बिशन पपोला
केंद्र की मोदी सरकार के लिए आगामी पांच वर्षों में देश की इकॉनमी को पांच ट्रिल्यन यानि पांच लाख करोड़ डॉलर बनाना किसी चुनौती से कम नहीं होने वाला है। इसके पीछे दो महत्वपूर्ण कारण तो स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। पहला, देश में बढ़ती जा रही आर्थिक सुस्ती और दूसरा बीजेपी के हाथ से खिसकते राज्य। जाहिर सी बात है कि इकॉनमी को बढ़ाने के लिए आर्थिक ग्रोथ तो जरूरी है ही, इसके लिए केंद्र और सभी राज्यों में स्वयं की पार्टी की सरकार भी होना जरूरी है। अगर, ऐसा नहीं हुआ या फिर कम राज्यों में सरकार बची तो दूसरी पार्टी की सरकारों से हर हाल में सामंजस्य भी बिठना ही होगा, क्योंकि आगामी वर्षों में देश में इंफ्रास्चक्टर डेवलप करना होगा, जो आर्थिक ग्रोथ के लिए आवश्यक है।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जिस तरह से जीडीपी विकास दर घटकर 5 फीसदी पर पहुंची है और दूसरी तिमाही के लिए कई रेटिंग एजेंसियों और खुद सरकारी प्रतिष्ठानों ने विकास दर 4.7 रहने का अनुमान लगाया है, इसने सरकार की चिंता और बढ़ा दी है। बकायदा इसे सरकार के लिए बड़ा झटका ही माना जाएगा। वहीं, हाल के महीनों में जिस तरह से ऑटोमोबाइल सहित मैन्युफै÷रिंग क्षेत्र में गिरावट आई है, उससे भी इस पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है। विकास में तेजी लाने के लिए कई कदम निश्चित ही उठाए गए हैं, लेकिन उसका बहुत अच्छा असर अभी देखने को नहीं मिला है। अगर, इफ्रास्ट÷र की बात करें तो उसे भी बढ़ाना ही होगा। क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार विकास की रफ्तार 7.5 फीसदी तक पहुंचाने के लिए भारत को इंफ्रास्ट्र÷र सेक्टर में अगले दशक तक 3.3 ट्रिल्यन (3 लाख करोड़ डॉलर) खर्च करने की जरूरत है। इस मामले में केंद्र सरकार के लिए राज्यों का सहयोग लेना बहुत आवश्यक होगा। सड़क निर्माण और दूसरे इंफ्रास्ट्र÷र में जितना खर्च करेगी, वह अच्छा तो है, लेकिन, चुनौती यह है कि इसमें राज्य सरकार की भी हिस्सेदारी होती है। राज्य सरकार को इन प्रॉजेक्ट्स के कुल बजट में 5० फीसदी देना पड़ता है। इस स्थिति में केंद्र सरकार के लिए जरूरी हो जाता है कि वह राज्य सरकारों के साथ सामंजस्य बिठाए। पर आने वाले दिनों में सरकार के सामने इस मामले में भी मुश्किल आने वाली है, क्योंकि उसके हाथ से धीरे-धीरे राज्य कम होते जा रहे हैं। पिछले एक साल में बीजेपी के हाथों से कई राज्य निकल चुके हैं, जिसमें राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बाद अब महाराष्ट्र भी शामिल हो गया है। आगामी वर्षों में कई राज्यों में चुनाव होने हैं। अगर, यही स्थिति रही तो बीजेपी को और नुकसान झेलना पड़ सकता है।
यहां बता दें कि 2०17 में बीजेपी का शासन देश के 71 फीसदी भू-भाग पर था, जो अब घटकर 4० फीसदी पर पहुंच चुका है। 2०18 में बीजेपी और गठबंधन का शासन 21 राज्यों में था। महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे के बाद अब बीजेपी और गठबंधन का शासन 17 राज्यों में ही रह गया है। इन परिस्थिति में निर्माण क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार राज्यों के साथ सामंजस्य नहीं बैठाएगी तो इकॉनमी को लक्ष्य तक ले जाने में काफी दिक्कतें आएंगी। कुल मिलाकर केंद्र सरकार को विपक्षियों के साथ दोस्ती निभानी होगी और विकास के मार्ग पर राजनीति छोड़ कर आगे बढ़ने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा।
पांच ट्रिल्यन इकॉनमी पहुंचाने हैं कई बाधाएं
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