वैश्विक बाजार से सामंजस्य स्थापित करने हेतु हर व्यक्ति बने एक सजग ग्राहक
यह एक अद्भुत संयोग है कि हम 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाते हैं और इसी माह 10 दिसंबर को मानव अधिकार की बात भी करते हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि विश्व भर में जो जन समुदाय है वहाँ हर व्यक्ति ग्राहक है और जो ग्राहक है वह मनुष्य भी है।
इसीलिए जब हम ग्राहक के हितों की रक्षा की चिंता करते हैं तो कहीं ना कहीं हम मानव हित की भी बात कर रहे होते हैं । यह समय एक बहुत बड़े परिवर्तन के साथ हमारे सामने से गुजर रहा है और ऐसे बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में बाजार की जो स्थिति और परिस्थिति है वह भी बदल रही है । ऐसे में ग्राहकों के हित की चिंता करना सामाजिक न्याय और समतामूलक समाज के लिए अपरिहार्य है। ग्राहक और व्यवसायी के बीच स्वस्थ और मधुर संबंध का होना एक स्वस्थ सामाजिक परंपरा है जो आजकल बहुत कम ही देखने को मिलता है।
यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सत्य है कि गर्भ में स्थित शिशु भी एक ग्राहक है क्योंकि गर्भवती माताएं बहुत सारी ऐसी दवाओं का सेवन करती हैं और पौष्टिक खाद्य पदार्थों का सेवन करती हैं जो गर्भस्थ शिशु की सेहत के लिए होती है। यह बात भी कटु है पर अपनी जगह सत्य है कि मृत्यु के बाद भी हम जब अंतिम यात्रा पर जाते हैं तो हमारे अंतिम संस्कार के लिए खरीदारी की जाती है यानी मरणोपरांत भी हम एक ग्राहक की भूमिका में होते हैं । फिर यह दुख की बात ही है कि हम अपनी भूमिका को महत्व नहीं देते और ना ही ग्राहकीय हित और अधिकारों के बाद के प्रति जागरूक रहते हैं।
मुझे याद आ रही है सब्जी की एक दुकान जो मेरे घर के रास्ते में नहीं पड़ती पर कभी – कभार जब भी मैं वहां जाती हूं तो सब्जियों की खरीदारी करने के बाद भी दुकानदार खुद-ब-खुद कुछ हरी मिर्च और कुछ धनिया के पत्ते मेरी थैली में डाल देता है। उसके पैसे वह नहीं लेता । वह जो ये अतिरिक्त सब्जियां देता है वह एक तरह से अपनत्व भरा भेंट है और मुझे यह बात अच्छी लगती है । बिरले ही अब ऐसी सोच वाले दुकानदार दिखते हैं।
एक अलग सी श्रद्धा मुझे उस सब्जी की दुकान से हो गई है।
कुछ दिनों पहले एक और अनुभव ये हुआ कि जब सब्जी की एक थोड़ी बड़ी सी दुकान पर गई तो मैंने कहा कि कुछ कम पैसे में एक फुलगोभी भी दे दीजिए तो उस बुजुर्ग दुकानदार ने बड़े ही स्नेह से कहा कि ” अच्छा कोई बात नहीं है। कुछ पैसे के लिए क्या करना है पर आप हमारे दुकान में आते रहिए । जरा सा मोल भाव करके हम ग्राहक से अपना संबंध खराब करना नहीं चाहते हैं। हमारा संबंध बना रहे हैं बस इतना ही हम चाहते हैं । मैडम जी , मैंने अपने बेटे को भी यही सिखाया है कि दुकान में आए ग्राहकों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।”
उस दुकानदार के मुख से यह सुनना भी बड़ा सुखद था। सराहनीय है कि इस तरह की परंपरा अब भी है । अगर सभी दुकानदारों में इस तरह की परिपक्व सोच आ जाए तो ग्राहकों को भी एक अच्छा अनुभव होगा और फिर दोनों एक दूसरे के पूरक बनेंगे , दोनों एक दूसरे का सम्मान करेंगे।
कई बार निजी स्वार्थ और अधिक से अधिक धन जमा करते जाने
की होड़ और सोच मनुष्य के अंदर इतनी बढ जाती है कि वो व्यावसायिक नैतिकता भूल जाते हैं ।अधिक से अधिक धन लिप्सा की भावना के कारण भी वह ग्राहकों को लूटते हैं और ग्राहकों के साथ न्याय नहीं करते।
पर ग्राहक पंचायत के इस वैचारिक अभियान से यह बात समझ में आई है कि सिर्फ व्यवसायी को ही कठघरे में रखना सही नहीं है।ग्राहकों को भी अपने अंदर झांक कर देखने की आवश्यकता है।
जागरूकता की कमी और वैचारिक आलस्यपन के कारण स्वयं जनता ही ग्राहकों के हित और कल्याण की बातों को अनदेखा कर जाती है । इससे शोषण करने वाले दुकानदारों में गलत करने की हिम्मत बढ़ती है ।
हम जब खरीदारी करने में जागरूकता और समझदारी नहीं दिखा पाते हैं तो निश्चित तौर पर हमारे साथ धोखा होता है , गलत होता है । अगर हम सभी ग्राहक हित की बात को गंभीरता से लें तो इसके लिए ग्राहक और दुकानदार दोनों को ही आगे आना होगा । दोनों को ही एक सजग स्वस्थ दृष्टिकोण के साथ इस रिश्ते को निर्मित करना होगा।
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत 1974 ई से ग्राहकों के हित के लिए संघर्ष कर रही है। कई सारे जागरूकता अभियान, कार्यक्रम ,कार्यशाला ,सेमिनार और विचार -विमर्श की एक लंबी श्रृंखला आज तक चली आ रही है। ग्राहक जागरण से संबंधित विविध प्रकार के अभियान के द्वारा आज जन समुदाय की सुषुप्त अवस्था में थोड़ा-बहुत वैचारिक जागरण दिखाई दे रहा है । इतना ही नहीं बल्कि ज्ञापन और आर टी आई के द्वारा ग्राहक पंचायत ने ग्राहकों के हित के लिए कई सारे विषयों पर सरकार तक अपनी बात पहुँचाने का सार्थक प्रयास भी किया है।
उसके कारण सरकारी तौर पर भी सजगता आई है ,अधिनियम भी बने हैं।
भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए 1986 में भारतीय संसद द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 को मंजूरी दी गई थी। इसके पश्चात
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में CCPA की स्थापना का प्रावधान किया गया जो उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने के साथ – साथ उनको बढ़ावा देगा और लागू करेगा। यह प्राधिकरण अनुचित व्यापार प्रथाओं, भ्रामक विज्ञापनों और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को भी देखेगा।
24 दिसंबर के विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस को मनाने का उद्देश्य भी यही है कि हम अपने ग्राहकों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति सजग करें, जागरूक बनाएं ।बाजार में जो आए दिन ग्राहक जमाखोरी हो रही है, कालाबाजारी है , मिलावटी चीजों का वितरण है, अशुद्ध भोजन पदार्थ है , एम आर पी से अधिक दाम वसूलना है , बिना किसी मुहर के चीजों की बिक्री है, ठगी हो रही है , नापतोल में भी अनियमितता है और गारंटी के बाद भी एक अच्छी सेवा नहीं मिल पा रही है। इन सारी समस्याओं से समाज का आर्थिक तानाबाना खोखला हो रहा है।
दिनकर जी ने रश्मिरथी में
लिखा है कि :–
“शांति नहीं तब तक जब तक
सुख भाग न नर का सम हो,
नहीं किसी को बहुत अधिक हो
नहीं किसी को कम हो ”
यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि यदि समाज की आर्थिक व्यवस्था में नैतिकता की कमी होगी या बाजार और बाजारवाद मनुष्य और मनुष्यता पर हावी हो जायेगा तो कई सारे संकट और मानवीय गुणों का पतन दिखाई देने लगेगा। यह स्थिति किसी भी समृद्ध, स्वस्थ और उन्नतशील समाज के लिए एक चुनौती की तरह है और बाधक भी है। आखिर एक व्यवसायी भी तो किसी न किसी जगह पर ग्राहक ही होता है इसलिए जरूरी है कि हम सभी ग्राहकों के हित का सम्मान करें।
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डाॅ कल्याणी कबीर
प्रिंसिपल, रंभा कॉलेज
अध्यक्ष, ग्राहक पंचायत झारखंड