बीजेपी और आंबेडकर की विचारधारा में समानता पर सवाल ?
देवानंद सिंह
आंबेडकर पर विवाद के बाद एक बार यह सवाल तेजी से उठने लगा है कि क्या बीजेपी आंबेडकर की विचारधारा से इत्तेफाक रखती है या फिर दोनों की विचारधारा में कोई अंतर है ? अगर यह अंतर है तो कितना, क्योंकि जिस तरह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जितना आंबेडकर, आंबेडकर की रट लगाई है, अगर इतना भगवान को पुकारते तो स्वर्ग मिल जाता। हालांकि बाद में अमित शाह ने सफाई दी, लेकिन इससे सवाल जरूर उठता है कि कहीं न कहीं कुछ तो विचारधारा का गैप है, जो बीजेपी और आंबेडकर की विचारधारा में भेद करती है।
यह बात उल्लेखनीय है कि भारतीय राजनीति में डॉ. भीमराव आंबेडकर का नाम सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ लिया जाता है। उन्हें भारतीय समाज में दलितों, पिछड़े वर्गों, महिलाओं और अन्य हाशिये पर रहने वाले समूहों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले महापुरुष के रूप में जाना जाता है। उनकी विचारधारा और संविधान निर्माण में उनका योगदान अनमोल है। जहां तक विचारधारा की बात है डॉ. आंबेडकर जिस बुद्ध को सर्वोच्च मानते थे, उनका भी यही विचार था। वे कहते हैं, “गौतम बुद्ध कहते थे कि तेरा दुख मेरे दुख में है, तेरा सुख, मेरी ख़ुशी में है और संघ की समरसता भी इसकी बात तो करती है, लेकिन हर मुद्दे पर समानता में आखिर अंतर है कहां ? दरअसल, संघ सद्भाव की बात करता है, जबकि आंबेडकर की बात करते हैं और यही दोनों की विचारधारा में अंतर को स्पष्ट करता हैं।
अगर, समानता और सद्भाव की दो अवधारणाओं के बीच अंतर है, तो निश्चितौर पर डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिकाएं अलग-अलग हैं। डॉ. भीमराव आंबेडकर का जीवन और उनके विचार भारतीय समाज के सभी वर्गों, खासकर दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों और महिलाओं के अधिकारों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आंबेडकर ने भारतीय समाज की गहरी जातिवाद की संरचना को चुनौती दी और समाज में समानता, न्याय और अधिकारों की बात की। उन्होंने भारतीय संविधान में अधिकारों की गारंटी देने की कोशिश की, ताकि सभी नागरिकों को समान अवसर मिल सकें और उन्हें उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित न किया जा सके।
आंबेडकर ने जातिवाद को भारतीय समाज का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव माना और इसके खिलाफ हमेशा आवाज उठाई। उन्होंने भारतीय समाज में समानता के लिए संघर्ष किया और दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई उपाय सुझाए। आंबेडकर ने संविधान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता की बात की। उनका विश्वास था कि सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलना चाहिए, और इसे संविधान के माध्यम से लागू किया जाना चाहिए।
आंबेडकर ने हिन्दू धर्म में व्याप्त असमानता और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई और बौद्ध धर्म अपनाया। उनके अनुसार, धर्म का उद्देश्य समाज में समानता और भाईचारे का निर्माण करना होना चाहिए।
बीजेपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS के विचारों से प्रेरित पार्टी है। बीजेपी की विचारधारा में हिंदुत्व को एक प्रमुख तत्व के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने का दावा करती है। हालांकि बीजेपी ने आंबेडकर को सम्मानित किया है और उनकी जयंती पर कार्यक्रमों का आयोजन किया है, लेकिन इस सम्मान का स्वरूप और वास्तविकता पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं।
आंबेडकर ने जातिवाद को भारतीय समाज की सबसे बड़ी बुराई माना और इसके खिलाफ कानून बनाने की सख्त वकालत की, जबकि बीजेपी दलितों के अधिकारों की बात करती है, लेकिन उसकी विचारधारा में जातिवाद को समाप्त करने के बजाय जातीय पहचान को प्रोत्साहित करने का आरोप लगता है। बीजेपी के कुछ नेता जातिवाद को संरक्षित करने वाली नीतियों को बढ़ावा देते हुए नजर आते हैं, जैसे कि आरक्षण नीति पर विवादित बयान।
दूसरा, बीजेपी की विचारधारा में हिंदुत्व एक केंद्रीय तत्व है, जो भारतीय समाज को एकजुट करने का प्रयास करता है। वहीं, आंबेडकर ने हिन्दू धर्म में व्याप्त असमानता के खिलाफ संघर्ष किया और बौद्ध धर्म अपनाया।
आंबेडकर के अनुसार, धर्म का उद्देश्य समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देना होना चाहिए, न कि किसी एक विशेष धर्म को प्रोत्साहित करना। बीजेपी के धर्मनिरपेक्षता पर संदेह व्यक्त किया गया है, क्योंकि उसकी नीतियों में धर्म आधारित राजनीति का तत्व ज्यादा देखने को मिलता है, जो आंबेडकर की विचारधारा के खिलाफ है। आंबेडकर ने हमेशा सामाजिक न्याय के मुद्दे को प्रमुखता दी। उन्होंने न केवल राजनीतिक अधिकारों की बात की, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक न्याय की बात की। बीजेपी का फोकस राजनीतिक और आर्थिक विकास पर अधिक है, जबकि अंबेडकर का दृष्टिकोण समाज के सभी वर्गों के बीच सामाजिक समानता और न्याय के लिए था। बीजेपी की नीतियां कभी-कभी केवल विकास पर केंद्रित होती हैं, जो सामाजिक असमानता को कम करने के बजाय बढ़ाने का कारण बनती दिखती हैं।
लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि आंबेडकर की विचारधारा और बीजेपी की राजनीति में कई समानताएं भी हैं, विशेष रूप से संविधान की अहमियत और दलितों के अधिकारों के प्रति समर्थन के मामले में, लेकिन खासकर जातिवाद, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर अंतर होना इस तरह के विवाद का कारण बनता है, भले ही बीजेपी उसे स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में बचती क्यों न हो। बीजेपी की विचारधारा हिंदुत्व पर आधारित होने के कारण आंबेडकर की विचारधारा से कुछ हद तक भिन्न है, जो समाज में समानता और बंधुत्व की अवधारणा पर आधारित थी।
इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह विवाद इस बात को स्पष्ट करता है कि भारतीय राजनीति में आंबेडकर की विचारधारा का प्रभाव व्यापक और गहरा है, चाहे वह उससे सहमत हों या नहीं। यह निश्चित रूप से सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनौती भी है कि वे आंबेडकर की विचारधारा को भली-भांति समझें और अपने दृष्टिकोण में इसे समाहित करें, ताकि समाज के सभी वर्गों को समानता और न्याय मिल सके।