बच्चों को संक्रमित रक्त चढ़ाने की घटना लापरवाही और असंवेदनशीलता की लगातार चलती प्रयोगशाला का परिणाम
धीरज कुमार सिंह
चाईबासा सदर अस्पताल में जो हुआ, वह हमारे स्वास्थ्य तंत्र की ऐसी एक्स-रे रिपोर्ट है, जिसमें हड्डियां तो साफ़ दिखती हैं, पर नीयत की नसें गायब हैं। पांच मासूम बच्चों को जीवनदान देने के नाम पर संक्रमित रक्त चढ़ाया गया और अब वे एचआईवी पॉज़िटिव पाए गए हैं। सरकार कहती है कि यह एक दुर्घटना थी, पर यह दुर्घटना नहीं, बल्कि लापरवाही और असंवेदनशीलता की लगातार चलती प्रयोगशाला का परिणाम है, जहां डॉक्टर प्रयोग करते हैं, पर प्रयोगशाला नहीं। राज्य में अस्पतालों में खून की जांच न हो, यह कोई नई बात नहीं है। यहां तो कई बार मरीजों की जांच से पहले डॉक्टर का खुद का ब्लड प्रेशर मापा जाता है, यह देखने के लिए कि वह खुद इलाज लायक हैं या नहीं। स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी के नेतृत्व में विभाग ने एक मिशन शुरू किया है, स्वास्थ्य को वेंटिलेटर पर रखो, और बयानबाज़ी से उसे ऑक्सीजन दो।
इस घटना के बाद से राजनीति पारा भी चढ़ गया है। बीजेपी विधायक पूर्णिमा साहू ने कहा कि यह झारखंड के स्वास्थ्य तंत्र नहीं, बल्कि स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी की नाकामी का नतीजा है। उनके कार्यकाल में अस्पताल लापरवाही, अव्यवस्था और गैरजिम्मेदारी का अड्डा बन चुके हैं। यह सिर्फ एक गलती नहीं, बल्कि व्यवस्था के पतन की जीवंत तस्वीर है। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से सवाल किया कि अब तक गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशुओं की थैलेसीमिया जांच को निःशुल्क और अनिवार्य क्यों नहीं बना पाई? अगर, यह व्यवस्था होती तो कई जिंदगियां समय रहते बचाई जा सकती थीं। ज़रा सोचिए मुख्यमंत्री जी, उन मासूम बच्चों के परिवारों पर क्या बीत रही होगी, जिनका भविष्य अब अंधकार में डूब चुका है। यह केवल लापरवाही नहीं बल्कि राज्य प्रायोजित हत्या है। डॉक्टरों या तकनीशियनों का निलंबन पर्याप्त नहीं, असली जिम्मेदारी उस मंत्री की है जिसने पूरे स्वास्थ्य तंत्र को वेंटिलेटर पर पहुंचा दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि यह इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना है। उन्होंने कहा, यह न केवल चिकित्सा नैतिकता का उल्लंघन है, बल्कि मानवाधिकारों का गंभीर हनन और कानूनी रूप से दंडनीय अपराध भी है। पूर्व मुख्यमंत्री ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह घटना इंसानियत को शर्मसार करने वाली है। जिन मासूम बच्चों को जीवन देने के लिए रक्त चढ़ाया गया, आज वही रक्त उनके लिए जीवन का श्राप बन गया है। यह राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग की घोर लापरवाही का परिणाम है।
श्री मुंडा ने कहा, जनजातीय बाहुल्य राज्य झारखंड में यह घटना स्वास्थ्य व्यवस्था की जमीनी हकीकत को उजागर करती है। जनजातीय समाज थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी आनुवंशिक बीमारियों से जूझ रहा है, जिनकी रोकथाम और उपचार के लिए सरकार ने अनेक योजनाएं घोषित की हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2047 तक देश को सिकल सेल एनीमिया मुक्त भारत बनाने का संकल्प लिया है। इस मिशन के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2023-24 से 2025-26 के बीच लगभग 7 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग का लक्ष्य रखा गया है। यह योजना विशेष रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे जनजातीय बहुल राज्यों में लागू की गई है।
किन्तु चाईबासा की यह घटना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि झारखंड में राज्य सरकार की शिथिलता के कारण इस मिशन का क्रियान्वयन अत्यंत कमजोर और अव्यवस्थित है। राज्य सरकार ने इस मामले पर लीपापोती करने के लिए कार्रवाई का दिखावा करने का काम की है, आज स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही ने पांच लोगों की जान लेने का काम किया है, सरकार को इस मामले की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच करवाए। झारखंड में सभी जिलों के ब्लड बैंक और अस्पतालों की तत्काल ऑडिट जांच करवाई जाए, साथ ही सिकल सेल एनीमिया मुक्त भारत मिशन के राज्य स्तरीय कार्यान्वयन की समीक्षा की जाए और इसमें पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
इस मामले के बाद सरकार ने तुरंत कार्रवाई की घोषणा कर दी, और कुछ डॉक्टरों को निलंबित किया गया, कुछ बयान दिए गए, और मंत्री महोदय ने कैमरे के सामने गहरी चिंता जताई। पर इन सबके बीच पांच बच्चों की ज़िंदगी एक क्लिपिंग बनकर रह गई, खबरों में कुछ घंटे के लिए चली, फिर अगली प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसी नई योजना ने उसे विस्थापित कर दिया। यह वही स्वास्थ्य विभाग है, जो हर साल दावा करता है कि हमने चिकित्सा सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाया है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि जिन अस्पतालों में एम्बुलेंस नहीं पहुंचती, वहां अब संक्रमण पहुंच रहा है, जिन डॉक्टरों के पास ग्लव्स नहीं हैं, उनके पास गाइडलाइन ज़रूर है, और वही गाइडलाइन फाइलों में इतनी बार फोटोकॉपी हुई है कि अब उस पर स्याही भी शर्माती है।
झारखंड को अब सिर्फ एक स्वास्थ्य मंत्री नहीं, बल्कि एक सिस्टम डॉक्टर चाहिए, जो प्रशासन को डिटॉक्स करे, फाइलों से संक्रमण मिटाए, और अस्पतालों में संवेदनशीलता की नसों में खून फिर से बहाए, लेकिन फिलहाल, सिस्टम को जो खून चढ़ाया जा रहा है, वह भी संक्रमित है, सत्ता के वायरस से, लालफीताशाही के बैक्टीरिया से, और लापरवाही की क्रॉनिक बीमारी से, और जब तक यह संक्रमण नहीं रुकेगा, तब तक हर अस्पताल एक नए चाईबासा की तैयारी में रहेगा, क्योंकि झारखंड का स्वास्थ्य तंत्र अब इलाज नहीं करता, वह बस खून का नमूना लेता है, और मरीज को सिस्टम का टेस्ट रिज़ल्ट बना देता है।


