भारत के सैन्य दृष्टिकोण में आया बदलाव महत्वपूर्ण
देवानंद सिंह
पहलगाम हमले के बाद जिस तरह भारत ने पाकिस्तान को प्रतिक्रिया दी है, वह पूरी दुनिया में सुर्खियों में है, क्योंकि भारत के प्रतिशोध में इस बार फर्क यह है कि भारत की प्रतिक्रिया अब केवल राजनीतिक निंदा या कूटनीतिक दबाव तक सीमित नहीं है। पहलगाम में आतंकियों ने जिस तरह 26 निर्दोष पर्यटकों को मारा, उसके बाद भारत द्वारा की गई सैन्य कार्रवाई न केवल पाकिस्तान के लिए सीधी चुनौती है, बल्कि एक स्पष्ट रणनीतिक बदलाव की घोषणा भी है, क्योंकि इस बार प्रतिशोध व्यापक है।
1990 के दशक से लेकर 2008 तक भारत ने आतंकवादी हमलों के जवाब में संयम और कूटनीति को प्राथमिकता दी। 2001 का संसद हमला हो या 2008 का मुंबई हमला, दोनों ही मामलों में भारत ने युद्ध की राह न चुनते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के माध्यम से पाकिस्तान को घेरने की रणनीति अपनाई। यह नीति उस समय उपयुक्त प्रतीत होती थी, जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी छवि निर्माण कर रहा था, किंतु इस रक्षात्मक कूटनीति का प्रतिकूल परिणाम यह रहा कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों को भारत को बार-बार निशाना बनाने की अप्रत्यक्ष छूट मिलती रही।
भारत की नीति में वास्तविक बदलाव 2016 में उरी हमले के बाद हुआ। ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के माध्यम से भारत ने पहली बार नियंत्रण रेखा के पार जाकर आतंकी शिविरों को नष्ट किया। 2019 में पुलवामा हमले के बाद ‘बालाकोट एयरस्ट्राइक’ ने भारत के सैन्य दृष्टिकोण को और भी स्पष्ट किया, लेकिन अब भारत ‘एक्शन फर्स्ट’ रणनीति अपनाने को तैयार है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ इस रणनीतिक विकासक्रम की तीसरी और अब तक की सबसे साहसी कड़ी है। पहली बार भारत ने पाकिस्तान के अंदरूनी भूभाग, यानी उसके तथाकथित हार्टलैंड यानि पंजाब प्रांत में लक्ष्य साधा। यह केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक रणनीतिक वक्तव्य भी था, यानि हम जहां चाहें, वहीं प्रहार करेंगे।
भारत की इस नई नीति को विशेषज्ञ अमेरिका और इज़राइल की नीति से जोड़ते हैं, जहां सुरक्षा के खतरे को पहचानते ही प्रत्यक्ष सैन्य प्रतिक्रिया दी जाती है। भारत का संदेश अब स्पष्ट है कि हम अब हमलों का इंतजार नहीं करेंगे, हम कार्रवाई करेंगे। इस नीति के अंतर्गत भारत अब सुरक्षा परिषद की मंजूरी या वैश्विक समर्थन की प्रतीक्षा नहीं करता। वह अपने खुफिया सूत्रों पर भरोसा करता है और सभी विकल्प खुले रखता है, इससे दुश्मनों के मन में आशंका बनी रहती है और यही ‘डिटरेंस’ का असली मकसद होता है।
भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं। दशकों से यह तर्क दिया जाता रहा है कि ‘पारस्परिक रूप से सुनिश्चित विनाश’ की नीति किसी भी युद्ध की संभावना को रोकती है, किंतु भारत का हालिया व्यवहार इस सिद्धांत की सीमाएं उजागर करता है। भारत अब मानता है कि आतंकी हमलों का जवाब रोकने के लिए परमाणु अस्त्रों का डर अप्रासंगिक हो चुका है। जब तक पाकिस्तान पूर्ण युद्ध छेड़ने की स्थिति में नहीं है, वह परमाणु विकल्प का सहारा नहीं लेगा। इसके पीछे एक वास्तविकता भी है कि भारत की सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक क्षमता पाकिस्तान से कहीं अधिक सशक्त है।
एसआईपीआरआई (2024) की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के पास लगभग समान परमाणु वॉरहेड हैं। भारत के पास 172, और पाकिस्तान के पास 170 परमाणु वॉरहेड हैं, किंतु भारत की सैन्य संरचना, रडार प्रणाली, मिसाइल डिफेंस, और उपग्रह नेटवर्क पाकिस्तान से कहीं अधिक परिष्कृत है। पिछले एक दशक में भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को बेहद मजबूती से स्थापित किया है। चाहे वह G20 की अध्यक्षता हो, क्वाड की सक्रियता हो या अफ्रीका और मध्य एशिया में रणनीतिक निवेश हो, अब भारत न केवल एक उभरती अर्थव्यवस्था है, बल्कि एक विश्वसनीय सुरक्षा भागीदार भी है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अमेरिका, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भारत से संयम बरतने की अपील जरूर की, किंतु किसी ने इस कार्रवाई की खुलकर आलोचना नहीं की। इसका स्पष्ट संदेश है कि विश्व अब भारत को आत्मरक्षा में कार्रवाई करने वाले राष्ट्र के रूप में स्वीकार कर रहा है, न कि एक उग्र विस्तारवादी शक्ति के रूप में। भारत अब केवल चेतावनी देने वाला राष्ट्र नहीं रहा, बल्कि प्रतिक्रिया करके उदाहरण प्रस्तुत करने वाला राष्ट्र बन चुका है। इस नीति को ‘डिटरेंस बाय डूइंग’ कहा जा रहा है। इसका मतलब यह है कि अगर, आप भारत पर हमला करते हैं, तो उसकी प्रतिक्रिया केवल बयानबाजी नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई होगी।
एक समय था, जब भारत किसी भी सैन्य प्रतिक्रिया से पहले संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका या अन्य मित्र राष्ट्रों की प्रतिक्रिया का आकलन करता था, परंतु अब भारत ने अपनी कूटनीति में आत्मनिर्भरता को स्थान दिया है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कोई आपात प्रस्ताव नहीं रखा, न ही अमेरिका से कार्रवाई के लिए हरी झंडी मांगी। इसके विपरीत, उसने खुफिया जानकारी के आधार पर कार्रवाई की, और फिर सार्वजनिक रूप से उसकी जिम्मेदारी भी ली। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ सिर्फ एक सैन्य प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक नई रणनीतिक चेतना का उद्घोष है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर, आप हमारे नागरिकों को निशाना बनाएंगे, तो हम आपकी रणनीतिक गहराइयों तक पहुंच जाएंगे। यह नीति केवल भारत के सैन्य ढांचे में बदलाव नहीं दर्शाती, बल्कि उसकी वैश्विक भूमिका को भी पुनर्परिभाषित करती है। भारत अब एक ऐसा राष्ट्र बन चुका है, जो संवेदनशील तो है, लेकिन विवश नहीं। सजग तो है, किंतु निष्क्रिय नहीं है।
यही सबसे बड़ा प्रश्न है कि क्या यह आक्रामक प्रतिरोध नीति भारत की स्थायी रणनीति बन पाएगी? और क्या भारत इसे केवल पाकिस्तान तक सीमित रखेगा, या अन्य शत्रुत्वपूर्ण स्थितियों में भी लागू करेगा? इसका उत्तर भविष्य देगा, परंतु, फिलहाल इतना निश्चित है कि भारत अब ‘शिकायतकर्ता’ नहीं, ‘निर्णयकर्ता’ की भूमिका में है। और यह भूमिका न केवल उसके हितों की रक्षा करती है, बल्कि वैश्विक सुरक्षा संतुलन को भी नई दिशा देती है।
भारत की नीति का यह परिवर्तन केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कार्यवाही में परिलक्षित हो रहा है। यह एक स्पष्ट संदेश है कि अब भारत केवल इंतजार नहीं करेगा, बल्कि अब वह नेतृत्व करेगा।