मैं शाइरा मैं शाइरा बनी बनाई शाइरा,
कोई न मुझको छू सकेगा,है फ़लक बड़ा मिरा।
न इल्म है ज़रा सा भी अरूज़ का न ज्ञान है,
असातिज़ा हैं दोस्त और बड़ा मेरा जहान है।
हरेक पोस्ट पर मिलूं हरेक चैट धाम में,
मिली हूं व्हाट्स एप पर मिली हूँ इंस्टाग्राम में।
सदा लगी रहूं मैं चैट या कि सेल फोन में।
भरे हैं रब्त मतलबी ही दिल के ख़ाली कोन में।
किसी से बात मैं करूँ किसी के कान मैं भरूँ।
है शान ऊंची गुरु कृपा से मैं किसी से ना डरूं।
इसी तरह से चल रहा जी मेरा कारबार है।
क़रार हर क़रार से मिलन को बेक़रार है।
जुगाड़ से बड़े बड़े मिले हैं मुझको मंच भी,
न शर्म है हया नहीं न लाज मुझको रंच भी।
न लिख सकूं मगर मुशायरे बड़े बड़े पढूं,
बनाके सीढियां किसी को मैं शिखर तलक बढूँ।
है रंग रूप सोहना स्वरों में है मिठास भी,
है साथ साथ नाम और नोट का उजास भी।
वो दूर मुझसे ही रहे चरित्र में हो जो खरा,
मैं शाइरा मैं शाइरा बनी बनाई शाइरा…..
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