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    Home » मणिपाल मेडिकल कॉलेज में इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स के 28 वे वार्षिक सम्मेलन का हुआ उद्घाटन
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    मणिपाल मेडिकल कॉलेज में इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स के 28 वे वार्षिक सम्मेलन का हुआ उद्घाटन

    Devanand SinghBy Devanand SinghNovember 18, 2024No Comments4 Mins Read
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    मणिपाल मेडिकल कॉलेज में इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स के 28 वे वार्षिक सम्मेलन का हुआ उद्घाटन

    जमशेदपुर : बारीडीह स्थित मणिपाल मेडिकल कॉलेज में आयोजित इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी), जमशेदपुर शाखा की 28 वे वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन । मौके पर आईएपी के दो विंग एएचए (एडाल्सन हेल्थ एकेडी) और एओपीएन (एकेडमी आफ पीडियाट्रिक न्यूरोलाॅजी) झारखंड चैप्टर की लांचिंग भी हुई। अब यह दो विंग बच्चों (13-19 वर्ष) की संपूर्ण समस्या और उसके समाधान के लिए काम करेगी। इससे पहले कान्फ्रेंस की शुरुआत अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर किया।

     

    डाॅ. जी. प्रदीप कुमार ने कहा कि एमबीबीएस फर्स्ट इयर के स्टूडेंट्स में यह समस्या सबसे अधिक होती है। वे हार्मोनल बदलाव व लव में अंतर नहीं कर पाते हैं कई गलतियां करते हैं जो उनके जीवन के साथ साथ उनके माता पिता और समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ता है।
    अतिथियों का स्वागत आईएपी, जमशेदपुर के अध्यक्ष डाॅ. अखौरी मिंटू सिन्हा ने की आईएपी के दो नए विंग में से एक एएचए का चेयरपर्सन डाॅ. मीनारानी अखौरी तथा डाॅ. जय भादुड़ी को सचिव की जिम्मेवारी दी गई है।

     

    दूसरे विंग एओपीए के सलाहकार डाॅ. सुधीर मिश्रा, अध्यक्ष डाॅ. राजीव मिश्रा, उपाध्यक्ष डाॅ. अभिषेक दूबे, सचिव डाॅ. प्रीति श्रीवास्तव, सह सचिव डाॅ. अपेक्षा और डाॅ. एकता अग्रवाल को कोषाध्यक्ष बनाया गया है। कान्फ्रेंस में देशभर से 100 से अधिक शिशु रोग विशेषज्ञ शामिल हुए। सम्मेलन में बेंगलुरु से डा. गीता पाटिल, हैदराबाद से डा. हिम बिंदु सिंह, भुवनेश्वर से डा. प्रशांत व रांची से डा. राजीव शामिल होंगे। इस दौरान बच्चों में बढ़ रही तमाम बीमारियों के बारे में मंथन की गई। साथ ही आधुनिक चिकित्सा पद्धति के बारे में भी विशेषज्ञ डॉक्टरों ने अपना-अपना अनुभव शेयर किया। आईएपी के सीनियर पूर्व अधिकारी डाॅ. केके चौधरी ने कहा कि पिछले 6-7 वर्षों में मेडिकल साइंस में बड़ा बदलाव आया है। लगातार चीजें अपडेट हो रही है। ऐसे में इस तरह के सम्मेलन से डॉक्टरों को काफी कुछ सीखने को मिलता है। अभी बच्चों में मधुमेह, आटिज्म, सांस की समस्या, निमोनिया सहित अन्य बीमारी तेजी से बढ़ रही है। इन बीमारियों के लक्षण इफैक्ट भी बढ़ा है। इस परिस्थिति में इसे कैसे बेहतर तरीके से हैंडल किया जाए यह एक चैलेंज है। मौके पर डाॅ. आरके अग्रवाल, डाॅ. जय भादुड़ी, डाॅ. हीरालाल मुर्मू, सुधीर मिश्रा, डाॅ. कुंडू आदि मौजूद थे।

     

    10 प्रतिशत किशोर नशाखोरी के गिरफ्त में आईएपी के एएचए विंग की नेशनल चेयरपर्सन डाॅ. हिम बिंदू ने कहा कि देश के 10 प्रतिशत किशोर (13-19 वर्ष) नशा के गिरफ्त में है। एेसे बच्चे अभिभावकों से अलग रहना पसंद करते हैं। बाथरुम में अधिक समय लगाते हैं। साथ ही उनके व्यवहार में और कई बदलाव आता है। बच्चे अगर एेसा व्यवहार कर रहे हैं तो बेझिझक बच्चों एक्सपर्ट डॉक्टर से दिखाकर डॉक्टरी सलाह लेना चाहिए। अभी क्राफ्ट, एलएसडी, कूकर आदि जांच की एेसी नई तकनीक आई है जिससे दो मिनट में यह पता लगाया जा सकेगा कि बच्चा नशा कर रहा है या नहीं। अगर कर रहा है तो किस स्टेज में है। उसकी मेंटल स्टेटस क्या है। काउंसलिंग से ठीक किया जा सकता है या फिर दवा की जरूरत है। क्योंकि कम उम्र के बच्चे जब लंबे समय तक कोई नशा करते हैं तो वे व्यस्क की तुलना में जल्द उसके आदि हो जाते हैं। हार्मोनल बदलाव, कुंठा के शिकार बच्चे कर रहे हैं आत्महत्याएं एओपीएन की नेशनल चेयरपर्सन डाॅ. गीता पाटिल ने कहा कि देश भर में आत्महत्याएं की घटनाएं बढ़ रही है।

     

     

    क्योंकि किशोरावस्था में होने वाले बदलाव के साथ बदलती मन: स्थिति व शारीरिक बदलाव किशोरों के लिए उलझना भरा होता है। साथ ही यह समय करिअर के लिए भी अहम होता है। एेसे में अभिभावक बच्चों की क्षमता देखे बिना उनसे एेसी अपेक्षा पाल लेते हैं जो उसके लिए संभव नहीं होता है। एेसे में बच्चे हीन, भावना, नशा की लत की ओर बढ़ते हैं। जो इस दबाव को नहीं झेल पाते हैं वे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए पेरेंटिंग बहुत जरुरी है। पैरेंट्स को 24 घंटे में एक बार बच्चों से फ्रेंडली मिलना चाहिए उनके साथ स्कूल, दोस्तों के बीच क्या चल रहा है। यह जानना चाहिए। ताकि बच्चे खुलकर अपनी बातें बता सकें। पैरेंट्स को समस्या के बारे में पता चलने पर तत्काल खुद के साथ एक्सपर्ट की मदद से उसका हल करना चाहिए।

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