यूपी में बीजेपी के काम नहीं आए ‘राम’
देवानंद सिंह
लोकसभा चुनाव 2024 का परिणाम लगभग साफ हो गया है। एनडीए बहुमत हासिल कर चुकी है, जबकि इंडिया गठबंधन ने भी अच्छे नतीजे हासिल किए हैं, लेकिन बीजेपी अकेले दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई है, जो सबसे अधिक चौंकाता है और दूसरा देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में बीजेपी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। भाजपा यूपी में योगी मोदी के भरोसे जीत की उम्मीद लगाए रहे, लेकिन इंडिया गठबंधन के काम यूपी के लड़के’ आ गए, लेकिन बीजेपी के काम ‘राम’ भी नहीं आ पाए।
दरअसल, इस चुनाव से पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने आखिरी बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 के दौरान एक साथ प्रचार किया था, लेकिन उस वक्त जब नतीजे आए थे, बीजेपी को 302 सीटें मिली थीं और कांग्रेस-सपा गठबंधन सिर्फ़ 47 सीटें जीत पाया था, लेकिन अब सात साल बाद राजनीतिक रूप से ज़्यादा मैच्योर हो चुके दोनों नेताओं को फिर एक साथ देखा गया, जिसका परिणाम यह की गठबंधन बीजेपी के मुकाबले ज्यादा अच्छी स्थिति में दिख रहा है, जो योगी और मोदी के गढ़ में गठबंधन के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
इस लोकसभा चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा काफी चर्चा का विषय रहा था, जो 1980 के दशक में बीजेपी के गठन के समय से ही उसका चुनावी वादा रहा और इसके बारे में बीजेपी समर्थकों का दावा था कि चुनाव परिणामों में राम मंदिर निर्णायक साबित होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा फ़ैज़ाबाद तक में खुद को अहम वजह नहीं बना पाया, जबकि मंदिर फ़ैज़ाबाद निर्वाचन क्षेत्र में ही है। अगर, पड़ोसी संसदीय सीटों पर निगाह डालें, तो फ़ैज़ाबाद से सटी सात सीटों में से दो – गोंडा और कैसरगंज – पर बीजेपी आगे रही, जबकि पांच अन्य में से दो – अमेठी और बाराबंकी – में कांग्रेस आगे रही और तीन – सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर और बस्ती – में सपा आगे रही।
एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी हर वक्त हैरान कर देने के लिए मशहूर रही है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को समूचे सूबे में एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन वर्ष 2019 में मायावती की पार्टी ने 10 सीटें जीतकर ज़ोरदार वापसी की थी। पिछले लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था, लेकिन इस बार पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा, जबकि उसके पूर्व सहयोगी दल कांग्रेस के साथ चले गए थे।
इस बार बीएसपी का कोई भी प्रत्याशी फाइट में नहीं दिखा। यह वास्तव में मायावती के लिए अच्छी ख़बर नहीं है। नगीना सीट के रुझान भी अहम रहे, क्योंकि यहां उभरते दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद आगे चल रहे, जबकि इसी सीट पर बीएसपी चौथे पायदान पर रही। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर आज़ाद की जीत से भी ज़्यादा बड़ी हार बीएसपी के लिए यह रहेगी कि संभवतः मायावती के वफ़ादार कहे जाने वाले दलित मतदाताओं अब नए नेता मिल गए हैं।अगर उत्तर प्रदेश में इससे पिछले दो लोकसभा चुनावों की बात करें तो 2014 तथा 2019 में बीजेपी को क्रमशः 71 और 62 सीटें जीती थीं।
वहीं झारखंड की स्थिति कुछ अलग ही रही राज्य के कद्दावर नेता केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को हार का सामना करना पड़ा जबकि जीत के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन कम समय में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बनाने में कामयाब हो गई झारखंड में भाजपा की इस दुर्गति के लिए खुद भाजपाई ही दोषी है भाजपा के तथाकथित नेताओं ने एसी में बैठकर राजनीति की जिसका परिणाम मतगणना में देखने को मिला एक और विपक्ष पूरी लय के साथ चुनाव लड़ रहा था वहीं दूसरी ओर भाजपाई एसी में बैठकर मोदी योगी के सहारे जीत की उम्मीद लगाए बैठे थे दुमका सीट पर एक बार फिर जनता ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर ही भरोसा जताया इसके साथ ही सीता सोरेन को हार का सामना करना पड़ा वही गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे को भी जीत के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी अंत में तो भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व में छात्र भाजपा की प्रत्याशी कालीचरण सिंह को गोड्डा की जिम्मेदारी देनी पड़ी थी
जबकि सारे राष्ट्रीय नेताओं से लेकर प्रदेश के नेताओं ने संथाल को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था
चाईबासा सीट और खूंटी गठबंधन के पाले जा रही है इस बात का जिक्र राष्ट्र संवाद में पूर्व में ही कर दिया था फिर भी भाजपाई सचेत नहीं हो पाए
इस बार 1 जून को अंतिम चरण की मतगणना के बाद आए लगभग सभी एग्ज़िट पोलों में भी इसी ट्रेंड की पुनरावृत्ति की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन एग्ज़िट पोल के साथ दी जाने वाली चेतावनी – एग्ज़िट पोल हमेशा सही नहीं होते हैं – इस बार सही साबित होती हुईं।
लोकसभा चुनाव परिणाम 2024, यानि मतगणना वाले दिन मंगलवार को शुरू में ही एक बात पूरी तरह साफ़ हो चुकी थी कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के प्रभुत्व और दबदबे को विपक्षी गठबंधन से कड़ी चुनौती मिली है। दोपहर 12 बजे के आसपास आबादी और लोकसभा सीटों के लिहाज़ से देश के सबसे बड़े सूबे की 80 में से 44 सीटों पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के प्रत्याशी बढ़त बनाए हुए थे, जबकि एनडीए के उम्मीदवार कुल 35 सीटों पर आगे चल रहे थे, यूपी जैसे राज्य में गठबंधन से पीछे रहना निश्चित ही बीजेपी के लिए चिंताजनक है, जिस पर बीजेपी को गंभीरता के साथ विचार करना होगा।