मतदान से ही पुख्ता होगी जनतंत्र की जड़ें
:– डॉ कल्याणी कबीर
“समझने ही नहीं देती
सियासत हमको सच्चाई,
कभी चेहरा नहीं मिलता
कभी दर्पण नहीं मिलता”
जनतंत्र के सिद्धांत जितने सरल – सहज हैं , राहें उतनी ही जटिल होती जा रही हैं । पर ये निर्विवाद सत्य है कि
जनतंत्र की जड़ों की मजबूती के लिए जरूरी है कि मतदान की प्रक्रिया की ज़मीन मजबूत हो । इस महापर्व की सफलता और सार्थकता के लिए हर जन की भागीदारी जरूरी है । कहते हैं ” सौ सुनार की एक लुहार की ! ” पाँच साल तक कोई नेता अपने क्षेत्र की समस्याओं के प्रति कितना जागरूक और संवेदनशील रहा है , इसकी प्रतिक्रिया उसी एक दिन जनता के मतदान के रूझान से स्पष्ट हो जाता है ।
अब ऐसे में जरूरी है कि जनता अपने इस बहुमूल्य अधिकार को जाया न करे । पचास प्रतिशत समस्याओं का हल मतदान के प्रयोग और सही प्रत्याशी के चुनाव से ही संभव है । चुनाव के परिणाम के पश्चात सिर धुनने से कोई लाभ नहीं । जरूरी है कि मतदान के दिन अपने होशो – हवास में अपने इस अधिकार का प्रयोग करें । साथ ही किसी भी लालच में आकर अपने मताधिकार की ” ऐसी की तैसी ” न करें । हमारे देश के गणतंत्र के समक्ष यह भी बड़ी चुनौती है । आज भी हमारे देश में अधिकांश लोग ऐसे हैं जो दो रोटी
के जुगाड़ में दिनभर परेशान रहते हैं । उनके लिए लोकतंत्र और मतदान की अनिवार्यता मायने नहीं रखती । नतीजतन वे या तो मतदान करते ही नहीं या मतदान को चंद सिक्कों और अन्य लालच के वशीभूत होकर गिरवी रख दिया करते हैं, बेच दिया करते हैं । ये स्थिति लोकतंत्र की मूल आत्मा को दीमक की तरह खोखली कर देती है । इसका कारण जागरूकता और शिक्षा का अभाव है । साथ ही दायित्व बोध की कमी भी इस परिस्थिति को और भयावह बना देती है । जरूरी है कि हर नागरिक राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी से मुँह न मोड़ें । अकर्मण्यता की आड़ में इसे अवकाश का दिवस समझकर व्यर्थ न करें बल्कि पूरी जिम्मेदारी के साथ देश के निर्माण और विकास में अपना योगदान दें । भावनाओं और जाति बिरादरी के संकुचित सोच से ऊपर उठकर ऐसे व्यक्ति के पक्ष में मतदान करें जो ईमानदारी से जनता के लिए सेवा कार्य करे और जन – समस्याओं के समाधान के लिए कृतसंकल्प हो ।
“हर आदमी में होते हैं दस – बीस आदमी ,
जिसको भी देखना हो
कई बार देखना !”
किसी भी सरकार के काम पर सवाल उठाने के पहले जरूरी है कि हम मतदान के अपने अधिकार का प्रयोग करें और अपने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को दुरुस्त करें ।
राष्ट्र को सही दिशा देने के लिए एक मजबूत जनशक्ति और जनता की स्वस्थ सोच जरूरी है । ताकि मतदान की प्रक्रिया किसी भी गलत फैसले का शिकार न हो ।
हर नागरिक चाहे वो किसी भी उम्र का हो, उसका नैतिक दायित्व है कि मतदान में भागीदार बनें और जनतंत्र पर अपनी आस्था को बरकरार रखे । सिर्फ शिकायत करने की परंपरा से राजनीति का पहिया नहीं चल सकता है । जरूरत इस बात की है कि व्यक्ति अपने राष्ट्र की गरिमा का सम्मान करते हुए सही व्यक्ति को वोट दे ताकि जनकल्याण के कामों को गति मिल सके और कोई बाधा न पहुँचे । निश्चेषटता या शिथिलता का जनतंत्र की गतिविधि में कोई स्थान नहीं है । इसलिए अवश्य अपने इस बेशकीमती अधिकार का अनुपालन करें और देश गढ़ें ।
” हाथ आँखों पे रख लेने से खतरा नहीं जाता ,
तलवार से मौसम कोई
बदला नहीं जाता ! ”