देवानंद सिंह
उत्तर प्रदेश में जिस राणा सांगा विवाद गर्माया हुआ हैं, उसने पूरे देश की राजनीति में हलचल मचाई हुई है। दरअसल, यह विवाद 21 मार्च को समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा दी गई एक टिप्पणी से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने राणा सांगा को गद्दार कहा था। इस बयान ने न केवल राजनीतिक हलकों में बवाल मचाया, बल्कि समाज के विभिन्न हिस्सों में भी प्रतिक्रिया को जन्म दिया। विवाद ने इतना तूल पकड़ा कि करणी सेना के कार्यकर्ता रामजी लाल सुमन के घर के बाहर प्रदर्शन करने पहुंच गए और वहां हिंसा और तोड़फोड़ की घटना भी घटी। इसके बाद राजनीति, इतिहास और सामाजिक संवेदनाओं के जटिल संबंधों को लेकर गहरी चर्चा शुरू हो गई है।
दरअसल, 21 मार्च को राज्यसभा में गृह मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा के दौरान रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराने के लिए मुग़ल सम्राट बाबर को भारत में आमंत्रित किया था। इस बयान में उन्होंने राणा सांगा को गद्दार करार दिया, जो उस समय भारत की स्वतंत्रता और अपनी संस्कृति के संरक्षण के लिए लड़ा करते थे। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के मुसलमान बाबर को आदर्श मानते हैं, जबकि हिंदू समुदाय को बाबर के खिलाफ संघर्ष करने वाले राणा सांगा का सम्मान करना चाहिए।
रामजी लाल सुमन का यह बयान समाज के एक बड़े वर्ग को आहत करने वाला था, विशेष रूप से राजपूत समुदाय, जिसे राणा सांगा के रूप में एक वीर योद्धा और स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान प्राप्त है। इस टिप्पणी के बाद करणी सेना ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया, जिसमें हिंसा भी शामिल थी। करणी सेना के नेता महिपाल मकराना ने इसे एक ट्रेलर करार दिया और चेतावनी दी कि अगर, रामजी लाल सुमन के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई, तो इसका विरोध पूरे देश में होगा।
विवाद पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं इस तरह सामने आईं कि भारतीय जनता पार्टी ने रामजी लाल सुमन के बयान की कड़ी निंदा की। बीजेपी ने कहा, राणा सांगा की तुलना बाबर से करना ऐतिहासिक रूप से गलत है। बीजेपी ने राणा सांगा को भारत के स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा कि उन्होंने भारत को गुलामी से बचाने के लिए संघर्ष किया था, और उनकी तुलना बाबर से नहीं की जा सकती।
वहीं, समाजवादी पार्टी के ने रामजी लाल सुमन का बचाव करते हुए कहा कि यह बयान केवल इतिहास का एक और पन्ना पलटने का हिस्सा था। सपा ने बीजेपी पर इतिहास के पन्नों को पलटने का आरोप लगाया और कहा कि यह सब राजनीतिक फायदे के लिए किया जाता है।
हालांकि, राणा सांगा का इतिहास भारत के गौरवशाली अतीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनका जन्म 1482 में हुआ था, और वह मेवाड़ के राजघराने से थे। राणा सांगा ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया, और उनकी पहचान भारतीय स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले योद्धा के रूप में रही। राणा सांगा का सबसे प्रसिद्ध युद्ध खानवा की लड़ाई था, जिसमें उन्होंने बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा था। हालांकि, यह कहना कि राणा सांगा ने बाबर को भारत आमंत्रित किया था, ऐतिहासिक दृष्टि से गलत है।
वास्तव में, राणा सांगा और बाबर दोनों के खिलाफ़ संघर्ष के संदर्भ में एक जटिल इतिहास है। राणा सांगा और दौलत खान लोदी ने बाबर को भारत आक्रमण के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन उनका मकसद इब्राहिम लोदी को हराना था, न कि भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना। इस संदर्भ में यह कहना कि राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया, ऐतिहासिक रूप से विवादित और अधूरा है। रामजी लाल सुमन के बयान के बाद समाज में भी गहरी प्रतिक्रिया हुई है। राणा सांगा को लेकर किए गए इस विवादास्पद बयान ने समाज में पुराने संघर्षों को ताजा कर दिया। राणा सांगा को अपना हीरो मानने वाले राजपूत समाज भी इस टिप्पणी से आहत हुआ। इसने न केवल एक ऐतिहासिक विवाद को तूल दिया, बल्कि समाज में विभाजन और नफरत की भावना को भी बढ़ावा दिया।
समाजवादी पार्टी ने इस हिंसक घटना को सरकार पर आरोपित किया और इसे एक रणनीतिक प्रयास करार दिया, जिससे समाज में तनाव और विभाजन बढ़े। वहीं, करणी सेना के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई हिंसा को न केवल अस्वीकार्य माना गया, बल्कि यह सवाल भी उठाया गया कि क्या राजनीतिक लाभ के लिए इतिहास और सामाजिक संवेदनाओं से खेलना उचित है। रामजी लाल सुमन की टिप्पणी के बाद अब कानूनी कार्रवाई का दौर भी शुरू हो गया है। एक वकील ने उनके और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के खिलाफ सिविल मुकदमा दायर किया है। इस मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि सुमन ने राणा सांगा के खिलाफ अपमानजनक बयान देकर समाज में झूठी जानकारी फैलाने का प्रयास किया है।
कुल मिलाकर, राणा सांगा पर दिए गए विवादास्पद बयान ने एक बार फिर से इतिहास और राजनीति के बीच के संबंधों को सामने ला दिया है। यह विवाद न केवल राजनीतिक लाभ के लिए ऐतिहासिक तथ्यों को बदलने की कोशिशों का प्रतीक है, बल्कि समाज में उथल-पुथल और नफरत फैलाने की भी एक कड़ी है। ऐसे समय में, जब समाज को एकता और समरसता की आवश्यकता है, इस तरह के बयान केवल विभाजन और संघर्ष को बढ़ाते हैं। यह सब दिखाता है कि राजनीति और इतिहास का इस्तेमाल कभी-कभी व्यक्तिगत या दलगत लाभ के लिए कैसे किया जाता है, और इसका समाज पर दीर्घकालिक प्रभाव क्या हो सकता है।