बिशन पपोला कैराना। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, राजनीतिक पार्टियों के बीच सरगर्मी बढ़ती ही जा रही है। जिस तरह का परिदृश्य दिख रहा है, उसमें बीजेपी और सपा के बीच टक्कर होती दिख रही है, इसीलिए दोनों ही पार्टियां कोई भी कसर नहीं छोड़ रहीं हैं। किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी यूपी का क्षेत्र बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सत्ता में होने की वजह से बीजेपी का यहां विशेष फोकस है। लिहाजा, केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी नेता अमित शाह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत कैराना से की और कहा कि पलायन कराने वाले यहां से पलायन कर गए। कैराना पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बहुत महत्वपूर्ण सीट है, खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति साधने के मामले में। अगर, केंद्रीय गृह मंत्री अपने प्रचार अभियान की शुरुआत यहां से कर रहे हैं तो यह अपने आप में काफी महत्वपूर्ण हैं। दरअसल, शाह ने पलायन का मुद्दा उठाया, क्योंकि यहां से जो सैकड़ों परिवारों ने पलायन किया था, वह सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान किया था। कैराना में सबसे पहले पलायन का मुद्दा बीजेपी के पूर्व सांसद हुकुम सिंह के उठाने के बाद ही राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया था। दरअसल, उन्होंने 2016 में पलायन करने वाले 346 लोगों की एक सूची भी जारी की थी। अपनी सूची जारी करते हुए बीजेपी नेता हुकुम सिंह ने यह भी कहा था कि पलायन करने वालों में मुसलमान परिवार भी शामिल हैं। हालांकि बाद में, उन्होंने यह भी माना था कि पलायन की कोई सांप्रदायिक वजह नहीं थी। इस सूची में शामिल लोगों की कभी आधिकारिक तौर पर पुष्टि भी नहीं की गई।
बहरहाल, पांच साल बीतने के बाद भी चुनाव के वक़्त पलायन के मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी ने फिर से आंच पर चढ़ाया है, हालांकि इन बीते पांच सालों में योगी आदित्यनाथ की सरकार के कार्यकाल में इस इलाके में पलायन करने वालों की कोई आधिकारिक सूची नहीं तैयार हुई है। बीते नवंबर महीने में योगी आदित्यनाथ ने भी पलायन करने वालों की वापसी का दावा करते हुए कहा था कि 40-50 लोग वापस लौट आए हैं, लेकिन सरकार की ओर से मीडिया के सामने चार-पांच परिवारों से ज़्यादा लोगों को सामने नहीं किया गया। यहां रहने वाले लोग कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ की सरकार के समय में क़ानून व्यवस्था बेहतर होने से लोग वापस लौटे हैं। इसीलिए यह चुनाव में पलायन का मुद्दा जोर पकड़ेगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। बीजेपी ने कैराना विधानसभा सीट से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया है। वहीं, साल 2017 के विधानसभा चुनाव में मृगांका सिंह को मात दे चुके नाहिद हसन इस बार भी समाजवादी पार्टी की तरफ से उम्मीदवार हैं। उनकी पार्टी का इस बार राष्ट्रीय लोकदल से गठजोड़ है। इसीलिए, यह सीट बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि पिछली बार न केवल यहां से सपा जीत चुकी है बल्कि इस बार उसका गठबंधन राष्ट्रीय लोकदल से है। इसीलिए सपा मजबूती में दिख रही है। कैराना विधानसभा में कुल तीन लाख 17 हज़ार वोटर हैं, इनमें क़रीब एक लाख 37 हज़ार मुसलमान वोटर हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि बीजेपी इनमें से कुछ वोट झटकने में सफल हो।
इस सीट पर 25 हज़ार जाट वोटर भी हैं। अगर, ये वोट न बंटे तो बीजेपी को फायदा पहुंच सकता है। बीजेपी के लिए चुनौती इसीलिए भी है क्योंकि मृगांका को नाहिद हसन की मां तबस्सुम हसन भी मात दे चुकी हैं। इन दोनों के बीच साल 2018 के लोकसभा उपचुनाव में मुक़ाबला हुआ था। तब मृगांका बीजेपी की टिकट पर मैदान में थी और तबस्सुम आरएलडी के टिकट पर विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार थीं। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कैराना की सीट पर कब्ज़ा कर लिया। यहां से बीजेपी नेता प्रदीप कुमार चौधरी फ़िलहाल सांसद हैं। इस बार चुनावी मैदान में उतरे अन्य उम्मीदवारों की बात करें तो यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार अख़लाक और बहुजन समाज पार्टी प्रत्याशी राजेंद्र सिंह समेत कुल 10 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, लेकिन कुल मिलाकर 10 फरवरी को होने वाली वोटिंग में मुख्य मुक़ाबला नाहिद हसन और मृगांका सिंह के बीच ही माना जा रहा है। ऐसा नहीं है कि यहां और मुद्दे नहीं हैं, लेकिन पलायन के मुद्दे पर जिस तरह यहां सियासत गर्म है, उससे यह सीट हॉट मानी जा रही है, जिस तरह यहां अमित शाह ने सपा को घेरने की कोशिश की है, उस लिहाज से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सीट को लेकर बीजेपी कितनी गंभीर है। इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से सपा जीती थी और उसका इस बार उसका आरएलडी से गठबंधन है, लेकिन बीजेपी की तरह ही यहां सपा की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। इसीलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि बाजी किसके हाथ लगती है।