श्रीमती सरिता सिंह की पहली पुस्तक ‘देहरी की धूप ‘ (काव्य संग्रह) का लोकार्पण बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग द्वारा ऑनलाइन संपन्न हुआ!
किताब में वरिष्ठ कवयित्री डॉ शांति सुमन ने कहा कि सरिता सिंह की कविता का कथ्य सघन और संतुलन से भरा है, इनका शिल्प पथ भी अत्यंत प्रभावी है।सहजता, भाव प्रणयता उनकी कविताओं की प्रमाणिक पहचान है।
डॉक्टर जूही समर्पिता ने पुस्तक का लोकार्पण किया और कहा कि बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है सरिता सिंह।
अपनी समीक्षा में रानी सुनीता ने लिखा है उनकी आशावादिता उनकी रुकावट उनकी अवसादो पर विजयी हुई है। तभी कलम साधिका के रूप में सरिता सिंह उभरी हैं।
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इस ऑनलाइन विमोचन में संचालन की भूमिका सहयोग की अध्यक्ष डॉ जूही समर्पिता द्वारा किया गया,! विद्या तिवारी की सरस्वती वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत हुई, लोकार्पण डॉक्टर जूही समर्पिता और ज्योत्सना अस्थाना द्वारा हुआ, स्वागत भाषण ज्योत्सना अस्थाना द्वारा किया गया! किताब पर डॉक्टर उमा सिंह किसलय ने विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला, उन्होंने अपने संबोधन में जहां लेखिका की छोटी किंतु सारगर्भित पंक्ति का सस्वर पाठ किया वहीं लेखिका से आने वाले समय में बड़े कैनवास पर अलग क्षेत्रों पर भी रचना लिखने की उम्मीद की।
लेखिका के व्यक्तित्व पर डॉ अनीता शर्मा ने प्रकाश डाला और कहा कि एक ओर सरिता विशुद्ध गृहिणी हैं खुद में सिमटे रहने वाली बेहद गंभीर व्यक्तित्व के साथ विभिन्न मंचों पर जाती है ,वहीं दूसरी ओर उनकी रचना बेहद बेबाक रूप और गहराई लिए रहती है।
चमक सूरज की नही मेरे किरदार की है ,
खबर लिए आसमां के अखबार की है,
मैं चलूं तो मेरे संग आसमां चले,
बात गुरूर की नहीं मेरे एतबार की है!
डॉक्टर कल्याणी कबीर जी ने कहा भावनाओं के उतार चढ़ाव से ही रचना की सारगर्भिता रहती है, संकोची है किंतु लिखने का हौसला कमा ही लेती है।
उनके पति श्री अमित सिंह ने अपनी पत्नी को आगे भी भरसक सहयोग देने का वादा किया।
डॉ आशा गुप्ता ने कहा कि छुईमुई सरिता की झिझक धीरे धीरे खुलते देखा,
जो कलम से लिखती थी उसे मंच पर भी साहस कर बोलते देखा,।
छाया प्रसाद ने कहा सरिता के संवेदनशील रचना के हम प्रशंसक है, सरोज सिंह परमार ने कहा कभी-कभी साधारण लोग ही असाधारण कार्य कर जाते हैं,
।
रानी सुमिता ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि सामान्य औरतें अपनी भावनाओं को अपनी भावनाओं को कलमबद्ध नही कर पाती जब आप कलम उठाती है तो आपमें वह काबिलियत है तभी कलम उठा पाती है, स्त्री जब लिखती है तो उसके पीछे कितनी स्त्रियाँ ऐसी भी होती हैं जो सोचती होगी कि यह मेरे मन की बात है । उनके लेखन में विकास होता जा रहा है उन्हें लिखने से ज्यादा पढ़ने की सलाह दी है।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन में विद्या तिवारी ने कहा सभी श्रोतागण लेखिका सरिता और उसकी रचनाओं से भली प्रकार से परिचित हो गये होगें, फूल के समान लेखिका अपनी देहरी पर है।
अपने सम्बोधन में सरिता सिंह ने पारिवारिक सदस्यों , और साहित्यिक मित्रों को धन्यवाद दिया।
श्रोता और दर्शकों के रूप में अंशिका सिंह, मीरा गुप्ता ,आनंद बाला शर्मा ,गीता दुबे , निवेदिता श्रीवास्तव, सीमा सिन्हा, सुष्मिता मिश्रा, शशि कला सिन्हा, उपासना सिन्हा, अनीता निधि, बबली सिंह , के अलावा और भी कई पारिवारिक सदस्य उत्कर्ष कुमार सिंह, निभा सिंह , सुनीता ,अनामिका सिंह, दीपा सिंह,संगीता सिंह,सोनी सिंह उपस्थित रहीं।