*होम्योपैथिक जगत के चरक थे डॉ. बी. भट्टाचार्य : होम्योपैथ रहमतुल्लाह रहमत*
बिहार के 98 वर्षीय मशहूर होम्योपैथ डॉक्टर बी भट्टाचार्य का निधन 8 मई रविवार की सुबह सात बजकर 30 मिनट पर हो गया। पटेल नगर स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें होम्योपैथिक जगत में चरक के रूप में भी जाना जाता था । उक्त बातें ‘द हैनिमेनियन होमियोपैथिक रिसर्च सेंटर’ के रिसर्च प्रमुख होम्योपैथ रहमतुल्लाह रहमत ने कही। उन्होंने कहा कि डॉक्टर बी. भट्टाचार्य का निधन 98 साल की उम्र में हुआ। वे बिहार के मशहूर चिकित्सक थे। वे गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए विख्यात थे। उन्होंने कहा कि डॉक्टर बी. भट्टाचार्य के निधन से होम्योपैथिक जगत को अपूरणीय क्षति हुई है जिसकी भरपाई निकट भविष्य में संभव नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि जब उसने भट्टाचार्य जी के पास यह प्रस्ताव रखा था कि वह एक होम्योपैथिक रिसर्च सेंटर खोलना चाहते हैं तो उन्होंने कहा था कि जरूर खोलिए लेकिन सेंटर खोलने के साथ-साथ सेंटर बनने की कोशिश कीजिए ।
उन्होंने कहा कि डॉक्टर बी. भट्टाचार्य मूल रूप से पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे। सन 1924 में बिहारी साव लेन में इस महापुरुष का जन्म हुआ। उनके पिता पटना के प्रसिद्ध बी.एन. कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रफेसर थे। चार भाई और चार बहनों में बी. भट्टाचार्य दूसरे नंबर पर थे। उनकी स्कूली पढ़ाई पटना कॉलेजिएट स्कूल से हुई। उन्होंने कुछ दिन पटना यूनिवर्सिटी के सबसे अच्छे आर्ट्स कॉलेज पटना कॉलेज से भी पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने कोलकाता के एम. भट्टाचार्य कंपनी में चीफ केमिस्ट के पद पर कुछ दिनों तक नौकरी की। साल 1949 में कोलकाता से पटना आकर उन्होंने अपने पिता से कुछ पैसे लिए और यहां होम्योपैथिक फॉर्मेसी शुरू की। अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए उन्होंने प्राइवेट प्रैक्टिस भी शुरू कर दी। 1965 में उन्होंने छोटे भाई के साथ मिलकर पटना के कदमकुंआ इलाके में क्लीनिक चलाना शुरू कर दिया।
उन्होंने कहा कि 1972 में डॉक्टर बी. भट्टाचार्य जी ने पटना के पटेल नगर में अपना मकान बनाया और वहीं प्रैक्टिस करने लगे। 1978 में कदमकुंआ का क्लीनिक बंद कर केवल पटेल नगर स्थित अपने आवास पर ही मरीजों को देखना शुरू किया। 2019 में हार्ट की समस्या गंभीर हो जाने के बाद वह सिमित मरीजों का ही इलाज करते।
डॉक्टर बी. भट्टाचार्य की पूरी दिनचर्या केवल होम्योपैथी के बारे में सोचने और मरीजों की समस्या दूर करने में बीतता था। भट्टाचार्य जी ने पूरे जीवन न कभी टीवी देखी और न ही कभी अखबार के पन्ने पलटे। वे खाली समय में भी होम्योपैथी से जुड़े रिसर्च पेपर और किताबों का अध्ययन करते रहते।उन्होंने साइकिल पर होम्योपैथी की दवाईयां लेकर प्रैक्टिस शुरू की थी। आज के समय में यह बात एक कहानी प्रतीत होगी । शुरुआत में वे ज्यादातर गरीब तबके के मरीजों का इलाज करते थे। जो मरीज फीस देने में सक्षम न हो पाते थे उनसे कभी भी वे कुछ नहीं कहते थे ।उनसे बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, प्रफेसर जाबिर हुसैन जैसी शख्सियत बिल्कुल आम मरीज की तरह इलाज कराने आते थे। यूं तो उन्होंने भारत के अन्य राज्यों के कई मशहूर राजनीतिज्ञों, शिक्षाविदों एवं प्रसिद्ध समाजसेवियों का इलाज किया था। उनका शिष्यत्व ग्रहण कर कई होम्योपैथ आज चिकित्सा के क्षेत्र में पैठ जमा चुके हैं ।
आज के दौर में डॉक्टर प्रैक्टिस शुरू करते ही महंगी गाड़ियों और अन्य विलासिता की सामग्रियों का शौक पाल लेते हैं। ऐसी सोच वाले डॉक्टरों के लिए डॉक्टर बी. भट्टाचार्य मिसाल हैं। वे हमेशा साधारण कपड़ा पहना करते थे।
वे कहा करते थे कि इंसान को सादा जीवन उच्च विचार रखना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा मानव सेवा करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि वे बेहद सरल स्वभाव के थे।उनका मरीजों के साथ आत्मीय संबंध रहता था। डॉ बी. भट्टाचार्य के निधन से चिकित्सा जगत को अपूरणीय क्षति हुई है।