निजाम खान
बड़ी मुद्दत के बाद सुनायी दिया चिड़ियों की चहक!
बड़ी मुद्दत के बाद सुंघने को मिला फूलों की महक!!
बीत गये कई दिन,दोस्तों से नहीं हुआ दर्शन!
तभी तो कम हुआ वायु प्रदुषण,कम हुआ ध्वनि प्रदुषण,कम हुआ जल प्रदुषण!!
पेड़ के पत्ते हो गये थे धूल से लथपथ,
अब तो पेड़ के पत्ते भी दिख रहे हरा-भरा!
मंदिरों में पुजारियों की होती थी भीड़,
मस्जिदों में नमाज़ीयों की होती थी भीड़,
अब तो मंदिर-मस्जिद भी है खाली पड़ा!!
कल तक अपनों से मिलने के लिए नहीं होती थी फुर्सत!
आज जब नहीं मिल पाऊंगा किसी से तो दूसरों तो छोड़ तिसरे से भी है मिलने का फुर्सत!!
कल तक हम थे आजाद,
मनुष्य के हाथ प्रकृति था कैद!
समय सबका आता है,
आज प्रकृति है आजाद,
हम है कैद!!
जो हुआ सो हुआ,
प्रकृति से नहीं करो छेड़छाड़!
नही तो एक-के-बाद-एक महामारी का होता रहेगा बौछार!!