देशों को परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार है, लेकिन जनहानि का भी ध्यान रखना चाहिए: जयशंकर
नयी दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बृहस्पतिवार को कहा कि देशों को विभिन्न परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार है, लेकिन उन्हें नागरिकों के हताहत होने का ध्यान रखना चाहिए और मानवीय कानूनों का पालन करना चाहिए।
राज्यसभा में जयशंकर ने प्रश्नकाल के दौरान इजराइल और फलस्तीन के बीच जारी संघर्ष पर भारत की स्थिति के बारे में पूरक प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा, ‘‘हम आतंकवाद की, हर तरह के आतंकवाद की निंदा करते हैं। हम बंधक बनाने की निंदा करते हैं। हम मानते हैं कि देशों को विभिन्न परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार है, लेकिन देशों को नागरिकों के हताहत होने का ध्यान रखना चाहिए। उन्हें मानवीय कानूनों का पालन करना चाहिए। हम युद्धविराम और हिंसा का जल्द अंत चाहते हैं।’’
नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी व मानवीय दायित्वों को बनाए रखने के संबंध में 27 अक्टूबर, 2023 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव से भारत के अलग रहने का कारण पूछे जाने पर, जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में कई प्रस्ताव थे और कुछ में भारत ने परहेज किया और कुछ में, इसके पक्ष में मतदान किया।
उन्होंने कहा, ‘‘…मतदान से दूर रहने के कई कारण हैं। जैसे कि प्रस्ताव संतुलित नहीं है, यह अधिक विभाजनकारी है, यह एक मिसाल कायम कर सकता है जिसका भारत पर असर हो सकता है या इसके व्यापक निहितार्थ हो सकते हैं।’’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘इस विशेष मामले में, हमें लगा कि प्रस्ताव को ठीक से तैयार नहीं किया गया था और न ही उस पर ठीक से विचार किया गया था। हमारी चिंता को समायोजित नहीं किया गया। इसलिए हमने मतदान से परहेज किया।’’
तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले ने संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) पर इजराइल सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध और भारत द्वारा फलस्तीन को सहायता भेजने के तरीके को लेकर भारत की स्थिति के बारे में पूछा।
इस पर जयशंकर ने कहा कि सरकार मानवीय सहायता भेजने के अपने फैसले पर कायम है और इसने यूएनआरडब्ल्यूए को सहायता की नवीनतम किश्त जारी की है।
उन्होंने आगे कहा कि भारत ने हमेशा दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन किया है और संयुक्त राष्ट्र में, भारत ने पश्चिमी तट पर इजराइल द्वारा अवैध रूप से बसाए गए लोगों के खिलाफ प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया।
गोखले ने सरकार से फलस्तीन में पश्चिमी तट पर इजराइल द्वारा अवैध रूप से बसाए गए लोगों पर भारत की स्थिति के बारे भी सवाल किया। इसके जवाब में जयशंकर ने कहा, ‘‘दो-राष्ट्र समाधान का हमने समर्थन किया। हम इस बारे में सार्वजनिक और स्पष्ट रहे हैं। दो-राष्ट्र समाधान के बारे में भ्रम की कोई वजह नहीं होनी चाहिए।’’
उन्होंने यह भी कहा कि प्रस्तावों का समर्थन करने का निर्णय लेने के लिए उनके शब्दांकन महत्वपूर्ण हैं।
जयशंकर ने 27 अक्टूबर, 2023 के प्रस्ताव के बारे में कहा, ‘‘आतंकवाद का कोई संदर्भ नहीं था। बंधक बनाने का कोई संदर्भ नहीं था। हमारे विचार में यदि कोई प्रस्ताव किसी स्थिति की संपूर्णता को प्रतिबिंबित नहीं करता है तो यह एक संतुलित समाधान नहीं है। भारत खुद आतंकवाद से पीड़ित है। अगर हम इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि आतंकवाद को कम करके आंका जाता है और अनदेखा किया जाता है तो यह हमारे हित में नहीं है कि हम ऐसा करें (समर्थन करें)।’’
युद्ध अपराधों के लिए इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, इजराइल के पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट और हमास नेता के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के वारंट पर भारत की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर, मंत्री ने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय का सदस्य नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘जब अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय का गठन किया गया था तो हमारी सदस्यता के सवाल पर विचार किया गया था। बहुत विचार-विमर्श के बाद, भारत ने सदस्य नहीं बनने का फैसला किया। आईसीसी द्वारा पारित किसी भी निर्णय के संबंध में, यह हमारे लिए बाध्यकारी नहीं है।’’
फलस्तीन को भारत की मानवीय सहायता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि नई दिल्ली ने इस विशेष समय में फलस्तीन के लोगों को सहायता प्रदान की है। इसके तहत भारत मुख्य सहायता प्रदान करने वाली एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए को 50 लाख अमेरिकी डॉलर का वार्षिक योगदान दे रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह राशि पारंपरिक रूप से दस लाख अमेरिकी डॉलर हुआ करती थी। इस सरकार ने इसे दस लाख अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 50 लाख अमेरिकी डॉलर करने का फैसला किया है।’’
जयशंकर ने कहा कि भारत ने फलस्तीन को 2023 में 70 मीट्रिक टन सहायता भेजी है, जिसमें से 16.5 मीट्रिक टन दवा है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने 2024 में फलस्तीनी प्राधिकरण और यूएनआरडब्ल्यूए को 65 मीट्रिक टन दवा भेजी है। हमने लेबनान को 33 मीट्रिक टन दवा भेजी है।’’