43 शहीद मजदूरों को समर्पित
कल का सूरज देख न सका।
भरी जवानी जी ने सका।
बीस तीस का तेतालिस नौजवान।
बिहार को फिर लौट न सका।
अफरोज जला, फिरोज जला।
अम्मी – अब्बू का शान मरा।
सलमा का सुल्तान मरा।
नूरजहां का नूर जला।
ऊंची मंजिल कूद न सका ।
गेट पर ताला खुल न सका।
संकरी गली , दिल्ली सरकार।
करती विकास , आप की सरकार।
जिंदा जले मजदूर बिहार के।
पर यहां पर सुशासन है।
दो लाख कीमत एक मजदूर का।
लगता खजाना खाली है।
न कोई उद्योग – धंधे।
लगता मेरे बिहार में।
पलायन करता गरीब मजदूर।
पेट भरने की आस में।
रोता मन हमें बिहार पर ।
जिस ने हमें जाना है।
दो जून की रोटी खातिर।
हम बिहारी बाहर है।
राजनीति के मजे खेलाडी।
मजे में हैं बिहार में।
जात पात के झगडे में।
हम फंसे हैं बिहार में।
गली गली , शहर शहर
बिहारी मजदूरों , भरों हुंकार।
आप रहा हूं कमर कसके।
मिले हमें यहां रोजगार।
श्रीनिवास कुमार सूर्यवीर