सवालों के घेरे में परीक्षाओं की पारदर्शिता
देवानंद सिंह
देश की सबसे बड़ी परीक्षाओं में से एक नीट परीक्षा भी है। इस मेडिकल एग्जाम के सेंटर भारत के अलावा दूसरे देशों में भी बनाए जाते हैं। गत 5 मई को लगभग 24 लाख विद्यार्थियों ने नीट की परीक्षा दी थी, लेकिन इस दौरान जिस तरह राजस्थान के सवाई माधोपुर से नीट के पेपर लीक होने की खबर सामने आई थी,
उसके बाद इस महत्वपूर्ण परीक्षा की पारदर्शिता को लेकर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। नीट की परीक्षा में एक छात्रा के रिजल्ट की पीडीएफ भी लगातार वायरल हो रही है, जिसमें छात्रा को 720 में से 719 अंक मिले हैं, जो निश्चित ही इस परीक्षा की पारदर्शिता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है, क्योंकि प्रश्नपत्रों की मार्किंग के हिसाब से देखें तो ये मुमकिन नहीं है कि किसी परीक्षार्थी को 720 में से 719 अंक मिले। लिहाजा, इसी को लेकर परीक्षा एजेंसी एनटीए सवालों के घेरे में है। सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि नीट में कुल 200 प्रश्न होते हैं,
जिनमें से 180 प्रश्नों को सॉल्व करना होता है, हालांकि एनटीए ने इन आरोपों और शिकायतों को गलत बताया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा कि इन शिकायतों को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता कि परीक्षा एनटीए द्वारा संचालित की गई है।
दरअसल, नीट के पेपर में एक प्रश्न गलत करने पर एक अंक माइनस मार्किंग का कटता है, इसे देखते हुए छात्रा को 716 अंक मिलने थे, लेकिन फिर भी छात्रा को 719 अंक मिले। रिजल्ट देखते ही भिलाई के कोचिंग संस्थानों और नीट एस्पेरेंट के बीच एनटीए में हुई इस गड़बड़ी पर चर्चाएं जोर पकड़ती नजर आ रही हैं। ये बस एक छात्रा की बात नहीं है, बल्कि इस परीक्षा में लोग सोशल मीडिया पर 67 विद्यार्थियों के 720 में से 720 अंक लाने पर सवाल उठा रहे हैं, इनमें से छह विद्यार्थी ऐसे हैं, जिनका सेंटर और सिक्वेंस भी एक ही था।
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोप पहली नजर में गंभीर लग रहे हैं। इस बार 67 कैंडिडेट ऐसे रहे, जिन्हें 720 में से 720 नंबर मिले हैं, जबकि पिछले पांच वर्षों में फुल मार्क्स पाने वाले टॉपरों की संख्या महज 3 रही है। याचिका दायर करने वालों के मुताबिक, अजब संयोग यह भी है कि ये 67 स्टूडेंट्स खास कोचिंग सेंटर से जुड़े हैं। ग्रेस मार्क्स देने के आधार, उसके तरीके पर तो सवाल उठाया ही गया है, इसमें पारदर्शिता की कमी को भी मुद्दा बनाया गया है।
सवाल यह है कि क्या यही स्थिति अन्य राज्यों में भी बन रही है? अगर ऐसा है तो उसके पीछे क्या वजहें हैं इसका पता लगाना बहुत जरूरी है। इसके यह जरूरी है कि पेपरलीक और ग्रेस मार्क्स में कथित गड़बड़ियों की जांच तो हो ही, परीक्षा प्रणाली में जाने अनजाने रह गए पूर्वाग्रहों पर भी खुले दिल-दिमाग से विचार होना चाहिए।
इन गड़बड़ियों से अलग, नीट-यूजी को लेकर एक अन्य स्तर पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसी चर्चाएं हैं कि क्या नीट-यूजी का कॉन्सेप्ट गरीब और ग्रामीण विरोधी है। खासकर, तमिलनाडु सरकार यह आरोप लगाती रही है। कि नीट-यूजी के कारण राज्य के तमिलभाषी स्टूडेंट्स को नुकसान हो रहा है। शुरू में, इसे एक क्षेत्रीय दल की विशिष्ट राजनीति से जुड़ा मुद्दा माना गया, लेकिन इस बीच तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित जस्टिस एके राजन कमिटी की रिपोर्ट आ गई है, जो इन आरोपों की पुष्टि करती दिख रही है।
कुल मिलाकर, परीक्षाओं के आयोजन को लेकर पारदर्शिता बहुत जरूरी है। ये पहली बार नहीं है कि किसी भी परीक्षा की पारदर्शिता को लेकर सवाल उठ रहे हैं, पहले भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं, अगर बार-बार ऐसे मामलों के सामने आने के बाद भी एहतियाती कदम नहीं उठाए रहे हो तो यह निश्चित ही सिस्टम का फेलियर है। इसको लेकर तत्काल एहतियाती कदम उठाने बहुत ही जरूरी हैं, तभी एजुकेशन सिस्टम पर लोगों का विश्वास मजबूत होगा।