स्मृति शेष*******देकर चले गए राजीव दा
देवानंद सिंह
14 अप्रैल की मनहूस दुपहरिया में ब्रह्मर्षि विकास मंच के महासचिव अनिल ठाकुर का फोन आया प्रोफेसर राजीव रंजन जी के बारे में कुछ पता है मैंने कहा नहीं और तुरंत फोन संदीप को लगाया उधर से रोने की आवाज आई और संदीप ने कहा पापा नहीं रहे मैंने फोन काटा उसे कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं था मैंने मैसेज किया मम्मी का ध्यान रखना प्रोफ़ेसर राजीव रंजन चौधरी के असामयिक निधन से व्यक्तिगत क्षति मुझे पहुंची है जिसकी भरपाई निकट भविष्य में असंभव दिख रहा है एक ऐसा भाई जिन्होंने मेरी गलतियों को पर भी पर्दा डालने का काम किया था और अकेले में डांट भी पिलाई थी अचानक चलचित्र की तरह मस्तिष्क में उनकी यादें उभर कर सामने आने लगी
सौम्य व सरल स्वभाव वाले प्रो राजीव रंजन चौधरी अपने शुरूआती जीवन से ही मेहनतकश इंसान थे। भाषाशैली व व्यवाहार ऐसा कि जो एकबार मिल लेता उनका ही होकर रह जाता। गंभीरता इतनी कि उनके मन को कोई भांप नहीं सकता। किसी भी परिस्थिति में स्वभाव से सामान्य ही रहते थे जीवन के कठिन उतार-चढाव को मुस्कराकर पा करते हुए वे बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान करने में कोई कमी नहीं की इसके साथ ही उन्होंने पारिवारिक दायित्व को भी कठिन परिस्थितियों में बखूबी निभाया
उनका मानना था कि जीवन के हर पल का कुछ न कुछ उपयोग होना चाहिए, जो समय एक बार आपके जीवन से चला जाता है वह फिर कभी नहीं मिलता
जिस वक्त मैंने संदीप को फोन किया था उस समय मैं बुखार से तप रहा था और सामने बैठे थे सरायकेला खरसावां ब्रह्मर्षि विकास मंच के उपाध्यक्ष अमर नाथ ठाकुर उन्होंने पूछा क्या हुआ मैं कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं था हमारे और राजीव दा के बीच जो संबंध थे वे सहोदर भाई से कम नहीं थे
1986 की घटना अचानक आंखों के सामने घूमने लगी जब जमशेदपुर में कथित हमारे अभिभावक ने मुझे बाहर का रास्ता दिखाया था और परीक्षा सामने थी कथित अभिभावक के डर से कोई मुझसे बात नहीं कर रहा था उस दिन वे श्याम सुंदर बाबू के यहां से ट्यूशन पढ़ा कर लौट रहे थे हमसे मिले हमने उन्हें सब बात बताई वे बोले भाई रहने का जगह तो नहीं है लेकिन रात में हम लोग खाना साथ में खाया करेंगे तुम पुलिस लाइन आ जाया करना मैंने उनसे कहा मैं जमशेदपुर नहीं छोडूंगा उनका सीधा जवाब था जमशेदपुर किसी की बाप की नहीं है तुम यहीं रहो हम लोग देखते हैं कड़वा सच बोलने की आदत थी उनमें परंतु संकोची बहुत थे एक घटना याद आ रही है जब उनकी पहुंची टीएमएच मौत और जिंदगी से जूझ रही थी डॉक्टर ने कहा दो बॉटल ब्लड चाहिए परेशानी थी परंतु कुछ कह नहीं पा रहे थे उस समय ब्लड की कमी थी मैंने अपना ब्लड दिया और जब उनको टीएमएच कहा कि ब्लड का इंतजाम हो गया उनका कहना था कहां से इंतजाम किया तब जब उन्हें पता चला कि ब्लड मैंने दिया है दिन भर हमसे बात नहीं किये
धीरे धीरे समय बीतता गया और वे भी कॉलेज में पढ़ाने लगे भेंट मुलाकात का सिलसिला जारी रहा रोज बैठता तो नहीं था उनके साथ परंतु दो-चार दिन में अगर फोन पर बात नहीं होती थी तो फोन कर वह जरूर कह देते थे कि बड़ा आदमी हो गया पत्रकार लोग बातूनी होता है एक घर में भी बातूनी पैदा कर दिया है
अभी कुछ दिन पहले की ही बात है जब हम लोग मिले थे बोल रहे थे तबीयत ठीक नहीं लग रही है मैंने मजाक भी किया परंतु वे हंसकर टाल दिये बोले रिटायरमेंट के बाद आज ऑफिस ऑफिस चक्कर लगा रहे हैं
जीवन के कठिन व संघर्षमय जीवन के बीच बेगूसराय की पावन धरती पर जन्म लेने वाले प्रोफेसर राजीव रंजन चौधरी ने
शिक्षा के क्षेत्र में अपनी ताकत के बल पर अपना और परिवार का नाम रोशन किया वे लगातार ब्रह्मर्षि विकास मंच जमशेदपुर में सक्रिय भूमिका में रहे आज भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन जो भी संस्कार व जीवन जीने की कला सीखा गये है वे अविस्मरीण है।इसके अलावा वे जो कड़वा सच बोलने की कला समाज की नयी पीढी को दे गए है वे जीवन भर के लिए अमर रहेगी