछे वैश्विक आर्थिक स्थिति भी हो सकती है। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि कोरोना महामारी के बाद दुनिया भर के देशों में आर्थिक गतिविधियों में काफी तेजी आई थी, जो कि अब धीरे-धीरे स्थिर हो रही है। वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में रुकावट, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और यूक्रेन-रूस युद्ध जैसी घटनाएं भारत के निर्यात और आयात पर दबाव बना सकती हैं। इसके अलावा, घरेलू स्तर पर भी, उच्च ब्याज दरें, बढ़ती महंगाई और घटते सरकारी खर्च ने उपभोक्ता खर्च को प्रभावित किया है। इसके अलावा, भारतीय उद्योगों में भी निवेश की गति धीमी पड़ी है। यदि, निवेश का माहौल प्रतिकूल होता है, तो उत्पादन क्षमता में वृद्धि और रोजगार सृजन में भी रुकावट आ सकती है, जो GDP वृद्धि को निश्चित रूप से प्रभावित करेगा।
भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले 6.6% का अनुमान जताया था, जबकि NSO का अनुमान 6.4% है। यह मामूली अंतर भले ही पहली नजर में कम नजर आए, लेकिन इसका व्यापक अर्थ है। RBI और NSO दोनों ही स्वतंत्र संस्थाएं हैं और इनके अनुमानों में भिन्नता तब होती है, जब आंकड़े या अनुमानों की सटीकता पर सवाल उठते हैं। RBI की 6.6% की वृद्धि दर का अनुमान अपेक्षाकृत अधिक था, जबकि NSO का 6.4% का अनुमान इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में अधिक उतार-चढ़ाव हो सकता है। इस अंतर को अगर गंभीरता से लिया जाए, तो यह दिखाता है कि अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता का वातावरण है। यह अनिश्चितता सरकारी नीति निर्धारण और बजट की घोषणाओं पर भी प्रभाव डाल सकती है। ऐसे में, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि आगामी बजट में ऐसे कदम उठाए जाएं, जो न केवल GDP वृद्धि दर को पुनः गति दें, बल्कि रोजगार सृजन और महंगाई को भी नियंत्रित करें।
सरकार के लिए इस धीमी गति को बढ़ाने के उपायों को प्रस्तुत करने के लिए फरवरी में आने वाला केंद्रीय बजट एक महत्वपूर्ण अवसर होगा। बजट में प्रमुख निर्णय लेने होंगे, जो न केवल निवेश बढ़ाए, बल्कि उपभोक्ता खर्च को भी प्रोत्साहित करें। यदि, सरकार इन मुद्दों पर ठोस कदम नहीं उठाती, तो आर्थिक वृद्धि में और गिरावट आ सकती है। उद्योगों और सेवाओं में निवेश के बिना, भारत की अर्थव्यवस्था का आगे बढ़ना मुश्किल है। सरकार को प्राथमिकता देनी होगी कि वह उद्योगों और व्यवसायों के लिए आकर्षक प्रोत्साहन पैकेजों की घोषणा करें, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो रोजगार सृजन कर सकते हैं, जैसे विनिर्माण, इंफ्रास्ट्रक्चर और हरित ऊर्जा के क्षेत्र में। केंद्र सरकार को अपने बजट में उपभोक्ता खर्च को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने होंगे। इसके लिए, वेतन वृद्धि, टैक्स छूट और अन्य सामाजिक कल्याण योजनाओं के जरिए घरेलू खर्च को बढ़ा सकते हैं, इससे मांग का संचार होगा, जिससे उत्पादन और विकास की गति तेजी मिलेगी।
महंगाई भारतीय उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी चिंता है। सरकार को ऐसे उपायों पर विचार करना होगा, जो महंगाई को नियंत्रित कर सकें, जैसे कि कच्चे माल की कीमतों में सुधार, सप्लाई चेन में सुधार और कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ना अति आवश्यक है। यदि, वित्त वर्ष 2025 के लिए GDP वृद्धि दर 6.4% ही रहती है, तो इसका दीर्घकालिक प्रभाव भारत की विकास यात्रा पर पड़ेगा। धीमी वृद्धि दर का मतलब है कि रोजगार सृजन में कमी, आय में स्थिरता, और विकास के अवसरों में कमी आ सकती है।
हालांकि, 6.4% की वृद्धि दर भी एक सकारात्मक संकेत हो सकती है। यदि, इसे दीर्घकालिक विकास की ओर एक कदम माना जाए। इसे स्थिर और सतत विकास की ओर बढ़ने के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन यह तभी संभव होगा, जब सरकार समुचित नीतियों के साथ इस आंकड़े को और बेहतर बना सके। ऐसे, यह कहना महत्वपूर्ण होगा कि भले ही, भारत के लिए आगामी बजट में जो भी फैसले लिए जाएं, लेकिन उनका उद्देश्य आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना होना चाहिए, क्योंकि GDP वृद्धि दर का 6.4% पर अनुमान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण ही कहा जाएगा।, लेकिन इसे अवसर के रूप में भी देखा जा सकता है। ऐसे में, सरकार को चाहिए कि वह एक ऐसा बजट प्रस्तुत करे, जो न केवल वृद्धि को गति दे, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्थिरता भी सुनिश्चित करे।