शाह ब्रदर्स मामला- अब क्या अंजाम पायेगी सरयू राय की मुहिम?
आनंद कुमार
सरयू राय जब कुछ बोलते हैं, तो झारखंड की राजनीति में उसका असर होता है. इसकी ठोस वजह भी है. वह प्रमाणों के साथ बोलते हैं. वैसे तो वह एक खांटी राजनीतिज्ञ हैं, लेकिन जब भ्रष्टाचार और पर्यावरण का मुद्दा आता है, तो वह एक राजनेता की बजाय एक्टीविस्ट और ह्विसिल ब्लोअर की भूमिका में दिखाई पड़ते हैं. सारंडा के जंगलों में लौह अयस्क का अवैध खनन और दामोदर-स्वर्णरेखा के पानी में प्रदूषण की मिलावट के खिलाफ लंबे समय से अभियान चला रहे सरयू राय आजकल शाह ब्रदर्स नाम की कंपनी को उसका स्टॉक बेचने के इजाजत दिये जाने के खिलाफ मुखर हैं.
हेमंत सरकार को समर्थन दे रहे सरयू राय ने राज्य के खान सचिव के आदेश पर कई ट्वीट कर सवाल उठाये हैं और मुख्यमंत्री को एक लंबा पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने अपनी बातों के प्रमाण भी दिये हैं. इससे पहले उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया था, जिसमें दिखाया गया कि शाह ब्रदर्स के पास उतना स्टॉक ही नहीं है, जितने के उठाव की अनुमति दी गयी है. दरअसल शाह ब्रदर्स का मामला कोई नया नहीं है. सरयू राय 2017 से ही इस मामले को उठा रहे हैं और इसके लिए उन्होंने बड़ी राजनीतिक कीमत भी चुकाई है. इस मामले को जानने के लिए थोड़ा इतिहास में जाना होगा.
झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में लोहा पाया जाता है. यह इलाका एशिया के सुप्रसिद्ध साल वनों का है, जिसे सारंडा वन क्षेत्र कहा जाता है. सारंडा जंगल पश्चिमी सिंहभूम जिले के दक्षिणी भाग से एक लंबी पट्टी के रूप में ओडिशा तक फैला हुआ है.
प्रागैतिहासिक काल से यहां निवास करनेवाले असुर जनजाति के लोग जमीन में दबे इस खनिज से परिचित थे और वे यहां लोहा गलाकर कृषि और शिकार के औजार बनाया करते थे. ब्रिटिश काल में यहां लोहे की खदानों की खोज की गयी और सन 1907 में देश की पहली इस्पात इकाई के रूप में जमशेदपुर में टिस्को जो अब टाटा स्टील है, की स्थापना की गयी. सरकार ने सारंडा क्षेत्र में लौह अयस्क खनन के 50 से अधिक पट्टे दिये हैं, जो सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों को आवंटित हैं. वैध खनन के साथ ही झारखंड में माइनिंग प्लान, फॉरेस्ट प्लान और इनवायरमेंटल प्लान को नजरअंदाज कर लौह अयस्क का अवैध खनन किया जाता रहा है और यह बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी रहा है.
वर्ष 2014 में झारखंड में भाजपा की सरकार बनी. रघुवर दास इसके मुख्यमंत्री थे. सरकार ने कंपनियों द्वारा विभिन्न नियम-कानूनों के उल्लंघन की जांच के लिए राज्य के विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक समिति बनायी. इस समिति ने वर्ष 2016 में लौह अयस्क का खनन करनेवाली डेढ़ दर्जन कंपनियों के खनन पट्टे रद्द कर दिये.
सरकार के राजस्व पर्षद की ओर से इन कंपनियों पर हजारों करोड़ का जुर्माना भी लगाया गया. शाह ब्रदर्स इन्हीं डेढ़ दर्जन कंपनियों में से एक है. कुछ महीनों बाद अचानक इन कंपनियों का पट्टा पुर्नजीवित करने की कवायद शुरू हो गयी. इसके पीछे बहुत सी ताकतें सक्रिय थीं. शाह बदर्स पर खान विभाग के अफसर मेहरबान थे. इस मामले में रघुवर दास सरकार में मंत्री सरयू राय ने राज्य के तत्कालीन महाधिवक्ता अजीत कुमार पर भी सवाल खड़े किये. उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने शाह ब्रदर्स को क्षतिपूर्ति के एवज में एकमुश्त जुर्माना देने का प्रावधान किया था, लेकिन महाधिवक्ता ने इस मामले की सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट को इससे अवगत नहीं कराया. उनका कहना था कि इससे राज्य सरकार को घाटा होगा. महाधिवक्ता होने के नाते उन्हें सरकार का पक्ष रखना चाहिए था. किसी मामले में सहमति का अधिकार महाधिवक्ता को नहीं है जबतक कि राज्य सरकार से विमर्श नहीं हो.
जबकि माइनिंग लीज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि कंपनियों पर लगाया गया 100 फीसदी जुर्माना उन्हें एक बार में भरना होगा. इसमें देरी करने पर 24 फीसदी ब्याज भी चुकाना होगा. महाधिवक्ता मामले को लेकर मंत्री सरयू राय ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को कई पत्र लिखे, सार्वजनिक बयान दिये. इसके जबाव में सरकार ने तो चुप्पी साध ली, लेकिन महाधिवक्ता के नाते राज्य बार कौंसिल के पदेन अध्यक्ष अजीत कुमार ने मंत्री सरयू राय के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करा दिया.
जाहिर था सरयू राय बिफरते, और वे बिफरे भी. उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि महाधिवक्ता की नियुक्ति कैबिनेट करती है और बार कौंसिल से एक कैबिनेट मंत्री के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कराकर अजीत कुमार ने राज्य सरकार का अपमान किया है. इसके लिए उन्हें तत्काल हटाया जाये. लेकिन मुख्यमंत्री ने अजीत कुमार को पद से नहीं हटाया. सरयू राय ने भाजपा नेतृत्व तक इन बातों को पहुंचाया.
अमित शाह, जो तब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, उनसे मिलने दिल्ली गये. वहां भेंट नहीं हुई तो उन्हें चिट्ठी लिखकर आ गये. राज्य मंत्रिपरिषद से इस्तीफे की अनुमति मांगी. कोई जवाब नहीं मिलने पर कैबिनेट की बैठकों में जाना बंद कर दिया. यानी सरकार में रहते राय को तब विपक्ष के नेता की उपाधि दी जाने लगी थी. राय के तीखे विरोध का ही असर था कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के मातहत खान विभाग के आला अधिकारी चाह कर भी शाह ब्रदर्स की मदद नहीं कर पाये.
जब तक रघुवर सरकार रही, शाह ब्रदर्स का मामला लटका रहा. हां सरयू राय को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. भारतीय जनता पार्टी से उनका तीन दशक पुराना संबंध टूट गया. पार्टी ने उन्हें चुनाव में टिकट नहीं दिया. राय ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
जमशेदपुर के भुवनेश्वरी मंदिर से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए सरयू राय ने झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को शुभकामना दी. जवाब में हेमंत सोरेन ने भी उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बनाते हुए उनकी जीत की कामना की. राय हेमंत के चुनाव प्रचार में भी शामिल हुए. सरयू राय को कहीं न कहीं यह बात भी जरूर खलती होगी कि जिस शाह ब्रदर्स के मामले ने उनकी राजनाति की पूरी धारा को मोड़ दिया, भाजपा से 30 साल पुराना संबंध तोड़ने पर विवश कर दिया, वही काम हेमंत सोरेन की सरकार के अफसरों ने चुपके से कर दिया. यही कारण है कि राय इस बार पहले से ज्यादा मुखर हैं.
अब देखना है कि मुख्यमंत्री के स्तर से सरयू राय की चिट्ठी पर कोई कार्रवाई होगी या वे राजनीति के इस बीहड़ में अकेले ही अपनी अलख जगाये रखेंगे. समय गवाह है कि सरयू राय सिर्फ मुद्दे ही नहीं उठाते, उन्हें अंजाम तक भी पहुंचाते हैं. लालू प्रसाद और मधु कोड़ा इसके उदाहरण हैं. ऐसे तेवरवाले सरयू राय की शाह ब्रदर्स के मामले को लेकर जारी मुहिम क्या अंजाम पायेगी, यह देखना भी दिलचस्प होगा.