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    Home » परम-शांति का रसपान कराता है कीर्तन – आचार्य नभातीतानंद अवधूत
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    परम-शांति का रसपान कराता है कीर्तन – आचार्य नभातीतानंद अवधूत

    Devanand SinghBy Devanand SinghMay 8, 2023No Comments3 Mins Read
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    परम-शांति का रसपान कराता है कीर्तन – आचार्य नभातीतानंद अवधूत

    सहर के शिवदयाल नगर में 12 घंटा अखंड कीर्तन “बाबा नाम केवलम” का आयोजन हुआ। इसमें साधक भाव-विभोर हुए। कीर्तन में हज़ारीबाग़, रामगढ़, चतरा, कोडरमा, पदमा, इचाक, जलमा इत्यादि से सैकड़ों महिलाओं, बच्चो और पुरुषों ने भाग लिया और आध्यात्मिक लाभ उठाया।

    यह कार्यक्रम राजेंद्र राणा जी के घर पर हुआ।

    चरम निर्देश में सभी साधकों ने यम-नियम का सख्ती के साथ पालन करने का संकल्प लिया।

    स्वाध्याय के उपरांत आनंद मार्ग के सेक्रेटरी जनरल सेवा दल आचार्य नभातीतानंद अवधूत ने अध्यात्म पर विचार व्यक्त करते हुए कहा की बहिर्मुखी और जड़ाभिमुखी चिन्तन ही वैश्विक हिंसक ज्वालामुखी का मूल कारण है। मनुष्य की हिंसक प्रवृति के कारण वातावरण में भय और चीत्‍कार की तरंग बह रही हैं। संयमित जीवन सात्विक आहार, विचार और व्यवहार से हिंसक प्रवृत्ति को हराया जा सकता है। इस सत्‍य को सभी लोगों को समझने की जरूरत है। कीर्तन मानवीय संवेदना को मानसाध्यात्मिक स्तर में ले जाकर परम-शांति का रसपान कराता है। भाव विह्वल होकर जब मनुष्य परम पुरुष को पुकारता है तो उसके अंदर आशा का संचार होता है। कीर्तन करने से उसका आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति बहुत मजबूत हो जाती है।

     

     

     

    ज़िले के भुक्ति प्रधान जनरल राजेंद्र राणा ने बताया कि श्रीश्री आनंदमूर्ति जी ने भी व्यक्तिगत साधना के अलावा सामूहिक साधना के लिए ‘बाबा नाम केवलम’ का नाम संकीर्तन का मंत्र दिया है। बाबा का अर्थ है सबसे प्रिय और पूरे मंत्र का अर्थ है अपने सबसे प्रिय इष्ट का नाम। सामूहिक कीर्तन प्राकृतिक विपदा से तत्क्षण त्राण देता है। ललित नृत्य के साथ कीर्तन करने से वातरोग का शमन होता है। कीर्तन करने से बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। चिंता भी दूर हो जाती है। कीर्तन साधना में सहायक और आनंददायक होता है। कलियुग में कीर्तन ही परमात्मा के साथ अपने को जोड़ने का एक साधन है। इसलिए बुद्धिमान मनुष्य समय निकाल कर अवश्य ही कीर्तन करें। “बाबा नाम केवलम्” कीर्तन एक सिद्ध महामंत्र है, इसीलिए किसी प्राकृतिक आपदा या मानव सृष्ट आपदा में जैसे ही दोनों हाथ ऊपर कर निष्ठा के साथ कीर्तन किया जाए तो तत्काल क्लेश से मुक्ति मिल जाते हैं। इसे करने के लिए देश, काल और पात्र की कोई बन्धन नहीं है।

     

     

     

    गया डायोसीज सचिव आचार्य व्रजगोपालानंद अवधूत दादा ने कहा कि कीर्तन “हरि “का कीर्तन ,यह जो”हरि “हैं अर्थात परम पुरुष हैं इन्हीं का कीर्तन करना है अपना कीर्तन नहीं कीर्तनिया सदा “हरि ” मनुष्य यदि मुंह से स्पष्ट भाषा में उच्चारण कर कीर्तन करता है उससे उसका मुख पवित्र होता है जीहां पवित्र होती है कान पवित्र होते हैं शरीर पवित्र होता है और इन सब के पवित्र होने के फलस्वरूप आत्मा भी पवित्र होती है कीर्तन के फल स्वरुप मनुष्य इतना पवित्र हो जाता है कि वह अनुभव करता है जैसे उसने कभी अभी-अभी गंगा स्नान किया हो |

    कार्यक्रम में सभी आनंदमार्गी उपस्थित रहे।।

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