वरिष्ठ अधिवक्ता ममता सिंह ने बताई नए कानून की खूबियां
कानून की कलम से
1 जुलाई से देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू होंगे तीनों नए कानून वर्तमान में लागू ब्रिटिश काल से ही भारतीय दंड संहिता आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम के जगह लेंगे अब यह नए कानून के नाम भारतीय भारतीय न्याय संहिता (बी एनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएसए) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएनएसएस) होंगे।
भारतीय न्याय संहिता
(बीएनएस) भारतीय न्याय संहिता 163 साल पुराने आईपीसी की जगह लगा इस कानून के सेक्शन 4 के अंतर्गत सजा के तौर पर दोषी को सामाजिक सेवा करनी होगी शादी का धोखा देकर यौन संबंध बनाने पर 10 साल की सजा और जुर्माना का प्रावधान है साथ ही नौकरी या अपनी पहचान छुपा कर शादी के लिए धोखा देने पर भी सजा होगी संगठित अपराध जैसे अपहरण ,डकैती ,गाड़ी की चोरी ,कॉन्टेक्ट किलिंग, आर्थिक अपराध ,साइबर क्राइम के लिए भी बड़े-बड़े साज की प्रावधान किया गया है भारतीय न्याय संहिता में राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाली डालने वाले काम पर भी कड़ी सजा दी जाएगी ।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
(बीएन एसएस) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 1973 के सीआरपीसी की जगह लगा इस कानून के जरिए प्रक्रियात्मक कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं इस कानून के मुताबिक अगर किसी को पहली बार अपराधी माना गया तो वह अपने अपराध की अधिकतम सजा का एक तिहाई पूरा करने के बाद जमानत हासिल कर सकता है ऐसे में विचाराधीन कैदियों के लिए तुरंत जमानत पाना मुश्किल हो जाएगा हालांकि यह कानून आजीवन कारावास की सजा पाने वाले अपराधियों पर लागू नहीं होगा इस कानून के अंतर्गत कम से कम 7 साल की कैद की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच अब अनिवार्य हो जाएगा फोरेंसिक एक्सपर्ट्स अपराध वाली जगह से सबूत को इकट्ठा और रिकॉर्ड करेंगे ।वहीं अगर किसी राज्य में फॉरेंसिक सुविधा का अभाव होने पर दूसरे राज्य में भी इस सुविधा का इस्तेमाल किया जाएगा ।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम
(बीएसए)भारतीय साक्ष्य अधिनियम बीएसए 1872 के साक्ष्य अधिनियम की जगह लगा इस कानून में कई बड़े बदलाव किए गए हैं इसमें इलेक्ट्रॉनिक सबूत को लेकर नियमों को विस्तार से बताया गया है और द्वितीय सबूत को शामिल किया गया है अब तक इलेक्ट्रॉनिक्स रिकॉर्ड्स की जानकारी एफिडेविट तक ही सीमित होती थी पर इसके बारे में कोर्ट को विस्तृत जानकारी देनी होगी कोर्ट को बताना होगा कि इलेक्ट्रॉनिक सबूत में क्या-क्या शामिल है
अब इस तीन नए कानून में हमारी चिंतनीय बात यह है कि आपराधिक न्याय प्रणाली पहले से ही बहुत तनाव में है, कम से कम शुरुआत में तो बदलावों को आत्मसात करने के लिए संघर्ष कर सकती है। नए कानूनों को विकसित होने और परिपक्व होने में कई साल लगेंगे। असली परीक्षा तब शुरू होगी जब हितधारक कानूनों के साथ जुड़ेंगे और अदालतें उन्हें व्याख्या के लिए लेंगी। ये चुनौतियाँ कानून प्रवर्तन एजेंसियों, अधिवक्ताओं और न्यायिक अधिकारियों सहित सभी संबंधितों के व्यापक प्रशिक्षण की तात्कालिकता और महत्व को रेखांकित करती हैं। नए कानूनों के कार्यान्वयन के लिए पुलिस बल का आधुनिकीकरण भी एक पूर्व-आवश्यकता है। भारत में नए आपराधिक कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आपराधिक न्याय अधिकारियों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को बढ़ाने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। मौजूदा पुलिस अधिकारियों को अपराध स्थल को संरक्षित करने और साक्ष्य एकत्र करने और पैक करने के आवश्यक फोरेंसिक कार्य से निपटने के लिए प्रशिक्षित
उपलब्ध न हो जाए।