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    सवालों के भीतर का सवाल

    Devanand SinghBy Devanand SinghDecember 8, 2019No Comments4 Mins Read
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    सवालों के भीतर का सवाल
    श्यामल सुमन
    डाक्टर प्रियंका रेड्डी की दर्दनाक घटना से उपजा जनाक्रोश और हैदराबाद एनकाउंटर पर सब अपने अपने ढंग से अपनी अपनी भावना व्यक्त कर रहे हैं। दुष्कर्मियों को सजा मिलनी ही चाहिए ऐसा सभी हृदय से चाहते हैं लेकिन एनकाउंटर के तरीके के पक्ष या विपक्ष में व्यक्त भावनाओं से अलग हटकर और दलगत भावना से ऊपर उठकर कुछ सवाल उठते हैं जिस पर ना के बराबर चर्चा हो रही है जबकि इस पर चर्चा की विशेष जरूरत है।

    सांसद — इस बार 2019 के चुनाव में हम सबने जितने सांसद चुने हैं उनमें से 233 ऐसे हैं जो आरोपी हैं। इन 233 सांसदों में से160 बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर आरोप के आरोपी हैं। इनके बारे में कहीं चर्चा नहीं है जबकि सांसद ही हमारे लिए कानून बनाते हैं। क्या हमारी संसद इन आरोपी सांसदों का विधि सम्मत संज्ञान नहीं ले सकतीॽ पानी और प्रशासन का प्रवाह हमेशा ऊपर से नीचे की तरफ होता है और हमारी संसद प्रशासन का सर्वोच्च मंदिर है पर वहां भी कहीं ना कहीं, किसी ना किसी रूप में गंदगी दिखाई देती है। इस सवाल को भी नजर अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।

    न्यायिक-प्रक्रिया में देरी — यह एक दुखद सच है हमारे देश का। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा हैॽ प्राप्त जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट से लेकर सभी राज्यों, जिलों तक के निचली अदालतों में भी सरकार द्वारा स्वीकृत खाली पदों की संख्या के आधार पर हम आसानी से कह सकते हैैं कि जजों और न्यायिक प्रक्रिया में अन्य सहयोगी पदों पर बहाली सालों-साल से नहीं हुई है। फिर त्वरित न्याय की चाहत कैसे पूरी होगी आमलोगों कीॽ सवाल यह भी उठता है कि इन पदों पर बहाली करके न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने का प्रयास कौन करेगाॽ आखिर यह किसकी जिम्मेवारी हैॽ क्या योग्य उम्मीदवार को बहाल करके इस कमी को जल्द से जल्द पूरी करने की कोशिश अब नहीं होनी चाहिएॽ

    पुलिस – प्रशासन — यदि हम पुलिस बल की ओर देखते हैं तो स्पष्ट पता चलता है कि देश की राजधानी से लेकर हर राज्यों, हर जिलों, हर थाने में सरकार द्वारा स्वीकृत पद लाखों की तादाद में दशकों से खाली पड़े हैं। फिर भी पुलिस से ही हम त्वरित और सफल प्राशसनिक अपेक्षा रखते हैं। क्योंॽ आखिर पुलिस के लोग भी तो हम आप में से ही होते हैं ना। उन खाली पदों को जल्द से जल्द भरने से प्राशसनिक प्रक्रिया में निश्चित रूप से तेजी आएगी। पर यह सवाल कहीं भी नहीं उठ रहे हैं ॽ क्योंॽ

    इस तरह से यदि हम सी बी आइ समेत प्रशासन के अन्य सभी महकमों की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि हर महकमे में लाखों लाख स्वीकृत खाली जगह नहीं भरे जा रहे हैं बहुत वर्षों से। ऐसी परिस्थिति में फिर अच्छी शासन व्यवस्था की आशाएं कमजोर पड़तीं हैं और आमलोग परेशान होते रहते हैं। ऊपर से प्रशासन के लोगों पर ये सियासतदां अपने अपने दलीय और क्षुद्र स्वार्थ के कारण अनावश्यक दबाव बनाते रहते हैं जिससे पूरी व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे कैसे बचेंॽ यह भी ज्वलंत सवाल है।

    आम बहस की दिशा मोड़कर किसी को भी दोषी ठहराया जाना आसान है लेकिन क्या ये असली समस्या का समाधान हैॽ इसे गंभीरता से सोचने और क्रियान्वित करने की जरूरत है। आम बहस की मौलिक भावना को भटकाने की कोशिश खतरनाक है। किसी भी हालत में संविधान की आत्मा को घायल करने की चेष्टा हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ हो ही नहीं सकता। जब जब जिस देश में न्यायिक संस्थाओं के साथ छेड़छाड़ हुआ है, उस देश को बहुत कीमत चुकानी पड़ी। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिससे सीख लेने की जरूरत है। क्षणिक उन्माद हमेशा अहितकर है देश / समाज के लिए।

    जरूरत है हम सबके जगने की ना कि आपस में बेवजह लड़ने की। चलिए इन्हीं सवालों को सुलझाने की आशा के साथ हम झारखण्ड के जमशेदपुर में आज होनेवाले मतदान में अपना अहम हिस्सा निभाते हैं ताकि एक स्वच्छ छवि वाले प्रतिनिधि का चुनाव कर सकें।

    लेखक देश के जाने-माने साहित्यकार हैं

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