नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि बहू से ससुराल के साझे घर में रहने का हक नहीं छीना जा सकता.
अदालत ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 के तहत त्वरित प्रक्रिया अपनाकर किसी महिला को घर से नहीं निकाला जा सकता.
शीर्ष अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा कानून, 2005 (पीडब्ल्यूडीवी) का उद्देश्य महिलाओं को ससुराल के घर या साझे घर में सुरक्षित आवास मुहैया कराना एवं उसे मान्यता देना है, भले ही साझा घर में उसका मालिकाना हक या अधिकार नहीं हो.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 को हर स्थिति में अनुमति देने से, भले ही इससे किसी महिला का पीडब्ल्यूडीवी कानून के तहत साझे घर में रहने का हक प्रभावित होता हो, वह उद्देश्य पराजित होता है जिसे संसद ने महिला अधिकारों के लिए हासिल करने एवं लागू करने का लक्ष्य रखा है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के हितों की रक्षा करने वाले कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वे बेसहारा नहीं हों या अपने बच्चे या रिश्तेदारों की दया पर निर्भर नहीं रहें. पीठ ने कहा, इसलिए साझे घर में रहने के किसी महिला के अधिकार को इसलिए नहीं छीना जा सकता है कि वरिष्ठ नागरिक कानून 2007 के तहत त्वरित प्रक्रिया में खाली कराने का आदेश हासिल कर लिया गया है.
पीठ में जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी भी शामिल थीं.
कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था. हाई कोर्ट ने महिला को ससुराल के घर को खाली करने का आदेश दिया था. सास और ससुर ने माता-पिता की देखभाल और कल्याण तथा वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 के प्रावधानों के तहत आवेदन दायर किया था और अपनी पुत्रवधू को उत्तर बेंगलुरू के अपने आवास से निकालने का आग्रह किया था.
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 17 सितंबर, 2019 के फैसले में कहा था कि जिस परिसर पर मुकदमा चल रहा है वह वादी की सास (दूसरी प्रतिवादी) का है और वादी की देखभाल और आश्रय का जिम्मा केवल उनसे अलग रहे रहे पति का है.