व्यापारिक मोर्चे पर झटके से और टूटेगा पाकिस्तान
देवानंद सिंह
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के बाद भारत ने भले ही अभी सैन्य कार्रवाई नहीं की हो, लेकिन व्यापारिक मोर्चे पर भारत का एक्शन लगातार जारी है। पानी रोकने के बाद भारत ने पाकिस्तान के व्यापारिक रास्ते भी बंद कर दिए हैं।
हालांकि, भारत सरकार ने हमले के बाद त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान के साथ सभी तरह के व्यापारिक संबंधों को पूर्णतः समाप्त करने का निर्णय लिया। इस क्रम में, विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने 2 मई को नोटिफिकेशन जारी करते हुए पाकिस्तान से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सभी आयातों पर अगली सूचना तक रोक लगा दी। यह एक सख्त और प्रतीकात्मक फैसला था, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले कुछ वर्षों में व्यापारिक लेन-देन नगण्य स्तर पर आ गया था। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 के बीच भारत ने पाकिस्तान से केवल 4.2 लाख डॉलर का आयात किया, जबकि इसी अवधि में पिछले वर्ष यह आंकड़ा 28.6 लाख डॉलर था। निर्यात की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। भारत का पाकिस्तान को निर्यात इस अवधि में घटकर मात्र 447.65 मिलियन डॉलर पर सिमट गया, जबकि पिछले वर्ष यह 1.1 अरब डॉलर था।
व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय मुख्यतः प्रतीकात्मक है। भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार 2019 में पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान से आयात पर 200% टैरिफ लगाया गया था, जिसके बाद व्यापार पहले ही लगभग समाप्त प्राय था। अब इसे पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। इसका आर्थिक प्रभाव सीमित है, क्योंकि पाकिस्तान से आयात मुख्यतः सेंधा नमक, कुछ फल, कॉटन व तांबे तक सीमित था।
भारत ने समुद्री परिवहन के मोर्चे पर भी पाकिस्तान को एक बड़ा झटका दिया है। डायरेक्टरेट जनरल ऑफ शिपिंग ने मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958 की धारा 411 के तहत आदेश जारी कर कहा कि अब पाकिस्तान का झंडा लगाए किसी भी जहाज को भारतीय बंदरगाहों में प्रवेश नहीं मिलेगा और भारत के झंडे वाले जहाज पाकिस्तान के बंदरगाह नहीं जाएंगे। यह निर्णय भारत-पाकिस्तान के सीमित समुद्री व्यापार को भी पूरी तरह रोक देता है। वैसे भी भारत और पाकिस्तान के बीच समुद्री व्यापार ऐतिहासिक रूप से सीमित और प्रतीकात्मक रहा है, और सुरक्षा चिंताओं के कारण व्यापारिक जहाज दोनों देशों के बंदरगाहों से अक्सर दूरी बनाकर रखते रहे हैं।
भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सबसे कठोर कूटनीतिक कदम के रूप में 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला किया है। विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी इस संधि को अब तक दोनों देशों ने अधिकांश तनावों के बावजूद निभाया था। यह संधि रावी, सतलुज और ब्यास जैसी नदियों का नियंत्रण भारत को देती है, जबकि सिंध, झेलम और चिनाब का बहाव पाकिस्तान को।
भारत का कहना है कि संधि को निलंबित कर वह पाकिस्तान को यह संदेश देना चाहता है कि आतंक और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते। हालांकि, विशेषज्ञ इस कदम को दीर्घकालीन रणनीति के तहत देख रहे हैं। भारत तकनीकी तौर पर अपने जल संसाधनों के प्रयोग की प्रक्रिया को तेज़ कर सकता है जिससे पाकिस्तान को मिलने वाले जल की मात्रा प्रभावित हो सकती है। भारत ने पाकिस्तान से आने वाले विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया है और अटारी एकीकृत चेक पोस्ट को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है। इसके साथ ही सार्क वीजा छूट योजना (SVES) के अंतर्गत पाकिस्तान के नागरिक अब भारत की यात्रा नहीं कर पाएंगे।
जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान ने भी भारत की एयरलाइनों के लिए अपना एयरस्पेस बंद कर दिया है और वाघा सीमा को बंद कर दिया है। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान ने भारत को दिए गए सभी सार्क वीज़ा रद्द कर दिए हैं, हालांकि सिख तीर्थयात्रियों को इससे छूट दी गई है। भारत-पाकिस्तान संबंधों में यह नया दौर 2016 के उरी हमले, 2019 के पुलवामा आतंकी घटना और बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसी घटनाओं की श्रृंखला का नवीनतम अध्याय प्रतीत होता है। हर बार भारत की ओर से कूटनीतिक, व्यापारिक और सुरक्षात्मक स्तरों पर कठोर प्रतिक्रिया दी गई है।
भारत की नीति अब जीरो टॉलरेंस पर आधारित दिख रही है, जिसमें पाकिस्तान को वैश्विक मंचों पर अलग-थलग करना भी एक अहम रणनीति है। भारत संयुक्त राष्ट्र, जी-20, और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद समर्थक देश के रूप में चित्रित करने का प्रयास कर रहा है। पाकिस्तान की स्थिति एक ओर आर्थिक संकट और बढ़ती महंगाई से जूझ रही है, वहीं दूसरी ओर कूटनीतिक मोर्चे पर भी उसे चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत के साथ संबंधों की यह तल्ख़ी उसे न केवल क्षेत्रीय सहयोग से वंचित कर सकती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए भी उसकी छवि को नुकसान पहुंचा सकती है।
भारत और पाकिस्तान के बीच बार-बार होने वाली ये झड़पें यह दर्शाती हैं कि जब तक दोनों देशों के बीच आतंकवाद, कश्मीर और विश्वास बहाली जैसे मूल प्रश्नों पर संवाद नहीं होता, तब तक स्थायी शांति की उम्मीद बेमानी होगी। हालिया घटनाओं ने क्षेत्रीय स्थिरता पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया है। सार्क जैसी दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय साझेदारी की पहलें इन तनावों के चलते वर्षों से निष्क्रिय हैं। ऊर्जा, जल, वाणिज्य और सांस्कृतिक सहयोग जैसे क्षेत्र एक बार फिर राजनीति की भेंट चढ़ रहे हैं। कुल मिलाकर, भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए हालिया कदम, चाहे वह व्यापारिक हों, कूटनीतिक हों या जल एवं परिवहन संबंधी, स्पष्ट रूप से यह दर्शाते हैं कि भारत अब आतंकवाद के प्रति नीतिगत असहिष्णुता का रुख अपना चुका है। इन निर्णयों का तात्कालिक प्रभाव भले ही सीमित हो, लेकिन इनका गहरा संकेत यह है कि भारत अब प्रतीकात्मक कदमों से आगे बढ़कर संरचनात्मक और रणनीतिक उपायों के माध्यम से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की नीति पर काम कर रहा है। इस पूरे परिप्रेक्ष्य में सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या भारत और पाकिस्तान इन कटु प्रसंगों से आगे निकलकर किसी स्थायी समाधान की दिशा में बढ़ सकेंगे? या फिर यह संबंध यूं ही घटनाओं की प्रतिक्रियाओं के हवाले बने रहेंगे? फिलहाल तो संवाद की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आती, और दोनों देश टकराव की राह पर अग्रसर हैं।