किसके निशाने पर है डॉक्टर लाल डॉक्टर पाल की जोड़ी?
कहते हैं नेचर और सिग्नेचर बदलते नहीं हैं. खबरीलाल के साथ भी कुछ ऐसा ही है. घूमते भटकते कहीं पहुंच जाना. आजकल मास्क और हैंड ग्लव्स पहचान छुपाने में काफी मदद भी कर रहा है. खबरीलाल को पहचानने वाले तो बहुत हैं, लेकिन उनकी बल्ले बल्ले हैं पहचान छुप जाती है . यूं ही घूमते भटकते पहुंच जाते हैं परसुडीह सदर अस्पताल. पोर्टिको में गुफ्तगू करते डॉक्टर लाल और डॉक्टर पाल की बरसों पुरानी जोड़ी को देखा. अपनी तो आदत है कुछ बोलते नहीं देख कर ही बहुत कुछ समझ लेते हैं. कदम बढ़ा लिया और हॉस्पिटल में प्रवेश कर गए. ओपीडी की ओर घूमे तो अचानक नजर पड़ी अपने केबिन में बैठे एक चालबाज डॉक्टर पर. कभी कदरदानों से मन भर जाता है तो चेंबर में बैठ लेते हैं. एक हाथ सिर पर और दूसरा हाथ मोबाइल पर. देखने से ऐसा लगता है किसी बातचीत में मशगूल हैं. अति व्यस्तता है.मरीजों को देखते-देखते बहुत परेशान हैं. लेकिन सच्चाई पूरा हॉस्पिटल जानता है. अखबार ने छाप कर तो जगजाहिर कर दिया है. चापलूसी की मंडली में अव्वल स्थान रखते हैं. खैर सवाल अहम है कि इस चालबाज की जाल में अगर लाल और पाल की जोड़ी फंसी तो विभक्ति का नियम लागू हो जाए. क्योंकि उसके बाद अगर जोड़ी तो तीसरा अर्थ निकल जाए. नुकसान आखिर होगा किसका ? आम आदमी और नहीं तो वैचारिक समानता वालों में दूरियां बढ़ जाएंगी. खैर यह जरूर राहत देने वाली बात है की लाल और पाल ने डेंगू के कहर से जिले को निजात दिलाई थी. इस जोड़ी ने एक तरह से उन दिनों के सिविल सर्जन को बड़ी राहत पहुंचाई थी. एक का नाम लेते तो दोनों हाजिर. एक चीज मांगते तो चार-चार चीजे पहुंचती, लेकिन सब सकारात्मक रहता. अब देखते हैं कार्य पद्धति में इस अटूट जोड़ी को कितनी सफलता मिलती है. कोरोना और क्वारंटाइन को कितने बेहतर तरीके से नियंत्रित करते हैं.
वैसे तो माना जाता है कि डॉक्टर लाल डॉक्टर पाल कोरोना के सेनापति हैं लेकिन वे किसकी नजरों पर हैं यह समय बताएगा