महिलाओं पर बढ़ता बीजेपी का भरोसा….!
देवानंद सिंह
राजनीति में महिलाओं को आरक्षण देने की बात समय-समय पर उठती रहती है।नारी का सम्मान, मां-बहनों का स्वाभिमान, लोकसभा के चुनाव में बन गया बड़ा मुद्दा अगर, चुनावी माहौल हो तो उसमें यह मुद्दा और भी जोरशोर से उठने लगता है। जब 2024 लोकसभा चुनाव का पूरा कार्यक्रम घोषित हो चुका है, ऐसे में झारखंड की बदली सियासी हवा में महिलाओं को चुनाव में आगे करने का मुद्दा भी तेजी से उठने लगा है। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन के राजनीति में कदम रखने के बाद झारखंड की सियासी हवा पूरी तरह बदल गई थी और यह माना जाने लगा था कि इससे बीजेपी को राज्य में नुकसान झेलना पड़ सकता है, क्योंकि कल्पना सोरेन ने अपने पति हेमंत सोरेन की गिरफतारी के बाद लोगों की सिम्पैथी हासिल करने की पूरी कोशिश की थी और एक माहौल बनाने का भी प्रयास किया गया था, लेकिन जैसे ही हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने बीजेपी का दामन थामा तो पक्ष और विपक्ष की स्थिति के संतुलित होने का आंकलन किया जाने लगा, पर सियासी माहौल यही खत्म नहीं होता है, बल्कि बीजेपी द्वारा दूसरी पार्टियों से आई इन महिलाओं को हाथों-हाथ टिकट देने का सवाल भी है।
दरअसल, बीजेपी ने झारखंड की कुल 14 लोकसभा सीटों में से जिन 13 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की है, इनमें तीन सीटों पर महिला प्रत्याशियों का नाम घोषित किया है। जब पार्टी ने पहली लिस्ट जारी की थी तो उसमें दो महिलाओं का नाम भी था। इनमें अन्नपूर्णा देवी के अलावा हाल ही में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सदस्यता लेने वाली गीता कोड़ा सम्मिलित हैं। गीता कोड़ा को सिंहभूम से, अन्नपूर्णा देवी को कोडरमा से टिकट दिया गया है, जबकि बाद सीता सोरेन को भी टिकट दे दिया गया था, सीता सोरेन को दुमका से प्रत्याशी बनाया गया है। इनमें गीता कोडा ने हाल ही में कांग्रेस को छोड़ बीजेपी का दामन थामा था, जबकि सीता सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन छोड़कर बीजेपी का दामन थामा है।
वैसे बीजेपी खुद को महिला समर्थित पार्टी बताती रही है और पिछले साल सितंबर में महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए नारी शक्ति वंदन विधेयक को दोनों सदनों से पारित भी कराया था, हालांकि जनगणना के आंकड़ों और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही इससे जुड़े प्रावधान लागू होंगे। फिर जिस तरह से बीजेपी ने तीन महिलाओं को टिकट दिया है, उससे जाहिर होता है कि बीजेपी महिलाओं पर भरोसा जताने में पीछे नहीं है। इसका फैक्टर यह भी हो सकता है कि राज्य में लगातार महिला मतदाताओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।
2019 के लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो बीजेपी के टिकट पर कोडरमा से सिर्फ अन्नपूर्णा देवी की जीत हुई थी, जबकि कांग्रेस की टिकट पर सिंहभूम से गीता कोड़ा ने जीत दर्ज की थी, जबकि शेष 12 सीटों में से एक पर झामुमो, एक पर आजसू और 10 सीटों पर भाजपा के पुरुष प्रत्याशी जीते थे, लेकिन विधानसभा चुनावों में आधी आबादी को भागीदारी मामले में बीजेपी काफी पीछे है। झारखंड विधानसभा में कुल 12 महिला विधायक हैं। इनमें बीजेपी की महज तीन महिला विधायक ही हैं, जिनमें पुष्पा देवी राजद से तो अपर्णा सेन गुप्ता फॉर्वर्ड ब्लॉक से आकर विजयी हुई हैं। एक मात्र नीरा यादव विधायक हैं, जो बीजेपी कैडर की हैं। वहीं, कांग्रेस की कुल चार महिला विधायक हैं, जिनमें अंबा प्रसाद, दीपिका पांडेय सिंह, नेहा शिल्पी तिर्की और पूर्णिमा सिंह शामिल हैं। ये सभी कांग्रेस कैडर की हैं। इसके अलावा झामुमो के पास चार महिला विधायक हैं, इनमें बेबी देवी, सबिता महतो, जोबा मांझी और सीता सोरेन का नाम शामिल हैं, इसके अलावा एनडीए की सहयोगी आजसू से गिरिडीह सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता देवी उपचुनाव जीतकर विधायक बनी हैं, इस लिहाज से एनडीए के पास कुल चार तो इंडिया गठबंधन के पास आठ महिला विधायक हैं।
विधानसभा में महिलाओं को ज्यादा तब्बजो नहीं देने की वजह से विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस बीजेपी को आड़े हाथों लेती रही है, शायद इसी को देखते हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी महिलाओं को टिकट देने में पीछे नहीं रहना चाहती है, लेकिन बीजेपी जिस सीता सोरेन के भरोसे संथाल का सियासी मैदान साधना चाहती है, वह इस क्षेत्र के इतिहास को देखकर बिल्कुल भी आसान नहीं लगता है, क्योंकि संथाल में अधिकांशत: राजनीतिक घरानों की महिलाओं का ही दबदबा रहा है। भले ही, विधानसभा की अलग-अलग सीटें महिलाएं जीतती रही हैं, लेकिन लोकसभा के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ता रहा है। वैसे सीता सोरेन 2009 से जामा विधानसभा सीट पर हुए तीन चुनाव में बतौर झामुमो प्रत्याशी जीतती आईं हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव की सियासत विधानसभा चुनाव से बिल्कुल अलग है। फिर भी विपक्षी महागठबंधन सीता सोरेन के सामने किसी मजबूत प्रत्याशी को ही मैदान पर उतारेगी। ऐसे में, देखने वाली बात होगी कि झामुमो से बगावत कर बीजेपी के टिकट पर मैदान में आई सीता सोरेन क्या अपनी जीत को बरकरार रख पाएगी, क्योंकि बीजेपी को उम्मीद है कि जो झामुमो का गढ़ रहा है, वहां का मिथक कोई तोड़ सकता है तो वह हैं सीता सोरेन। इसी वजह से बीजेपी झारखंड में मजबूत उपस्थिति को लेकर काफी आश्वस्त नजर आ रही है और इससे बीजेपी द्वारा महिलाओं को तब्बजो देने वाली बात को भी बल मिलेगा, जिन जगहों में झारखंड राज्य में पुरुषों की अपेक्षा महिला मतदाताओं की संख्या अधिक है, वहां भी निश्चित ही इसका असर देखने को मिलेगा।