विसर्जन के फूल हो जाएंगे कांग्रेस और कांग्रेसी!
देवानंद सिंह
देश में जनादेश 2024 के लिए प्रारंभिक दौर लगभग पूरा हो चुका है सभी प्रमुख पार्टियों ने उम्मीदवारों की घोषणा भी लगभग कर दी है कमोबेश प्रचार का दौर भी प्रारंभ हो चुका है सभी राजनीतिक दल विकास और साफ सुथरी पारदर्शी शासन देने का वादा हर दल कर रहा है ये तो जैसे हर चुनाव के स्थाई नारे बन चुके हैं मतदाताओं को इन पर यकीन नहीं होता और ना ही इनसे प्रभावित होकर वे मतदान करते हैं यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल चुनावी रणनीति बनाते हुए जातीय धार्मिक समीकरणों को साधने की कोशिश करते हैं 2014 /2019 और अब 2024 की बात करें तो अगर सबसे ज्यादा किसी को प्रतिनिधित्व मिलने में परेशानी हुई है तो उसमें सवर्णों को पहले पायदान पर मान लिया जाना चाहिए और फिर अगर जातीय आधार पर विश्लेषण करेंगे तो ब्रह्मर्षि सबसे पहले पायदान पर आएंगे राष्ट्रीय दलों ने तो इन्हें नजरअंदाज किया है जिसका फायदा क्षेत्रीय दलों ने उठाया है
और इसमें क्षेत्रीय दलों को सफलता भी मिली है परंतु सवर्णों की सोच क्षेत्रीय दलों से आगे की है इसलिए यह क्षत्रपो के साथ जाने से थोड़ा परहेज करते हैं जातीय समीकरण की विश्लेषण करते हुए सबसे पहले कांग्रेस की बात करेंगे फिर एक और राष्ट्रीय पार्टी भाजपा की
भारतीय राजनीति में सवर्णों के योगदान को बुलाया नहीं जा सकता है बिहार उत्तर प्रदेश लंबे समय तक इसके उदाहरण रहे हैं तो मध्य प्रदेश और राजस्थान इसके प्रमाण रहे हैं देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने वोट की राजनीति में सवर्णों के प्रति अपनी मनसा जाहिर कर दी है आंकड़ों पर भरोसा करें तो लोकसभा और विधानसभा में अब इनकी संख्या कुछ प्रतिशत की रह गई है भाजपा की बात बाद में करेंगे पहले हम कांग्रेस पर चर्चा करते हैं और अगर यही हाल रहा तो विसर्जन के फूल हो जाएंगे कांग्रेस और कांग्रेसी एक समय था की रायबरेली को गांधी परिवार छोड़ना नहीं चाहता था और गांधी परिवार लखनऊ जाना नहीं चाहता था जिसका क्या परिणाम हुआ सबके सामने है
क्या कांग्रेस की राजनीति बदल रही है क्या कांग्रेस यह मान चुकी है कि पारंपरिक वोट बैंक अब उसके लिए नहीं है क्या कांग्रेस राजनीतिक अर्थशास्त्र के दायरे में खुद को खड़ा कर एक नई राजनीति को गढ़ने में लग गई है यानी कांग्रेस को खड़ा करने से लेकर सरकार चलाने तक में अब उसे खाटी कांग्रेसी की जरूरत नहीं है जो जमीनी स्तर से जमीनी संघर्ष कर अपनी पहचान बनाए हैं कांग्रेस ने झारखंड में जब उम्मीदवारों की घोषणा की तो उसे तो यही साफ झलक रहा है कि कांग्रेस को अब पुराने साथियों की जरूरत नहीं है कांग्रेस ने झारखंड में एक साथ भूमिहारों के साथ अल्पसंख्यकों को भी नाराज किया है जो कांग्रेस अल्पसंख्यकों के लिए हमेशा गाना गाने के लिए तैयार रहती है टिकट घोषणा के समय उसे उसकी याद नहीं आई और भूमिहार की बात करें तो झारखंड के 3 लोकसभा क्षेत्र धनबाद, कोडरमा एवं चतरा में भूमिहार की निर्णायक संख्या है। धनबाद में 2.5 लाख कोडरमा में 2 लाख और चतरा में करीब 2 लाख। कोडरमा और धनबाद में भूमिहार सांसद कई बार जीते भी हैं। झारखंड विधानसभा में भी 11 विधानसभा में भूमिहार निर्णायक भूमिका में है। इसके बावजूद झारखंड गठन के बाद कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में भूमिहारों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया।
कभी राजनीति में अपनी दबदवा कायम रखने वाली ब्रह्मर्षि समाज अपने गौरवशाली इतिहास को लौटा पाएगी यह बड़ा सवाल अब खड़ा हो चुका है समाज की राजनीति करने वाले कुलबुलाहट में तो है परंतु खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं राष्ट्र संवाद ने झारखंड बिहार उत्तर प्रदेश दिल्ली से समाज की राजनीति करने वाले पुरोधाओं से जब बात की तो लगा कि राष्ट्र संवाद की एंट्री इस मुद्दे पर बहुत देर से हुई है समाज के विरोध इस पर गहन मंथन कर रहे हैं और जो संकेत मिले हैं उससे यह साफ दिख रहा है कि विसर्जन के फूल हो जाएंगे कांग्रेस और कांग्रेसी साफ लफ्जों में कुछ अभिभावकों ने बताया कि हम दूसरी पार्टी से भी निपेंगे परंतु पहले इस बार कांग्रेस की ही बारी है
यहां जिक्र करना मुनासिब होगा कि भाजपा से नाराज विधायक सरयू राय ने धनबाद से चुनाव लड़ने की कई बार बात की लेकिन उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अगर कांग्रेस किसी दमदार प्रत्याशी को मैदान में उतरती है तो वह इस पर विचार करेंगे इस पर भी चर्चा —–
*जातीय समीकरण पर विश्लेषण जारी: –*