चुनाव के मौसम में पार्टियों में बढ़ी जनता की चिंता
– *चुनावी वादों की लगने लगी है झड़ी*
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– *मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस मामले में सबसे आगे*
*पूर्वी सिंहभूम में भाजपा को अंदरूनी भीतरघात के साथ बगावत का भी दंश झेलना होगा*
*सवर्ण समाज की नाराज़गी भाजपा, कांग्रेस दोनों की डूबाएगी लुटिया, क्षेत्रीय दलों की होगी बल्ले-बल्ले*
*मुसाबनी में भाजपा नेताओं की बैठक और ऊपर से थोपे गए प्रत्याशियों का विरोध तथा पोटका में भूमि समाज की चेतावनी भाजपा के लिए सरदर्द*
*भाग 1*
देवानंद सिंह
चुनाव आते ही सभी राजनीतिक पार्टियों को जनता की चिंता सताने लगती है। हर पार्टी का फोकस यह होता है कि उन तक अपने वादे कैसे पहुंचाएं जाएं, भले ही वह वादे चुनाव के बाद पूरे हों या नहीं, लेकिन वादों की फेहरिस्त में कोई भी पार्टी पीछे नहीं रहना चाहती है। झारखंड में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है, क्योंकि झारखंड में अब कभी भी विधानसभा चुनावों ऐलान हो सकता है, इसीलिए राजनीतिक पार्टियां लोक-लुभावन वादे करने में बिल्कुल भी पीछे नहीं हैं।
राजग गठबंधन और महागठबंधन के बीच झारखंड में सीधा मुकाबला है। राजग पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को अपने पाले में लाकर इतरा रही थी कि कोल्हान की तस्वीर बदलेगी, हुआ इसके विपरीत। पार्टी के अंदर अभी से विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं। पोटका और मुसाबनी की बैठक मात्र एक नमूना है।
दोनों राष्ट्रीय दल से सवर्णों की नाराज़गी इस बार चुनाव से पूर्व देखने को मिल रही है। सवर्ण इस बात से नाराज हैं कि ना संगठन में और ना ही टिकट बंटवारे में, उन्हें राष्ट्रीय दल द्वारा तरजीह दी जाती है। इसी को लेकर सवर्णों की झारखंड में लगातार अंदरुनी रूप से बैठकों का दौर हर जिले में जारी है और इसका फायदा झारखंड में सीधेतौर पर क्षेत्रीय दलों को मिलेगा।
इसी को लेकर राष्ट्र संवाद श्रृंखला के रूप में पाठकों के बीच रखने का काम करेगा। भाग 1 को लोक लुभावने वादों से शुरुआत कर रहे हैं।
मजे की बात यह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसमें सबसे आगे दिखाई दे रही है। अगर, झारखंड मुक्ति मोर्चा की बात करें तो उसे सबसे ज्यादा असम के मुख्यमंत्री और भाजपा के चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा खटक रहे हैं