अहंकार का फल
देवानंद सिंह
झारखंड विधानसभा चुनाव के जो नतीजे आए हैं, उससे न केवल बीजेपी को झटका लगा है, बल्कि रघुवर दास को उससे भी बड़ा झटका लगा है। बीजेपी के हाथ से पांचवां राज्य खिसक गया है और रघुवर दास के हाथ सत्ता तो गई ही, बल्कि अपनी सीट भी चली गई। इसमें कोई शक नहीं कि पांच साल में बेहतर कार्य हुए, लेकिन उसके बाद भी सत्ता को गंवाना यह रघुवर दास के लिए ही नहीं, बल्कि बीजेपी हाईकमान के लिए भी गंभीर चिंतन का विषय है, क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह बीजेपी के हाथ से राज्य छिटकते जा रहे हैं, यह आने वाले दिनों के लिए भी बहुत अच्छा संकेत नहीं है। झारखंड से पहले बीजेपी पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट् और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को अपने हाथ से खो चुकी है। झारखंड में बीजेपी के हालात इतने खराब होंगे, इसका अनुमान नहीं लगाया जा रहा था, लेकिन राज्य की अधिकांश सीटों पर तो पार्टी का सूपड़ा साफ हुआ ही, बल्कि कोल्हान में सबसे खराब स्थिति रही। पार्टी 14 में से एक भी सीट निकालने में सफल नहीं रही। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मतदाताओं में बीजेपी शासन के खिलाफ कितना रोष व्या’ था।
हार के बाद रघुवर दास ने स्वीकार किया है कि वह इस हार की जिम्मेदारी स्वयं लेते हैं। सच भी है, लेनी भी चाहिए, क्योंकि हार का सबसे बड़ा कारण स्वयं रघुवर दास ही रहे भी हैं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने राज्य का विकास कराया, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन इसी अहंकार में जो गलतियां कीं उसने सत्ता पर दोबारा आने की उम्मीद पर पानी फेर दिया। जैसे, मुख्यमंत्री का महज कुछ लोगों के इशारे पर कार्यों को अंजाम देना, कुछ लोगों द्बारा अपने फायदे के कार्य करना जैसे मुद्दे प्रमुख रूप से शामिल रहे। कुछ चाटुकारों ने उनके कार्यकाल में खूब चांदी काटी। इसमें अफसरों के साथ-साथ सफेद पोश वाले लोग भी शामिल रहे। मुख्यमंत्री रघुवर दास की कमी यह रही है कि वह जमीनी हकीकत जानने के बजाय जो कुछ ऐसे लोगों के द्बारा बताया जाता रहा, वह उसे मानते रहे। जिसका आम जनता में गलत संदेश तो गया ही, बल्कि पार्टी और संगठन का भी एक बड़ा धड़ा नाराज हो गया।
इसके अलावा दूसरी सबसे गलती टिकट बंटवारे से लेकर पार्टी के कदवर नेता व मंत्री सरयू राय सहित दूसरे नेताओं का टिकट कटना शामिल रहा। इस घटना के बाद पार्टी, संगठन और आम जनता में नाराजगी बढ़ गई और चुनाव में रघुवर दास को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा। सरयू राय ने जिस तरह सीएम और उनके परिजनों पर निशाना साधकर पूर्वी विधानसभा जमशेदपुर सहित पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, उसने आग में घी डालने का काम किया। इसके अलावा लंबे समय से आजसू के साथ गठबंधन टूटना भी बड़ा मुद्दा रहा। रघुवर दास जिस प्रकार आत्मविश्वास में 65 प्लस का लक्ष्य लेकर चल रहे थे और आजसू को गठबंधन से अलग किया, उसका नतीजा आज हार के रूप में सामने है। लिहाजा, रघुवर दास सहित उनकी पार्टी बीजेपी के पास अब आत्ममंथन करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
हम राज्य का कितना ही विकास क्यों न कर लें, लेकिन हमें जनता से सीधा जुड़ाव तो रखना ही होगा और जमीनी हकीकत से भी स्वयं को सीधे तौर पर जोड़े रखना होगा। इसके अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण पहलू है वह यह है कि जीत का अंहकार इतना नहीं पालना चाहिए कि जमीनी कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों और ईमानदार छवि के नेताओं की न सुनी जाए और उनसे किनारा कर लिया जाए। राजनीतिक तौर पर जब तक इन सब चीजों के बीच सामंजस्य नहीं बैठाया जाएगा, तब तक जनता बदलाव पर ज्यादा जोर देती है। झारखंड विधानसभा चुनाव का परिणाम इसी का उदाहरण बनकर सामने आया है।
अहंकार का फल
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