सीटों के बंटवारे को लेकर तालमेल जरूरी
देवानंद सिंह
बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है। महागठबंधन के दलों ने संगठन को मजबूत करने के लिए अपनी-अपनी तैयारी तेज कर दी है, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर अभी तक कोई स्पष्ट तालमेल नजर नहीं आ रहा है। यह इसीलिए, क्योंकि कांग्रेस ने कहा है कि वह हर हाल में 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
ऐसे में, तय है कि आने वाले दिनों में बिहार में भी सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद अवश्य ही दिखेगा। यह स्थिति न केवल गठबंधन के अंदर बल्कि पूरे चुनावी परिप्रेक्ष्य में अहम सवाल खड़ा करती है। सीटों के बंटवारे में खींचतान का असर महागठबंधन की एकजुटता पर पड़ेगा और यह चुनावी रणनीतियों में भी बदलाव ला सकता है।
पिछले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक राज्य की राजनीति में बड़े बदलाव आए हैं। महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, और कई अन्य छोटे दल शामिल हैं। 2020 में राजद की अगुवाई में महागठबंधन ने सत्तारूढ़ एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को चुनौती दी थी। हालांकि, विधानसभा चुनाव में राजद को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। फिलहाल, भाजपा-जदयू गठबंधन सत्ता में है। बावजूद इसके, बिहार में महागठबंधन का एक मजबूत राजनीतिक आधार है और इसके नेताओं के बीच क्षेत्रीय मुद्दों पर सहमति बनती रही है। आगामी 2025 के चुनाव में भी महागठबंधन की अहम भूमिका होने की संभावना है, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद और असहमति से निश्चित ही स्थिति चुनौतीपूर्ण होगी।
पिछले चुनाव में राजद ने 243 में 144 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 75 सीटें जीतकर आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। वहीं, कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, लेकिन कांग्रेस के केवल 19 प्रत्याशी ही जीतकर विधायक बन सके थे। महागठबंधन की गाड़ी 110 सीटों तक पहुंच सकी थी और एनडीए ने 125 सीट जीतकर सरकार बना बनाई। बिहार में बहुमत का आंकड़ा 122 है। बिहार चुनाव 2020 में जदयू केवल 43 सीटें जीत सकी थी। राजद ने कांग्रेस के प्रदर्शन को तब मुद्दा भी बनाया था। वहीं, लोकसभा चुनाव की बात करें तो आरजेडी की ओर से लोकसभा चुनाव के दौरान भी सीट शेयरिंग में कांग्रेस की दावेदारी पर कई बयान सामने आए थे, जिसमें विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन का हवाला दिया जाता था। अब आगामी चुनाव में जहां लालू यादव इस बार तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरा जोर लगाते दिखेंगे तो उस दौरान कांग्रेस के सीटों की संख्या पर क्या फैसला होगा, ये आने वाला समय ही बताएगा।
फिलहाल, यही माना जा सकता है कि महागठबंधन के विभिन्न दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। राजद और कांग्रेस के बीच हमेशा से सीटों के वितरण पर विवाद रहे हैं। 2020 के चुनाव में भी यह मुद्दा सामने आया था, जब दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे से ज्यादा सीटों की मांग की थी। अब 2025 के चुनाव के संदर्भ में यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि राजद के पास एक मजबूत संगठनात्मक आधार है और कांग्रेस को भी अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश करनी है। राजद बिहार में एक प्रमुख पार्टी के रूप में उभरी है, लेकिन कांग्रेस और अन्य छोटे दलों की भूमिका को नजरअंदाज करना भी संभव नहीं है। कांग्रेस और अन्य दलों को अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए सीटों की संख्या में इजाफा चाहिए। वहीं, राजद यह दावा कर सकती है कि उसके पास बिहार के किसानों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का समर्थन है, जो चुनावी सफलता के लिए जरूरी हैं। ऐसे में, दोनों के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाना एक जटिल कार्य हो सकता है।
सीटों के बंटवारे पर तनाव और विवादों के कारण महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठ सकते हैं। अगर, गठबंधन के दलों के बीच सामंजस्य नहीं बनता है तो यह चुनावी रणनीति को कमजोर कर सकता है। यदि, पार्टी नेतृत्व अपने-अपने चुनावी लाभ के लिए खुद को अधिक सीटें देने पर जोर देंगे तो यह गठबंधन में फूट का कारण बन सकता है। इससे न केवल गठबंधन की मजबूती पर असर पड़ेगा बल्कि इससे मतदाताओं में भी नकारात्मक संदेश जाएगा कि गठबंधन के अंदर ही दरारें हैं। बिहार जैसे राज्य में जहां जातिवाद और क्षेत्रवाद की भूमिका अहम होती है, ऐसे में गठबंधन की एकजुटता का संदेश महत्वपूर्ण होता है। यदि, महागठबंधन के दल एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते हैं या खुद को कमजोर महसूस करते हैं तो यह उनके चुनावी परिणामों को भी प्रभावित कर सकता है।
ऐसे में, महागठबंधन के अंदर सीटों के बंटवारे को लेकर असमंजस के बीच भाजपा और एनडीए के दलों के पास एक अवसर है। एनडीए की पार्टियां, खासकर भाजपा, इस असमंजस का फायदा उठा सकती हैं। भाजपा पहले से ही राज्य में एक मजबूत संगठन के रूप में स्थापित है और उसने राज्य के विभिन्न हिस्सों में अपनी पकड़ मजबूत की है। इसके साथ ही भाजपा ने अपने सहयोगियों को भी चुनावी मैदान में प्रासंगिक बनाए रखा है। एनडीए के दलों ने अपनी चुनावी तैयारी पहले ही शुरू कर दी है और वे महागठबंधन में फूट का फायदा उठाने के लिए अपनी रणनीतियों पर काम कर रहे हैं।
भाजपा ने 2020 के चुनावों में भी महागठबंधन में फूट का लाभ उठाया था और अब वे इस बार भी उसी रणनीति को अपनाने के लिए तैयार हैं। कुल मिलाकर, सीटों के बंटवारे पर असमंजस का चुनावी नतीजों पर गहरा असर पड़ सकता है। यदि महागठबंधन में सीटों को लेकर असहमति बनी रहती है तो गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठ सकते हैं, जिससे मतदाता भ्रमित हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप वोटों का बंटवारा हो सकता है, जो गठबंधन के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी दल को उसकी अपेक्षा से कम सीटें मिलती हैं तो वह अपनी पार्टी की लोकप्रियता को बनाए रखने के लिए अपनी सीटों में वृद्धि की मांग कर सकता है। इससे गठबंधन के भीतर अविश्वास का माहौल बन सकता है, जो अंततः चुनावी नतीजों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
इसके अतिरिक्त, बिहार में जातिगत राजनीति की बड़ी भूमिका है। सीटों के बंटवारे में यह भी ध्यान रखना होगा कि कौन सा दल किस जाति या समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है। महागठबंधन के पास ऐसे गठबंधन की संभावना है जो विभिन्न जाति-समुदायों का प्रतिनिधित्व कर सके, लेकिन सीटों का सही तरीके से बंटवारा न होने पर यह एकजुटता टूट सकती है। महागठबंधन को अपनी सीटों के बंटवारे में सहमति बनाने के लिए अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता होगी ताकि यह गठबंधन मजबूत रह सके और एनडीए के सामने मजबूती से खड़ा हो सके। अगर महागठबंधन को 2025 में सफलता चाहिए तो उसे सीटों के बंटवारे को लेकर अपने दलों के बीच तालमेल बनाना अत्यंत आवश्यक होगा।