…और, इस बार भी देख रही है!
अजीत राय
नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन के छह माह पूरे होने पर बुधवार को देश के किसानों के द्वारा काला दिवस मनाया गया। इस मौके पर भाकियू नेता राकेश टिकैत ने कहा कि यह आंदोलन कानून रद्द होने तक चलता रहेगा। सरकार आंदोलन को कुचलने का प्रयास करेगी। आंदोलन का हश्र क्या होगा, पता नहीं। हालांकि, ऐसा उन्होंने क्यों कहा, यह तो वो ही जानें।
यहाँ भाकियू नेता राकेश टिकैत की यह बात थोड़ी चिंता पैदा करने वाली है कि- ‘यह आंदोलन लंबा चलने वाला है।’ उनका कहने का तात्पर्य यह था कि तीनों कृषि कानून जब तक रद्द नहीं हो जाता, तब तक आंदोलन चलता ही रहेगा। उनके कहने के मुताबिक अगर ऐसा ही रहा, तो फिर देश की अर्थव्यवस्था का क्या होगा..? उसकी चिंता कौन करेगा..?? क्योंकि, हमसब तो यही जानते हैं कि किसान तो किसी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है। वह तो आर्थिक पक्ष की ओर निहारता है। खेत-खलिहान से फुर्सत मिलने पर बेटी के ब्याह की चिंता कहीं ज्यादा करता है। वह एक फसल काटता है, तो लगे हाथ दूसरे की तैयारी में लग जाता है। इन सभी बातों पर गौर फरमाने और किसानों की पृष्ठभूमि पर शिद्दत से नजर डालने पर जो एक बात उभर कर सामने आती है, वह यह है कि किसानों के पास तो आंदोलन और राजनीति करने की तो फुर्सत ही नहीं!
अब जहां तक तीनों कृषि कानून रद्द होने की बात है, तो यह संभव तो है, पर यह सबकुछ सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है। हां, प्रक्रिया थोड़ी जटिल जरूर है, पर सरकार की इच्छाशक्ति के आगे कुछ भी नहीं। पर, हालिया प्रदर्शन पर जो सरकार कुछ बोलने तक को राजी नहीं, उससे ऐसी अपेक्षा करना कि वह सदन से पारित कानून को रद्द करने की भी सोचेगा, किसी मुगालता पालने से कम नहीं। आखिर, जिस सरकार ने विधेयक पारित करवाने के लिए राज्यसभा में अनियमितता बरतने से लेकर सांविधानिक प्रावधानों की अवज्ञा तक की परवाह नहीं की, भला वह सदन से पारित कानून को रद्द करने जैसा आत्मघाती कदम क्यों उठाना चाहेगी..?
आंदोलन के हश्र की बाबत जैसा उन्होंने कहा कि, ‘हमें पता नहीं।’ तो यहां, मैं भी उनके स्वर में अपना स्वर मिलाते हुए दो बातें जरूर कहना चाहूंगा, जिसमें पहला यह है कि,’ इतिहास गवाह है, लंबे आंदोलन कभी बेहतर परिणाम नहीं देते। और दूसरा, किसान आंदोलन में अक्सर राजनीति बस अपना फायदा देखती है।’
लेखक पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता हैं