आगे की सोचने की आवश्यकता
प्रो के पी शर्मा
युग ,समय, परिवर्तन शील होता है। हिंन्दु शास्त्र और इतिहास कार भी युग और उसकी विशेषताओं तथा उसमें हुए परिवर्तन को बताया है।
सभी युगों का मैं यहां वर्णन नहीं करता हूं लेकिन लेकिन इतना अवश्य कहता हूं कि यह युग के परिवर्तन का ट्रांजिसन का काल है ऐसे काल में बड़े युद्ध भी हुए हैं, यही काल महाभारत का काल था।
अभी जिस काल में हम रह रहे हैं उसके संबंध में हीगेल और मार्क्स का मानना है कि World Spirit का निवास यूरोप और पश्चिमी उपनिवेशवादी शक्तियां के पास था, इसके अंदर अमेरिका भी है,वह भी पश्चिमी विश्व है।
युग परिवर्तन World Spirit का निवास स्थान बदल रहा है वह अब यूरोप से एशिया में प्रवेश कर गया है, यूरोप में पहला कोलैप्स सोवियत संघ का हुआ उसका घर तास के पत्ते के समान बिखर गया, दूसरा कोलैप्स अमेरिका, नाटो तथा कथित औपनिवेशिक शक्तियों का हो रहा है लेकिन ये शक्तियां सहजता के साथ स्वीकार करने को तैयार नहीं है वह इस परिवर्तन को लहूलुहान करने पर आमादा है उन्होंने पाकिस्तान का निर्माण ही इसी उद्देश्य की पूर्ति केलिए किया था जो 78 वर्षों से लगातार पश्चिमी शक्तियों का ऐजेंट बनकर काम कर रहा है।
अमेरिका की छटपटाहट तो हम समझ ही रहे हैं लेकिन ऐशियाई महाशक्ति चीन भी आश्चर्यजनक रूप में अमेरिका के साथ नजर आता है यह स्वाभाविक है कि चीन के उत्थान के पिछे अमेरिका है और पाकिस्तान के पतन के पिछे चीन और अमेरिका दोनों है।
अभी अंतरराष्ट्रीय राजनीति आपको जटिल लग रहा होगा यह वास्तव में ट्रांजिसन के समय जो अस्पष्टता होता है उसके कारण है लेकिन कुछ ही दिन में स्पष्ट हो जायेगा।
यह ट्रांजिसन का काल भारत केलिए सबसे ज्यादा कठीन और संकट का काल है क्योंकि ऐशिया को विश्व शक्ति के ट्रांजिसन से रोकना पश्चिमी शक्तियों का उद्देश्य है वे सभी ऐक जूट है लेकिन उनका ऐजेंट पाकिस्तान उनके उद्देश्यों को पुरा करने में सक्षम नहीं है, इसलिए वे चाहते हैं कि चीन और भारत में युद्ध हो और यूरोप से एशिया को शक्ति ट्रांसफर रुक जाय क्वाड आदि संगठनों, मिली ट्री वेसेज का निर्माण इसी नीति के तहत है।
भारत क्वाड का सजग सदस्य हैं वह ऐजेंट बनकर काम नहीं कर सकता है, अमेरिका का मक़्सद पुरा नही होने से वह नाराज़ है।
चीन कि नीति भारत के साथ ऐशियाई नेतृत्व की लड़ाई है जो असंलगन आंदोलन और सम्मेलन के समय से चल रहा है उससे आगे बढ़कर भारत के विरुद्ध वफर राज्य तिब्बत पर 1959 में तथा 1962 में सीधाभारत पर आक्रमण, फिर डोकलाम में आक्रमण कर भारत को कमजोर राष्ट्र और अपने को एशिया का नेता होने की मंशा चीन ने स्पष्ट कर दिया है।
भारत पाकिस्तान,चीन, यूरोपीय संघ, अमेरिका के संयुक्त शक्ति के विरोध का शिकार हो रहा है।
अप्रैल,मई 2025 की घटना 2024 का बंगला देश की घटना से जुड़ा हुआ है यह अमेरिका, चीन, यूरोप के भारत के विरुद्ध षड्यंत्र है और पाकिस्तान ऐक मुखौटा और ऐजेंट है।
भारत को ऐसी स्थिति का सामना बुद्धिमानी और बहादुरी से करने की आवश्यकता है, लंबे युद्ध में भी नहीं फंसना और हम कमजोर है यह भी नहीं बताना है।
संयोग है कि देश का नेतृत्व ताकतवर है जिसने मेक इन इण्डिया के नीति के तहत भारत को आत्मनिर्भर भारत बनाने का महत्वपूर्ण कार्य किया गया है।इसका फायदा 4 दिनों के युद्ध में जमीन, आसमान, पानी, अंतरिक्ष में अपनी सर्वोच्चता, पश्चिमी और चीनी हथियारों के विरुद्ध सर्वोच्चता साबित कर अणु आयुद्धों के ब्लैकमेलिंग को भी समाप्त कर दिया। आंतकवादी गढ़ों को ध्वस्त किया और आंतकवाद के विरुद्ध सीमित उद्देश्य को प्राप्त कर लिया है।
भारत ने अपना उद्देश्य चार दिनों में प्राप्त कर लिया लेकिन पश्चिमी और चीनी उद्देश्य पुरा नही हुआ वे भारत को लम्बे पूर्ण युद्ध में फंसा कर भारत को बर्बाद करना चाहते थे, इसके आर्थिक और सैनिक शक्ति बनने पर हमेशा के लिए रोक चाहते थे।
भारत में आंतरिक रूप में सत्ता के खेल के खिलाड़ी भी मोदी को कमजोर देखने के षड्यंत्र में भी लगे हैं एवं वे मोदी को युद्ध में नहीं फंसा सके तो कमजोर मोदी कहने लगे हैं।
मोदी जी को दो जबरदस्त कार्य करने पड़ेंगे भारत को और ताकतवर,मेक इन इंडिया के तहत करना, पड़ेगा और Re Alignment का काम करना पड़ेगा, युद्ध में प्राप्त अनुभव के आधार पर विदेश नीति में भी बदलाव सुधार करना पड़ेगा।
घरेलू स्तर पर गैर जिम्मेदार विपक्ष का भी सामना करना पड़ेगा।
युद्ध के परिणाम विश्व में भारत के प्रभाव पैदा करने बाला है एशिया का नेतृत्व चीन के हाथ से छीन सकता है, पश्चिमी शक्तियों से त्रस्त ऐशिया, आफ्रीका के देश भारत का नेतृत्व मान सकते हैं, जापान का भारत के प्रति विश्वास बढ़ सकता है और हम नये विश्वशक्तियों के ध्रुवीकरण के केन्द्र वन सकते हैं।
भारतीय शस्त्रों भारतीय युद्धकौशल और सेना पर विश्वास विश्व के देशों का बढा है, भारतीय शस्त्र उद्योग पर भरोसा, भारतीय वैज्ञानिक पर विश्व का भरोसा बढ़ा है।
इस युद्ध को हम भारत के टेस्ट का अवसर मानें तो भारत विजेता रहा है, पश्चिमी और चीनी शस्त्रों की हार हुई है,मेक इन इंडिया जीता है।
अणु अस्त्रों की ब्लैकमेलिंग और अणु अस्त्र पर हम विजय हुए हैं।
सीमित युद्ध लड़कर हम दोस्त दुश्मन को पहचान गए हैं।
हमें अपने वैज्ञानिकों, सैनिकों, युद्ध नीति पर भरोसा बढ़ा है इन्होंने दुनिया में भारत की महानता स्थापित किया है।
भारत घरेलू रुप में न केवल शांत रहा वल्कि ऐसा समर्थन दिया कि उसका गुस्सा शत्रुओं के विरुद्ध शांत करना हमारे नेतृत्व केलिए समस्या है।
मोदी ताकतवर नेता ही नहीं बुद्धिमान नेता के रूप में उभरे हैं जो षड्यंत्र से अपने और देश को बाहर लाया तथा युद्ध भी लड़ा और थोड़े समय में विजेता का कीर्तिमान भी बनाया, युद्ध हीरो नहीं बनकर देश के सेना वैज्ञानिकों को विश्व में हीरो बना दिया है।
हमें अनुभवों का अपार भंडार मिला, सीमित युद्ध, अणु खतरा का सामना,माडर्न युद्ध, अतंरिक्ष से कमांड के युद्ध का अनुभव, अपने अजेय अस्त्रों के परिणाम का असर प्राप्त हुआ है।
यह बात भी अनुभव में आया की लम्बाई, चौड़ाई में कम फैले देश का सामना युद्धक विमान के स्थान पर मिसाइल से कर सकते हैं।
हमें,यह भी पता लगा की लम्बे युद्ध और बड़ी शक्तियों से युद्ध केलिए हमें क्या करने है।मेक इन इंडिया को और बढ़ावा देना है ज्यादा अनुदान देना है।
अंतरराष्ट्रीय संगठन पश्चिमी शक्तियों के हाथों में कठपुतली है उसका दुरुपयोग अमेरिका भारत के विरुद्ध करता है।
अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को पश्चिम शक्तियों के चंगुल से निकालना पड़ेगा या नये संगठन बनाने पड़ेंगे। ग्लोबल साउथ को संगठित विकसित करने की जिम्मेवारी भारत को लेनी पड़ेगी।
भारत सैनिक शक्ति बने इसके लिए भारत को आर्थिक शक्ति बनाने की जिम्मेवारी देश की जनता, वैज्ञानिक और नेताओं की है।
निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि छोटे युद्ध से हमें जितनी, उपलब्धि, जानकारी, अपने सामानों के टेस्ट का फायदा कभी नहीं भूलने वाली उपलब्धि है।
प्रोफेसर (डा) के पी शर्मा, हजारीबाग, झारखंड। रिटायर विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग,
एक समाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता, शोधकर्ता,शोध निदेशक —-.