भारत-पाकिस्तान तनाव पर चीन की प्रतिक्रिया का स्वार्थी कनेक्शन
देवानंद सिंह
पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भारत के हमलों के बाद पूरी दुनिया इस घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है। भारत ने जिस साहस के साथ पाकिस्तान को करारा जबाव दिया है, उससे पाकिस्तान डरा सहमा है, लेकिन दुनिया को उस बात का संशय बना है कि दोनों देश परमाणु संपन्न हैं, कहीं हालात और तनावपूर्ण नौ हो जाए।
इस परिस्थिति ने न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक समीकरणों को पुनर्संयोजित करने का काम किया है। इस टकराव पर दुनिया के कई देशों की प्रतिक्रिया सामने आई, परंतु चीन की प्रतिक्रिया विशेष महत्व रखती है, क्योंकि न केवल उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण, बल्कि इस क्षेत्र में उसके आर्थिक, सामरिक और रणनीतिक हितों के कारण भी महत्व रखती है। चीन ने इस स्थिति पर प्रतिक्रिया देते हुए पारंपरिक रूप से दोनों देशों से संयम बरतने और तनावपूर्ण कदमों से परहेज़ करने की अपील की है। यह बयान, हालांकि सतही रूप से तटस्थ दिखता है, किंतु इसके पीछे चीन की गहराई से जुड़ी रणनीतिक सोच और आर्थिक निवेश छिपे हैं।
दरअसल, चीन लंबे समय से दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति को संतुलनकारी बनाए रखने की नीति अपनाता रहा है। वह एक ओर पाकिस्तान का घनिष्ठ मित्र और संरक्षक है, वहीं दूसरी ओर भारत के साथ भी वह एक जटिल, लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण आर्थिक संबंध बनाए रखने की कोशिश करता रहा है।
विश्लेषक मानते हैं कि चीन किसी भी हाल में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध नहीं चाहेगा, क्योंकि इससे न केवल उसके आर्थिक हितों को झटका लगेगा, बल्कि मध्य एशिया में उसके भौगोलिक और भूराजनीतिक विस्तार की योजनाएं भी बाधित हो जाएंगी। अमेरिका के साथ पहले से ही चल रहे टैरिफ युद्ध के चलते चीन नहीं चाहेगा कि भारत के साथ भी कोई नया मोर्चा खुले। चीन की पाकिस्तान में उपस्थिति केवल रणनीतिक नहीं बल्कि गहरे आर्थिक हितों से भी संचालित है। 2005 से 2024 के बीच चीन ने पाकिस्तान में करीब 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है, जिसमें ‘चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ (सीपेक) और ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) प्रमुख हैं। सीपेक का मार्ग पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, एक ऐसा विवादास्पद क्षेत्र जिसे भारत अपना अभिन्न हिस्सा मानता है।
इस लिहाज से भारत का किसी भी रूप में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सैन्य दखल चीन के लिए गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह न केवल क्षेत्रीय अस्थिरता को जन्म देता है, बल्कि चीन की बहु-अरब डॉलर की परियोजनाओं को भी ख़तरे में डालता है। यही कारण है कि चीन का सार्वजनिक बयान भले ही शांतिपूर्ण प्रतीत हो, पर इसकी अंतर्धारा अस्थिरता के विरुद्ध और निवेश की सुरक्षा के पक्ष में है।
विश्लेषकों के अनुसार शिनजियांग से लेकर ग्वादर तक चीन का सामरिक गलियारा तभी प्रभावी हो सकता है, जब क्षेत्र में स्थायित्व और सुरक्षा बनी रहे। उनका मानना है कि यदि सीपेक या BRI की परियोजनाएं पूरी होने के बाद भी पाकिस्तान में राजनीतिक या आतंकवादी अस्थिरता बनी रही, तो इनका आर्थिक लाभ चीन को नहीं मिल पाएगा, इसलिए चीन चाहता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति बनी रहे, चाहे वह केवल सतही क्यों न हो।
बता दें कि 2024 में चीन और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 23.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें से अधिकांश निर्यात चीन का था। इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, सेमीकंडक्टर, स्मार्टफोन, भारी मशीनरी और इस्पात जैसे क्षेत्रों में चीन ने पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर निर्यात किया। चीन के लिए पाकिस्तान एक बाज़ार है, एक मार्ग है, और एक रणनीतिक मोहरा भी है। ऐसी स्थिति में चीन किसी प्रकार की अस्थिरता का जोखिम नहीं उठा सकता, परंतु चीन केवल पाकिस्तान पर ही निर्भर नहीं है। भारत, एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक, उसके लिए न केवल व्यापारिक साझेदार है बल्कि प्रतिस्पर्धी भी है। चीन जानता है कि भारत के साथ यदि तनाव बहुत अधिक बढ़ता है, तो उसे न केवल राजनीतिक मोर्चे पर बल्कि आर्थिक और वैश्विक स्तर पर भी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसलिए उसका यह रवैया कि वह दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील करता है, वास्तव में एक रणनीतिक तटस्थता है—जिसके मूल में स्वार्थ छिपा है, न्याय नहीं।
यह सही है कि चीन ने पाकिस्तान को आधुनिक हथियारों से लैस किया है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, पाकिस्तान के हथियारों के आयात का 81 प्रतिशत चीन से आता है। PL-15 और SD-10 जैसी बीवीआर मिसाइलों से लेकर आधुनिक रडार और युद्धक विमानों तक, चीन ने पाकिस्तान को हर प्रकार की सैन्य तकनीक दी है। दोनों देश संयुक्त सैन्य अभ्यास भी करते हैं।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि चीन भारत के खिलाफ किसी युद्ध में पाकिस्तान का खुला समर्थन करेगा। इतिहास साक्षी है कि चाहे 1965 हो, 1971 या कारगिल युद्धा, चीन ने कभी भारत के खिलाफ सीधे मोर्चा नहीं खोला। इसका कारण यही है कि चीन का दृष्टिकोण मूलतः व्यावसायिक और स्वार्थ-केन्द्रित है। वह युद्ध नहीं चाहता, न पाकिस्तान के लिए और न भारत के ख़िलाफ़। वह केवल इतना चाहता है कि क्षेत्र में उसका वर्चस्व बना रहे और आर्थिक परियोजनाओं को कोई खतरा न हो।
चीन अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है, विशेषकर जब बात आतंकी संगठनों के विरुद्ध कार्रवाई या एफएटीएफ जैसी संस्थाओं की हो। कई मौकों पर चीन ने मसूद अज़हर जैसे आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘ग्लोबल टेररिस्ट’ घोषित किए जाने पर वीटो का प्रयोग किया। यह चीन की रणनीति का ही हिस्सा है कि वह पाकिस्तान की मदद करता है, ताकि वहां अपनी जड़ें और गहरी कर सके, परंतु भारत से अपने व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्ते भी बिगाड़ना नहीं चाहता।
इस दोहरी नीति के पीछे चीन की वैश्विक स्थिति भी है। अमेरिका के साथ चल रहे तनावों, यूरोप में व्यापारिक अवरोधों और घरेलू आर्थिक सुस्ती ने चीन को विवश कर दिया है कि वह दक्षिण एशिया में एक नया संकट न पैदा होने दे। चीन अब धीरे-धीरे सॉफ्ट पावर की ओर झुकाव दिखा रहा है, और वह जानता है कि भारत जैसे देश के साथ खुला टकराव उसकी वैश्विक छवि को भी क्षति पहुंचा सकता है।
ग्वादर पोर्ट, जो चीन के लिए मध्य एशिया और खाड़ी के देशों तक पहुंचने का प्रमुख समुद्री द्वार है, अभी भी सुरक्षा और सामाजिक असंतोष के संकट से घिरा है। बलूचिस्तान में चीनी नागरिकों और परियोजनाओं पर बार-बार हमले हुए हैं, जिससे चीन की चिंता बढ़ती जा रही है। चीन यह जानता है कि यदि पाकिस्तान में अस्थिरता बढ़ती है या भारत के साथ युद्ध जैसी स्थिति बनती है, तो न केवल उसके निवेश डूब सकते हैं, बल्कि भविष्य में पाकिस्तान एक असफल राज्य की ओर भी बढ़ सकता है, जिसका सीधा असर चीन की दीर्घकालीन योजनाओं पर पड़ेगा।
कुल मिलाकर, भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच चीन की भूमिका को केवल तटस्थ कहकर छोड़ा नहीं जा सकता। उसका हर कदम सुविचारित, स्वार्थ-नियंत्रित और दीर्घकालिक रणनीतिक योजनाओं से प्रेरित होता है। चीन भारत को न तो नाराज़ करना चाहता है और न ही पाकिस्तान को खोना। वह एक ऐसा संतुलन साधना चाहता है, जिसमें न तो युद्ध हो और न ही उसके हितों पर आंच आए। भारत को भी इस नीति को समझना होगा और अपने कूटनीतिक प्रयासों को इस प्रकार ढालना होगा कि वह चीन को वैश्विक मंचों पर अधिक जवाबदेह बना सके। पाकिस्तान और चीन की घनिष्ठता भारत के लिए चिंता का विषय अवश्य है, लेकिन यह संबंध भी अनेक सीमाओं और विवशताओं से बंधा है। चीन की चिंता उसकी परियोजनाएं हैं, न पाकिस्तान की प्रभुसत्ता और न ही उसकी सेना की ताकत। भारत को इस स्थिति का आकलन व्यापक दृष्टिकोण से करना होगा, जिसमें भू-राजनीति, कूटनीति और अर्थव्यवस्था तीनों तत्वों को साथ लेकर रणनीति गढ़नी होगी।