बिहार और आंध्र को मिले खास पैकेज के मायने
देवानंद सिंह
नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में बिहार और आंध्र प्रदेश का ख़ास ख़्याल रखा है। मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन दो राज्यों को अलग-अलग योजनाओं के तहत हज़ारों करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया है, जबकि दूसरे कई ऐसे बड़े राज्यों का ज़िक्र तक नहीं किया गया, जो अपने-आप में चौंकाता है। बिहार के लिए क़रीब 60 हज़ार करोड़ और आंध्र प्रदेश के लिए 15 हज़ार करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया है।
नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी, केंद्र की एनडीए सरकार का अहम हिस्सा हैं, बजट में इसकी पूरी झलक देखने को मिली है। बजट में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बिहार के लिए अलग-अलग योजनाओं के तहत 58900 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया है, इनमें से 26 हज़ार करोड़ रुपये बिहार के अंदर सड़कों का जाल बिछाने के लिए ख़र्च किए जाएंगे। इस पैसे से पटना-पूर्णिया एक्सप्रेस-वे, बक्सर-भागलपुर एक्सप्रेस-वे के साथ-साथ बोधगया, राजगीर, वैशाली और दरभंगा सड़क संपर्क परियोजनाओं के विकास के अलावा बक्सर में गंगा नदी पर दो लेन वाला एक अतिरिक्त पुल बनाया जाएगा।
इसके अलावा बाढ़ नियंत्रण के लिए 11500 करोड़ रुपये और पावर प्लांट के लिए 21400 करोड़ रुपये देने का एलान किया गया है। वहीं, विद्युत परियोजनाओं के तहत पिरपैंती में 2400 मेगावाट के एक नए विद्युत संयंत्र की स्थापना की जाएगी। इतना ही नहीं, बिहार में नए हवाई अड्डे, मेडिकल कॉलेजों और खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जाएगा। बिहार के गया स्थित विष्णुपद मंदिर और बोधगया के महाबोधि मंदिर को विश्वस्तरीय तीर्थ स्थल और पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने में मदद की जाएगी। वहीं, नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुत्थान के अलावा उसे एक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। दूसरी तरफ, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन एक्ट के तहत अतिरिक्त मदद मुहैया करवाई जाएगी, जिसके अंतर्गत 15 हज़ार करोड़ रुपये नई राजधानी के विकास के लिए आंध्र प्रदेश को आने वाले सालों में दिए जाएंगे। इसके अलावा आंध्र प्रदेश में पोलावरम सिंचाई परियोजना को जल्द पूरा करने में भी वित्तीय मदद देने की बात कही गई है।
कुल मिलाकर, बिहार और आंध्र प्रदेश को लेकर की गई प्रमुख घोषणाओं से पता चलता है कि मोदी सरकार के पास सरकार को आगे खींचने का यह प्रमुख विकल्प था।
दरअसल, बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए अलग से कुछ देना नरेंद्र मोदी सरकार की मजबूरी थी। ये बिलकुल साफ है कि नरेंद्र मोदी सरकार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन की बैसाखी पर टिकी है, जिसे बनाए रखने के लिए उन्हें कुछ तो करना ही था। उन्हें खुश करने के क्रम में ये घोषणाएं की गई हैं। बीजेपी को अपना एजेंडा भी चलाना है। कांवड़ यात्रा के दौरान धार्मिक पहचान का मामला सामने आया। नीतीश की पार्टी और जयंत चौधरी ने बयान भी दिए, लेकिन यूपी सरकार ने अपना फैसला वापस नहीं लिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट को रद्द करना पड़ा।
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू ऐसी सांप्रदायिक राजनीति से दूर रहना चाहते हैं, बावजूद इसके वे इसे बर्दाश्त कर रहे हैं। ऐसे में, इस तरह की विशेष मदद दोनों नेताओं को कुछ हद तक खुश करने का काम करेगी और इससे बीजेपी पर दबाव भी कम होगा। हालांकि, इस पैकेज से नीतीश कुमार या चंद्रबाबू नायडू कितना संतुष्ट होंगे ये तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि कुछ दिनों के बाद वे और पैसे की मांग करेंगे, क्योंकि वो जितना चाह रहे थे, उतना उन्हें नहीं मिला है, लेकिन ऐसा कर बीजेपी ने कुछ नुक़सान की भरपाई करने की कोशिश ज़रूर की है, लेकिन संसद के मॉनसूत्र सत्र के पहले ही दिन केंद्र सरकार द्वारा बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग को ख़ारिज कर दिया गया, जिससे आने वाले दिनों में नीतीश और बीजेपी के बीच दूरियां ना बढ़े, इससे बिल्कुल भी इंकार नहीं किया जा सकता है। इसकी संभावना इसीलिए है, क्योंकि जब से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं, वे तब से बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं।
विशेष दर्जा ख़ारिज होने के बाद बिहार के लोग बस इस बात का इंतज़ार कर रहे थे कि बजट में उनके लिए क्या ख़ास होगा। मोदी सरकार ने विशेष राज्य के दर्जे की जगह विशेष पैकेज देकर नुक़सान की भरपाई करने की कोशिश की है, लेकिन विशेष राज्य का दर्जा बिहार की अस्मिता का सवाल बना रहेगा, क्योंकि पिछले बीस सालों में राज्य में विशेष राज्य के दर्जे को लेकर राजनीति हुई है। यह मामला ज़्यादा ना भड़के और नीतीश कुमार के साथ सरकार चलती रहे, इसलिए भी विशेष पैकेज दिया गया है।
अगर, बजट में ये पैसा बिहार को नहीं दिया जाता तो यह पक्का था कि बिहार में एनडीए की राजनीति को बड़ा झटका लगता और राज्य में जेडीयू की राजनीति ध्वस्त हो जाती। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कोर्स करेक्शन की है, उसे बीजेपी की जगह एनडीए की तरह काम करना होगा, जिसकी एक झलक इस बजट में दिखाई दी। ये बजट 2024 के नतीजों का बजट है, जिसे देखकर लगता है कि बीजेपी अब एनडीए की तरफ़ बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।
लोकसभा चुनाव में बेरोज़गारी और महंगाई का बड़ा मुद्दा बना था, जिस पर इस बजट में ध्यान दिया गया है। कई करोड़ नौकरियों का वादा किया गया है, जो बताता है कि अब बीजेपी बदल रही है। बजट से पहले भी चंद्रबाबू नायडू को क़रीब पचास हज़ार करोड़ रुपये केंद्र सरकार की तरफ़ से अलग-अलग परियोजनाओं के लिए दिए गए हैं। ये साफ़ है कि अब बीजेपी अपने सहयोगी दलों का ध्यान रख रही है, क्योंकि सरकार की स्थिरता के लिए दोनों दलों का साथ रहना बहुत ज़रूरी है, लिहाजा, बजट की घोषणाएं नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के सहयोग के एक रिटर्न गिफ़्ट तौर पर ही माना जाना जाएगा।