सिस्टम पर उठे सवाल
राजधानी दिल्ली स्थित फिल्मीस्तान अनाज मंडी में रविवार को तड़के भयानक आग लग गई, जिसमें 43 लोगों की जलकर मौत हो गई। यह बहुत बड़ा हादसा था। इस घटना ने सिस्टम पर एक बार सवाल खड़े कर दिए हैं। दीगार बात है कि आग लगने की कई घटनाएं राजधानी में पहले भी घट चुकी हैं। 17 लोगों की जान लेने वाली एक होटल में लगी आग इसी साल फरवरी की घटना है। उपहार सिनेमा जैसी त्रासदी आज भी पूरे देश को याद है, लेकिन लगता नहीं कि राजधानी प्रशासन ऐसी घटनाओं से कोई सबक लेता है।
हर हादसे के बाद तमाम गड़बड़ियां ठीक करने के संकल्प दोहराए जाते हैं। जांच-पड़ताल चलती है। कुछ दोषी पकड़े जाते हैं, लेकिन फिर सब कुछ भुला दिया जाता है। आज भी दिल्ली के कई रिहायशी इलाकों में फैक्ट्यिां लगाई जा रही हैं और जरूरी सुरक्षा इंतजामों को ताक पर रखा जा रहा है। अनाज मंडी के मामले में हालात ऐसे ही थे। बताया जा रहा है कि इन कारखानों को खाली करने के लिए एक महीने पहले नोटिस भेजा गया था, लेकिन नोटिस की अनदेखी की गई।
फैक्ट्री चलाने वालों के पास ना तो फायर की एनओसी थी, ना ही उन्होंने यहां फायर सेफ्टी का कोई इंतजाम किया हुआ था। हद तो यह कि सात महीने पहले ही इस इमारत में आग लगी थी फिर भी कोई इंतजाम नहीं किया गया। नियमों के हिसाब से घरेलू इंडस्ट्री में ज्यादा से ज्यादा 9 लोगों को रखा जा सकता है और बिजली का लोड 11 किलोवॉट से ज्यादा नहीं हो सकता, लेकिन यहां सैकड़ों कर्मचारी काम कर रहे थे। इमारत में वेंटिलेंशन का भी पर्याप्त इंतजाम नहीं था।
सच्चाई यह है कि राजधानी में ऐसी हजारों इमारतों में गुपचुप कारखाने चलाए जा रहे हैं, जहां मामूली चूक से बड़ा हादसा हो सकता है। भयानक घटनाओं के बाद भ्रष्टाचार का एक व्यवस्थित तंत्र सामने आता है, जो थोड़ा-बहुत हिल-डुलकर दोबारा अपनी जगह पर वापस लौट आता है। सवाल है कि लोगों की जान के साथ खिलवाड़ का यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा? देश के अन्य महानगरों का हाल भी कोई बहुत अच्छा नहीं है।
बता दें कि मुंबई में हाल ही में आग लगने की कई घटनाएं हुई हैं। फिर भी मुंबई और दिल्ली में एक बड़ा फर्क है कि मुंबई में कमर्शल इलाके जाने-पहचाने हैं। इसके विपरीत दिल्ली में पता ही नहीं चलता कि किस रिहायशी कॉलोनी में कितनी कारोबारी गतिविधियां चल रही हैं। नतीजा यह कि कोई हादसा होने पर तमाम एजेंसियां एक-दूसरे पर उंगली उठाने लगती हैं, जबकि उसके लिए वे सब बराबर की जिम्मेदार होती हैं।
ये हादसे हमारे एक अविकसित देश होने और अर्थव्यवस्था में असंख्य चोर दरवाजे होने की गवाही भी देते हैं। वक्त आ गया है कि रिहायशी इलाकों में कमर्शल गतिविधियों को लेकर अब और हीलाहवाली न की जाए और घनी आबादी में चलने वाले कारखानों को सुरक्षित स्थानों पर भभेजा जाए। नियमों को धता बताने वालों में कानून का खौफ पैदा किए बिना बात एक कदम भी आगे नहीं बढèेगी। अगर, ऐसे हादसों को रोकना है तो सुरक्षा तंत्र को काफी चुस्त होना पड़ेगा। ऐसी सतर्कता सिर्फ हादसों के इर्द-गिदã ही नहीं, बल्कि लगातार सुनिचित रहनी चाहिए।