चेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया के खिलाफ एक्शन के मायने
देवानंद सिंह
भारत में विमानन सुरक्षा नियामक संस्था ब्यूरो ऑफ़ सिविल एविएशन सिक्योरिटी (BCAS) द्वारा तुर्की की एयरपोर्ट ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी चेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया की सुरक्षा मंजूरी तत्काल प्रभाव से रद्द किए जाने का निर्णय सिर्फ एक प्रशासनिक कार्रवाई भर नहीं है। यह कदम एक व्यापक भू-राजनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा संदर्भ में उठाया गया प्रतीत होता है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, विदेशी निवेश, रणनीतिक अवसंरचना और वाणिज्यिक हितों के बीच एक जटिल संतुलन देखने को मिलता है।
दरअसल, चेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया स्वयं को एक स्वतंत्र भारतीय इकाई बताती है, पिछले 15 वर्षों से भारत के नौ प्रमुख हवाई अड्डों—दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु, अहमदाबाद, गोवा, चेन्नई, कोचीन और कन्नूर—पर ग्राउंड हैंडलिंग और कार्गो सेवाएं प्रदान कर रही थी। इस कंपनी की भूमिका दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन जैसे उच्चस्तरीय आयोजनों में भी अहम रही है। कंपनी का दावा है कि उसके पास भारत में 7,800 कर्मचारी हैं और वह अब तक 58,000 उड़ानों की हैंडलिंग और 5.5 लाख टन से अधिक कार्गो प्रबंधन कर चुकी है, लेकिन 16 मई 2025 को नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो ने चेलेबी की सुरक्षा मंजूरी यह कहते हुए रद्द कर दी कि यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा हित में लिया गया है। इसके पीछे प्रत्यक्ष कारण नहीं बताया गया, परंतु पृष्ठभूमि में चल रही घटनाएं इस कार्रवाई की व्याख्या कर सकती हैं।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया। इसके बाद सात मई को भारत ने पाकिस्तान में सीमापार हवाई हमले किए। इस कार्रवाई की आलोचना करते हुए तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन ने पाकिस्तान के प्रति समर्थन जताया और भारत की कार्रवाई की निंदा की। तुर्की की यह प्रतिक्रिया न केवल कूटनीतिक रूप से अप्रिय थी, बल्कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को यह जांचने पर विवश कर गई कि भारत में कार्यरत तुर्की से जुड़ी कंपनियों की संरचना और संचालन किस प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं। इस संदर्भ में एक और चिंता की बात सामने आई, जब भारत ने दावा किया कि पाकिस्तान की ओर से की गई जवाबी कार्रवाई में तुर्की के ‘एसिसगॉर्ड सोनगार’ ड्रोन का उपयोग किया गया। भारत के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता कर्नल सोफ़िया कुरैशी ने पुष्टि की कि प्रारंभिक फॉरेंसिक जांच में इन ड्रोन के मलबे में तुर्की तकनीक के संकेत मिले हैं। ऐसे में तुर्की की कंपनियों को भारत के सामरिक और संवेदनशील क्षेत्रों में संचालन करने देना कितना उचित है, यह बहस छिड़ना स्वाभाविक था।
चेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया का कहना है कि वह एक भारतीय कंपनी है, जो भारतीय कानूनों के तहत पंजीकृत है और उसका नेतृत्व भारतीय पेशेवरों के हाथ में है। कंपनी का दावा है कि उसकी 65% हिस्सेदारी अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर, यूएई, ब्रिटेन और पश्चिमी यूरोप के निवेशकों के पास है। तुर्की से इसका संबंध केवल संस्थापक सेलेबियोग्लू परिवार के दो सदस्यों (कैन और कैनान) के पास कुल 35% हिस्सेदारी तक सीमित है। कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि उसका संचालन पारदर्शिता और कॉर्पोरेट तटस्थता के सिद्धांतों पर आधारित है और वह किसी विदेशी सरकार या राजनीतिक एजेंडे से जुड़ी नहीं है, लेकिन सरकार की नजर में महज स्वामित्व के आंकड़े ही पर्याप्त नहीं हैं। जब बात हवाई अड्डों जैसे रणनीतिक क्षेत्रों की हो, जहां वीवीआईपी मूवमेंट, अंतरराष्ट्रीय कार्गो, एविएशन डेटा और सामरिक सुरक्षा शामिल होती है, तब मामूली सी आंशका भी बड़ी राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती बन सकती है।
भारत सरकार के फैसले के तुरंत बाद दिल्ली एयरपोर्ट ऑपरेटर DIAL ने चेलेबी के साथ अपने अनुबंध को समाप्त कर दिया और ग्राउंड हैंडलिंग एवं कार्गो टर्मिनल संचालन की जिम्मेदारी किसी अन्य सेवा प्रदाता को सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इससे यह संकेत मिला कि यह निर्णय पहले से तय रणनीतिक कार्रवाई का हिस्सा था, जिसे परिस्थितियों के अनुसार समयबद्ध तरीके से लागू किया गया। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर उस प्रश्न को सामने ला खड़ा किया है कि वैश्वीकरण की दौड़ में हम कितनी दूर तक राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता कर सकते हैं? विदेशी निवेश, तकनीकी दक्षता और वैश्विक साझेदारियाँ आर्थिक विकास के लिए अनिवार्य हैं, लेकिन जब यही साझेदारियाँ किसी संभावित शत्रु देश से परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जुड़ी हों, तब उनका मूल्यांकन एक नए दृष्टिकोण से किया जाना ज़रूरी हो जाता है।
यहां ध्यान देने योग्य है कि चेलेबी न केवल तुर्की में पंजीकृत है, बल्कि यह तुर्की की पहली निजी ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी रही है। इसकी मातृ कंपनी ‘एक्टेरा ग्रुप’ तुर्की की सबसे बड़ी प्राइवेट इक्विटी फंड मानी जाती है। ऐसे में भारत सरकार का चिंतित होना स्वाभाविक है, विशेषकर तब जब दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध तनावपूर्ण होते जा रहे हों। चेलेबी द्वारा सुरक्षा मंजूरी रद्द किए जाने से कंपनी को निश्चित रूप से बड़ा झटका लगा है। भारत, तुर्की के बाद चेलेबी का दूसरा सबसे बड़ा एविएशन बाजार था। कंपनी ने अपने बयान में इस निर्णय को अप्रत्याशित बताते हुए सरकार के प्रति पारदर्शिता और सहयोग की प्रतिबद्धता दोहराई है। लेकिन उद्योग के जानकार मानते हैं कि जब तक राजनीतिक और रणनीतिक स्पष्टता नहीं आती, तब तक चेलेबी जैसी कंपनियों के लिए भारत में पुनः प्रवेश करना कठिन होगा।
वहीं, भारतीय विमानन क्षेत्र के लिए यह एक चुनौती भी है। ग्राउंड हैंडलिंग जैसी तकनीकी और लॉजिस्टिक सेवाएं उच्च गुणवत्ता और दक्षता की मांग करती हैं, जिसमें अभी भी कुछ विदेशी कंपनियों का प्रभुत्व है। ऐसे में, भारत को अब आत्मनिर्भरता के तहत अपने घरेलू सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षित और सशक्त करना होगा, ताकि ऐसी रिक्तियों को बिना परिचालन व्यवधान के भरा जा सके। चेलेबी मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब विदेशी निवेश के मामले में सतर्कता की नई नीति अपना रहा है, विशेषकर तब जब निवेशक देशों की विदेश नीति भारत के राष्ट्रीय हितों से टकराती हो। यह कदम एक संदेश भी है, राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और इसके समक्ष आर्थिक और व्यापारिक रिश्ते भी गौण हो सकते हैं, हालांकि इस पूरे घटनाक्रम में भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वह अपने देश की कारोबारी विश्वसनीयता को आघात न पहुँचाए। विदेशी निवेशक यह न महसूस करें कि राजनीतिक घटनाओं के चलते नीतियाँ अचानक बदल सकती हैं। इसके लिए आवश्यक है कि सरकार ऐसे मामलों में स्पष्ट दिशा-निर्देश और नीति बनाए, जिससे पारदर्शिता बनी रहे। अंततः यह घटना केवल एक कंपनी के संचालन तक सीमित नहीं, बल्कि यह वैश्वीकरण के युग में राष्ट्रवाद, सुरक्षा और संप्रभुता के बीच संतुलन साधने की भारत की रणनीतिक क्षमता का प्रतीक है। यदि इस संतुलन को बुद्धिमत्ता और दूरदृष्टि से साधा जाए, तो यह भविष्य में भारत के लिए एक नई सुरक्षा-संवेदनशील आर्थिक नीति की आधारशिला सिद्ध हो सकती है।