नीतीश कुमार दोस्त सरयू राय के लिए भाजपा से टकराने को भी तैयार
नीतीश जानते हैं कि अब वे एनडीए की मजबूरी बन चुके हैं
आनंद कुमार
केंद्र में मोदी की सरकार को समर्थन दे रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि वे दोस्त को अकेला नहीं छोड़ेंगे, गठबंधन चाहे टूट जाये. नीतीश जानते हैं कि अब वे एनडीए की मजबूरी बन चुके हैं. उनको नाराज करने का रिस्क न तो मोदी ले सकते हैं न उनके चाणक्य कहे जानेवाले अमित शाह. नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि झारखंड में वे सरयू राय के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करनेवाले हैं. सरयू राय की जदयू के साथ चुनावी समझौते पर बातचीत चल रही है और समझौता तो हर हाल में होगा, चाहे भाजपा को अच्छा लगे या न लगे. चाहे बीजेपी को सरयू राय से जितनी एलर्जी हो लेकिन नीतीश कुमार दोस्त के लिए बीजेपी से टकराने को भी तैयार हैं.
बिहार के ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री श्रवण कुमार ने घोषणा कर दी है कि जेडीयू झारखंड में गठबंधन के तहत चुनाव लड़ेगी और झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष खीरु महतो भी कह चुके हैं कि प्रदेश में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में तालमेल नहीं होने के कारण ही बीजेपी की सरकार नहीं बनी थी. उन्होंने कहा कि झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को हमने साफ कहा है कि भागीदारी नहीं मिलेगी तो एनडीए का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा. सरयू राय हमारे साथ हैं. हम उनका स्वागत जेडीयू में करते हैं.
दोस्तो आपको याद होगा कि सरयू राय से भाजपा अलाकमान या यूं कहें कि अमित शाह सबसे पहले नीतीश कुमार को लेकर ही नाराज हुए थे.
मामला यह था कि सरयू राय अपनी किताब का विमोचन नीतीश कुमार से कराना चाहते थे. नीतीश तब भी बिहार के सीएम थे लेकिन तब वे लालू की पार्टी के साथ सरकार चला रहे थे. सरयू राय झारखंड की भाजपा सरकार में मंत्री थे. पार्टी आलकमान यानी मोटा भाई को खबर लगी. उधर से हरकारों ने खबर पहुंचायी, खबरदार जो नीतीश कुमार से किताब का विमोचन कराया. ठीक नहीं होगा. लेकिन सरयू राय कहां किसी की सुननेवाले थे. उन्होंने पटना जाकर किताब का विमोचन नीतीश कुमार से कराया. शायद 2017 की बात है. दो साल बाद जब सरयू राय को भाजपा ने जमशेदपुर पश्चिम से टिकट नहीं दिया, तो लोगों ने कहा कि सबकुछ ठीक था लेकिन अमित शाह को नाराज नहीं करना चाहिए था. इसीलिए टिकट कटा. बहरहाल सरयू राय को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा वे चुनाव लड़े और जीते. अलबत्ता क्षेत्र बदल गया. जो उनका शिकार करने निकले थे, वे खुद शिकार हो गये. भाजपा झारखंड की सत्ता से बेदखल हो गयी. 2019 से 2023 के बीच कई बार सरयू राय की भाजपा में वापसी की कोशिशें हुईं, लेकिन कहा जाता है कि हर बार रघुवर दास और अमित शाह ऐसी सभी कोशिशों पर वीटो लगाते रहे.
इस बार 2024 के विधानसभा चुनाव में जदयू और नीतीश कुमार झारखंड में राजनीतिक जमीन की तलाश कर रहे हैं. चूंकि वे एनडीए का हिस्सा हैं, इसलिए वे चाहते हैं कि भाजपा उसे भी झारखंड में कुछ सीटें लड़ने के लिए दे. और इसकाम के लिए दोस्त से बढ़िया कौन हो सकता था. एक दोस्त जो दोस्ती निभाने में भाजपा से बाहर हो गया था, तो मौका आया तो दूसरे दोस्त ने भी ठान लिया है कि वह पीछे क्यों रहेगा. इसलिए अब नीतीश कुमार की पार्टी ने साफ कर दिया है कि उसको झारखंड में भाजपा सीटें दे. और चूंकि सरयू राय की पार्टी के साथ उनका अलायंस तय है, तो सरयू राय की सिटिंग सीट उसकी भी सिटिंग सीट हो गयी और जदयू ने साफ कर दिया है कि भइया सिटिंग सीट पर तो कोई समझौता होगा नहीं. भाजपा जीती हुई रहती तो अलग बात होती, लेकिन सीट तो सरयू राय के पास है. तो मोदी को अगर केंद्र की सत्ता बचानी है, तो नीतीश बाबू को खुश रखना जरूरी है.
वैसे भी भाजपा ने 2019 में आजसू से समझौता नहीं होने के बावजूद सिल्ली में सुदेश महतो के खिलाफ प्रत्याशी नहीं दिया था. हुसैनाबाद में एनसीपी के कमलेश सिंह के खिलाफ उम्मीदवार नहीं दिया था. तो 2024 में सरयू राय के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारने से कोई पहाड़ तो टूटेगा नहीं. वैसे भी सीट एनडीए के खाते में ही रहेगी. वैसे भी जमशेदपुर पूर्वी की सीट से पांच बार विधायक रहे झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ओडिशा के राज्यपाल बन चुके हैं और भाजपा के पास सरयू राय के कद और अनुभव का कोई दूसरा नेता भी नहीं है. तो अब देखना दिलचस्प होगा कि सरयू राय की भाजपा में वापसी रोकनेवाले रघुवर दास क्या नीतीश कुमार के जरिए सीट लेने की सरयू राय की रणनीति को नाकाम कर पायेंगे या सरयू राय एनडीए के उम्मीदवार बनकर एकबार फिर उन्हें शिकस्त देने में सफल होंगे. इसके लिए थोड़े समय का इंतजार करना पड़ेगा.
लेखक हिंदुस्तान दैनिक के पूर्व संपादक हैं और अभी यूट्यूब चैनल पर जन मन की बात काफी चर्चा में है