पटना . तीन चरण में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 28 अक्टूबर को होना है. इसके लिए नामांकन की प्रक्रिया 1 अक्टूबर से शुरू हो चुकी है. किस्मत आजमाने के लिए उम्मीदवार 8 अक्टूबर तक नामांकन पत्र दाखिल कर सकते हैं. किसी से बात बन गई तो 12 अक्टूबर तक उन्हें नामांकन पत्र वापस लेने की छूट भी दी गई है. लेकिन, चुनाव के इतने निकट होने पर भी बिहार की जनता में चुनाव को लेकर वो उत्साह देखने को नही मिल रहा जो, कभी महीनों पहले शुरू हो जाती थी. 2020 में अजब तरीके से हो रहे विधानसभा चुनाव के पीछे कई गजब की कहानियां है, जिसकी वजह से मतदाता अभी तक चुनाव को लेकर उदासीन है.
सीट का बंटवारा हुआ नहीं और बांट दिए गए सिंबल
संभवत: बिहार विधानसभा 2020 अब तक का एकमात्र चुनाव होगा जिसमें गठबंधन की पार्टियों के द्वारा बगैर सीट शेयरिंग का मसला हल किए ही, पार्टी के उम्मीदवारों को सिंबल भी दे दिया गया. ऐसा इस विधानसभा चुनाव में एनडीए खेमे के अंदर देखने को मिला है. अगर बात करें महागठबंधन की तो इस गठबंधन के अंदर सीट शेयरिंग का मामला तो सुलझा लिया गया लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि सभी पार्टियों ने संयुक्त प्रेस वार्ता कर अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करने के बजाए, अलग-अलग होकर नामों की घोषणा की है. यह दिखाता है कि भले ही बाहर से महागठबंधन एक दिख रहा हो लेकिन अंदर खाने में आज भी सभी पार्टियां बिखरी हुई है.
क्या तेजस्वी और चिराग से जनता को थी अपेक्षा ?
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में तीन राजनीतिक दल ऐसे हैं जिसका नेतृत्व युवा हाथों में है. लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल की कमान अब 30 वर्षीय तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं तो, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का नेतृत्व, अभिनेता से नेता बने चिराग पासवान कर रहे हैं. वहीं मुंबई में अपने जमी जमाई बिजनेस को छोड़ बिहार की राजनीति में दो-दो हाथ करने उतरे मुकेश साहनी ने, विकासशील इंसान पार्टी बनाकर एक पहचान जरूर बना ली है. लेकिन सवाल यह उठता है कि बिहार के मतदाता इन राजनीतिक युवाओं पर कितना विश्वास करते हैं. क्या आने वाले चुनाव में इन पार्टियों का युवा चेहरा कोई गुल खिला सकता है.