धर्म क्षेत्र बिहार…….धीरेंद्र कुमार
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बिहार सिर्फ एक राजनीतिक रूप से सक्रिय भू भाग का नाम नहीं है. अपितु, बिहार अपने आप में एक सांस्कृतिक भूभाग का प्रतिनिधित्व करता है. बिहार की सांस्कृतिक सीमा उत्तर में नेपाल की तराई से शुरू होकर दक्षिण में वर्तमान के छत्तिसगढ़ की सीमा तक है. इसकी पूर्वी सीमा क्षेत्र का विस्तार बंगाल तक और पश्चिमी सीमा क्षेत्र को हम काशी तक निर्धारित कर सकते हैं. #बिहार शब्द का #उद्गम स्रोत क्या है? ‘बिहार’ इस शब्द का निर्माण संस्कृत और पाली के विहार शब्द से माना जाता है. विहार का मूल अर्थ है वास करना. गौरतलब है कि बौद्ध काल में बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिए जो आवास क्षेत्र राज सत्ता बनवाती थी उसे विहार कहा जाता था. ध्यात्व हो कि साल के चार महीने (चौमासा) बोद्ध भिक्षु सहित तमाम ऋषि परंपरा के संत एक ही स्थान पर निवास करते थे. ऐसे में राजा के द्वारा संतो को राजाश्रय प्रदान किया जाता था. जाहिर सी बात है कि बौद्ध संप्रदाय का मूल क्षेत्र आधुनिक बिहार का क्षेत्र था इसलिए इस भू भाग पर अधिक विहार बने. यही विहार कालांतर में यहां के भूगोल के लिए राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों नाम के पर्याय बन गया.
साहित्यिक आख्यानों में बिहार के भूभाग की प्रथम चर्चा #यरजुर्वेदीय ब्राह्मण साहित्य #शतपथ ब्राह्मण में मिलता है. इसमें चर्चा है कि #विदेह माधव ने वैदिक जनों के लिए भूमि विस्तार के उद्देश्य से अपने मुख में #अग्नि #(वैश्वानर) को लेकर पूरब की ओर प्रस्थान किया लेकिन उनकी यात्रा #सदानीरा नदी (गंडक नदी) की तट पर आकर रूक गई. शतपथ ब्राह्मण उत्तर वैदिक कालीन साहित्य है. ऋग्वेद में आधुनिक बिहार की स्पष्ट #शतपथ ना के बराबर है. ऋग्वैदिक ऋषियों ने सामूहिक रूप से पूर्व क्षेत्र (मगध) के निवासियों के लिए व्रात्य शब्द का प्रयोग किया है. व्रात्य का मुख्य अर्थ होता है असभ्य. हालांकि प्राचीन काल में आधुनिक बिहार को चार खंडों में परिमार्जित किया गया है. नेपाल की तराई वाला क्षेत्र को #चंपारण्य कहा गया. इसके दक्षिण का भूभाग #सारण्य कहलाया. प्राचीन मगध का प्राचीन नाम #धर्मारण्य था, संभव है कि इस पूरे भूभाग पर यह धार्मिक कार्यों का केंद्र रहा हो.इस धर्मारण्य क्षेत्र को कीकट वन भी कहा गया है. इसके दक्षिण के क्षेत्र को #झार अर्णय (झारखंड) कहा गया. मगध शब्द का प्रथम उल्लेख अथर्ववेद में आया है. ज्ञायतव्य हो तो अथर्ववेद वैदिक वांग्मय में सबसे नवीन रचना मानी जाती है. वैदिक काल के बाद उनपनिषद काल के सबसे बड़े धरोहर राजा जनक बिहार के मिथिला प्रदेश के राजा थे.
कुलमिलाकर आधुनिक बिहार की राजनीतिक और सांस्कृतिक यात्रा उत्तर वैदिक काल और बुद्ध काल से शुरू होती है. ज्ञात लिखित साहित्य के अनुसार भारत का ई.पू. 600 इस्वी से ई.बाद 600 ईस्वी तक भारत का इतिहास बिहार का ही इतिहास है. इस काल में मौर्य, शुंग, कण्व, गुप्त आदि कई बड़े और मजबूत राजवंश पनपे.
लेकिन, बिहार का सांस्कृतिक इतिहास सनातनी परंपरा के आदि पुरूष #राम के जीवन काल से ही शुरू होता है. गौरतलब है कि राम की अवधारणा भारतीय सीमा क्षेत्र से पार इंडोनेशिया, कंबोडिया, थाइलैंड, मलेशिया, जावा, बाली सहित लगभग संपूर्ण पूर्वी एशिया में और इसाई – इस्लाम के उद्भव के पूर्व की बात को अगर लिया जाए तो ज्ञात रूप से पूरे भूगोल पर राम किसी ना किसी रूप में व्याप्त हैं. बिहार का मिथिला क्षेत्र सीतमाढ़ी (जनक धाम) में राम का विवाह हुआ. #कंबन रामायण के अनुसार सीते हरण के बाद उनकी खोज में क्रम में सुग्रीव द्वारा वानरों की टोली को बिहार भी भेजा गया था. सीता जन्मस्थली के अलावा राम चरित से जुड़ा एक और स्थल बिहार में गया है. हिन्दू संस्कृति के अनुसार मृत्यु के बाद परिजनों द्वारा पिंड दान करने पर ही आत्मा को मुक्ति मिलती है. पूरे विश्व के हिन्दू मतावलंबियों के लिए ‘गया’ मोक्षधाम के रूप में स्थापित है. वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा राम सर्किट के जरिए राम के जीवन से जुड़ें तमाम भूभागों को जोड़ने का प्रयास हो रहा है.
द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक वैद्यनाथ धाम (झारखंड के देवधर जिला में अवस्थित है) भी बिहार की ही सांस्कृतिक परिधि का हिस्सा है.
इसके अलावा बिहार में सूर्योपासना की अति प्राचीन परंपरा है. साल के दो पड़ाव पर लोकआस्था का पर्व छठ पूरे बिहार में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. यह सुखद आश्चर्य का विषय है कि पूरे विश्व में सूर्य की वृहद पूजा की परंपरा भारत में ही प्रचलित है. भारत के 12 #बड़े सूर्य मंदिरों में से चार मंदिर देव #(देवार्क) सूर्य मंदिर औरंगाबाद, #उलार सूर्य मंदिर (पटना), #औंगारी सूर्य मंदिर (नालंदा), #दक्षिणार्क सूर्य मंदिर (गया) बिहार में ही स्थित हैं. गौरतलब है कि सूर्योपासना सनातनियों के अलावा जरथुराष्ट्र समुदाय के लोग ही करते हैं.
आधुनिक बिहार के पास इस बात का गौरव है कि पूरे विश्व के लिए शांति और मानव कल्याण की भावना से लबरेज दो प्रमुख संप्रदाय के प्रणेता इसी भूमि पर जन्म लिए. यद्यपि बौद्ध मत के प्रतिपादक भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल की तराई में लुंबनी नामक स्थल पर हुआ था, तथापि भगवान बुद्ध की कर्मभूमि बिहार ही रही. हालांकि नेपाल की सांस्कृतिक पहचान किसी भी रूप में बिहार की सांस्कृतिक परंपरा से अलग नहीं है. बिहार में भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म के प्रतिक चिन्ह पग पग पर मिलते हैं. चाहे चंपारण का केसरिया स्तूप हो या राजगीर स्थित बौद्ध स्तूप हो या भगवान के ज्ञानप्राप्ति का स्थल बोधगया हो. भगवान बुद्ध को गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई और इसके बाद उन्होंने अनेकों जगह पर अपने ज्ञान का प्रचार प्रसार किया. इसी क्रम में वे राजगीर का गिरिबज्र पर्वत भी गये और इसी क्रम में वे बिहार के जहानाबाद जिले के बराबर की पहाड़ियों पर भी वास किये थे. बराबर की पहाड़ियों में मौर्य साम्राज्य के राजाओं द्वारा ऋषियों के तपस्या के लिए पहाड़ को काटकर गुफा का निर्माण किया था. इन गुफाओं के प्रस्तर पर हाथ से की गई कारिगरी आज भी दर्शकों के लिए किसी कौतुहल से कम नहीं है. ध्यानदेने वाली बात है कि पूरे विश्व में अंहिसा के रास्ते ही मनुष्य का कल्याण संभव है यह बताने वाला प्रमुख संप्रदाय बौद्ध और जैन ही है. इनमें से बौद्ध मत का प्रचार बिहार से शुरू होकर पूरे पूर्वी एशिया में हुआ वहीं जैन मत भारतीय स्थापित भौगोलिक सीमा क्षेत्र के अंदर ही सीमित रहे.
#जैन संप्रदाय के अंतिम तीर्थंकर महावीर जैन का जन्म (ईसा से 599 वर्ष पूर्व) भी बिहार (वैशाली) में हुआ, उनके ज्ञान प्राप्ति (कैवल्य) का स्थल भी बिहार की सांस्कृतिक सीमा क्षेत्र (पारसनाथ, झारखंड) में ही है और उन्हें मोक्ष भी (72 वर्ष की आयु में) बिहार में ही (पावापुरी नालंदा) में प्राप्त हुआ। यद्यपी इस मत के मानने वालों की बड़ी संख्या आज कर्नाटक और गुजरात में है. जैन मत को मानने वालों के लिए संपूर्ण बिहार स्वर्ग से कम नहीं। बिहार के लिए गौरव की बात है कि वर्तमान की केंद्र सरकार बौद्ध सर्किट और जैन सर्किट के नाम पर पूरे देश में इन मतावलंबियों के लिए जो भी पूज्य स्थल है उसे थलमार्ग के साथ ही हवाई मार्ग से जोड़ने का प्रयास कर रही है.
बिहार को अपनी सांस्कृतिक विरासत पर इतराने का मौका #सिक्ख संप्रदाय ने भी दिया है। सिक्ख धर्म के प्रवर्तक एवं प्रथम गुरु नानक देव ने बिहार में अनेक क्षेत्रों में भ्रमण किये जिनमें गया, राजगीर, पटना, मुंगेर, भागलपुर एवं कहलगाँव प्रमुख हैं। गुरु ने इन क्षेत्रों में धर्म प्रचार भी किया एवं शिष्य बनाये.
सिक्खों के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर का बिहार में आगमन सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ था. वे सासाराम, गया होते हुए पटना आये तथा कुछ दिनों में पटना निवास करने के बाद औरंगजेब की सहायता हेतु असम चले गये. पटना प्रस्थान के समय वह अपनी गर्भवती पत्नी गुजरी देवी को भाई कृपाल चन्द के संरक्षण में छोड़ गये, तब पटना में २६ दिसम्बर १६६६ में गुरु गोविन्द सिंह गुरु) का जन्म हुआ. विश्व भर में फैले हुए सिख समाज के लोगों के लिए पटना साहिब का वही स्थान है जो इस्लाम को मानने वालों के लिए मक्का मदिना का है.
बिहार में सभी सूफी सम्प्रदायों का आगमन हुआ और उनके संतों ने यहां इस्लाम धर्म का प्रचार किया. सूफी सम्प्रदायों को सिलसिला भी कहा जाता है. सर्वप्रथम चिश्ती सिलसिले के सूफी आये. सूफी सन्तों में शाह महमूद बिहारी एवं सैय्यद ताजुद्दीन प्रमुख थे. बिहार में सर्वाधिक लोकप्रिय सिलसिलों में फिरदौसी सर्वप्रमुख सिलसिला था. मखदूय सफूउद्दीन मनेरी सार्वाधिक लोकप्रिय सिलसिले सन्त हुए जो बिहार शरीफ में अहमद चिरमपोश के नाम से प्रसिद्ध सन्त हुए. समन्वयवादी परम्परा के एक महत्वपूर्ण सन्त दरिया साहेब थे.
आदि काल से ही भारत की पहचान ज्ञान और धर्म के आधार पर विश्वगुरू के रूप में ख्यात है. सूक्ष्मता से देखने पर ऐसा लगता है कि भारत की इस पहचान में बिहार का योगदान अतुलनीय है. बिहार की धरती से उठने वाली ज्ञान और आध्यात्म की धारा का अमूल्य योगदान है. वर्तमान बिहार के पास सांस्कृतिक पहचान वाले धार्मिक स्थलों के साथ ही ज्ञान के प्राचिन केंद्रों की भी बड़ी थाति है. बिहार के पास नालंदा और विक्रमशिला जैसे दो अंतरराष्ट्रीय स्तर के बड़े विश्वविद्यालय थे. इन विश्वविद्यालयों के भग्नावशेष आज भी बिहार को अपने अतीत पर इतराने का मौका देता है, साथ ही सैलानियों को बिहार आने का निमंत्रण भी देता है….