क्रॉस वोटिंग : क्या कई विधायकों, सांसदों की अंतरात्मा ने दरकिनार कर दिया राहुल गांधी का निर्देश
देवानंद सिंह
सियासत का खेल बड़ा ही अजीबोगरीब होता है। कब कौन बाजी पलट जाए कुछ पता नहीं। पर जब गुप्त वोटिंग में इस तरह का मामला सामने आता है तो यह उस शख्स के लिए बड़ा पीड़ादायक होता है, जिसके खुद के अपने लोग दूसरे उम्मीदवार के पक्ष में वोट करते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसा ही हुआ। क्रॉस वोटिंग कांग्रेस की तरफ से हुई, लिहाजा, एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को अंतर वोट से हारने में कामयाब हुईं।
विपक्ष को उम्मीद थी कि भले ही यशवंत सिन्हा जीत न पाएं, लेकिन कड़ी टक्कर तो देंगे, लेकिन जिस तरह के परिणाम आए, उससे साफ जाहिर होता है कि शायद, कांग्रेस के खुद के सांसदों और विधायकों की अंतरात्मा ने राहुल गांधी के निर्देश को नहीं माना। आप झारखंड का उदाहरण ले लें या फिर अन्य राज्यों का, जहां विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को एक भी वोट नहीं मिला, लगभग 121 विधायकों और सांसदों ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की। सबसे ज्यादा असम में 22 क्रॉस वोट मिले। यशवंत सिन्हा को आंध्रप्रदेश, नागालैंड और सिक्किम से एक भी वोट नहीं मिला, वहीं केरल में केवल एक वोट मिला।
उधर, झारखंड में कांग्रेस के 18 विधायक हैं। अगर, सभी विधायक कांग्रेस के साथ हैं तो फिर कैसे क्रॉस वोटिंग हुई ? यह कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सवाल है। वहीं, राजस्थान के संबंध में भी यही सवाल खड़ा होता है। कुल मिलाकर, राष्ट्रपति चुनाव परिणामों से यह बात साबित होती है कि कांग्रेस के बहुत से विधायक और सांसद अंतरात्मा से राहुल गांधी के साथ नहीं हैं। अगर, होते तो इतनी बड़ी संख्या में क्रॉस वोटिंग नहीं होती। हालांकि, कोई पहली बार क्रॉस वोटिंग नहीं हुई है, बल्कि
इससे पहले राज्यसभा चुनाव और राष्ट्रपति चुनाव में भी कई बार ऐसा हो चुका है। हाल ही में, राज्यसभा चुनाव में कुलदीप विश्नोई ने क्रॉस वोटिंग की थी, जिसके बाद कांग्रेस ने उन्हें सभी पदों से बर्खास्त कर दिया था।
इससे पहले राज्यसभा चुनाव और राष्ट्रपति चुनाव में भी कई बार ऐसा हो चुका है। हाल ही में, राज्यसभा चुनाव में कुलदीप विश्नोई ने क्रॉस वोटिंग की थी, जिसके बाद कांग्रेस ने उन्हें सभी पदों से बर्खास्त कर दिया था।
वैसे, क्रॉस वोटिंग को रोकने के लिए पार्टी की ओर से व्हिप जारी किया जाता है। व्हिप जारी करने का अर्थ होता है कि अगर, आदेश के खिलाफ कोई सदस्य जाता है तो उसकी पार्टी से सदस्यता खत्म कर दी जाएगी। हालांकि, क्रॉस वोटिंग इसके बाद भी नहीं रुकी है। इसकी वजह है कि पार्टी से निकालने या निलंबित करने के बाद भी विधायक, सासंद की सदस्यता नहीं जाती है और वह अपने पद पर बने रहते हैं।
क्रॉस वोटिंग को लेकर अक्सर ही आरोप-प्रत्यारोप लगते रहते हैं। पार्टियां एक-दूसरे पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का दावा करती रहती हैं। इस समय भी क्रॉस वोटिंग रोकने के लिए सभी पार्टियां एक्शन मोड में काम कर रही हैं।
क्रॉस वोटिंग का पता पार्टियों को चल जाता है, क्योंकि राज्यसभा चुनावों और राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टी का एक प्रतिनिधि मौजूद रहता है और वह निगरानी कर सकता है कि उनके दल के प्रतिनिधि किसको वोट दे रहे हैं। इसके विरोध में कुलदीप नैयर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। नैयर की दलील थी कि उच्च सदन के सदस्यों का चुनाव गुप्त मतदान के जरिए होना चाहिए। हालांकि, उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
आम तौर पर क्रॉस वोटिंग करने वालों पर पार्टियां सख्त एक्शन लेती हैं। उन्हें पार्टी से निकालने या निलंबित करने, प्रमुख पदों से हटाने की कार्रवाई की जाती है। इसके बावजूद भी जनप्रतिनिधि की सदस्यता बनी रहती है और यही वजह है कि क्रॉस वोटिंग को रोका नहीं जा सका है। इस लिहाज से यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों और सांसदों के खिलाफ कोई एक्शन लेती है या नहीं।