देवानंद सिंह
झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में बांग्लादेशी घुसपैठ की गंभीरता अब सिर्फ आशंका का विषय नहीं रही, बल्कि एक सुसंगठित और योजनाबद्ध गतिविधि के रूप में सामने आई है। सब्सिडियरी इंटेलिजेंस ब्यूरो (SIB) द्वारा गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट इस आशंका की पुष्टि करती है कि पिछले एक दशक में बहरागोड़ा से रंगामाटी तक फैली 150 किलोमीटर लंबी पट्टी में लगभग 45 हजार बांग्लादेशी घुसपैठिए बस चुके हैं। यह न केवल राज्य की जनसांख्यिकी को बदलने की कोशिश है, बल्कि आंतरिक सुरक्षा, संसाधनों की न्यायोचितता और सामाजिक संतुलन पर एक गंभीर संकट का संकेत भी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, ये घुसपैठिए पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश से आकर झारखंड में बस रहे हैं। वे सीएनटी (छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम) की जमीन पर अवैध रूप से एग्रीमेंट कर खरीदारी कर लेते हैं, जो मूलतः आदिवासियों और स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा के लिए सुरक्षित रखी गई है। सबसे गंभीर बात यह है कि इनके पास एक सक्रिय सिंडिकेट है, जो सरकारी तंत्र से मिलीभगत कर न केवल पहचान पत्र बनवाने में मदद करता है, बल्कि उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ भी दिलवाता है।
यह सिंडिकेट सिर्फ एक अवैध दस्तावेज़ निर्माण की फैक्ट्री नहीं, बल्कि एक पूरी ‘व्यवस्था’ है, जो बांग्लादेशी घुसपैठियों को स्थानीय नागरिकों की तरह स्थापित करने में मदद कर रहा है। मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज इनके लिए पासपोर्ट के समान काम कर रहे हैं, जो इनकी उपस्थिति को वैध और स्थायी बनाने की दिशा में पहला कदम है। इस तरह की घुसपैठ केवल कानूनी समस्या नहीं, बल्कि राज्य की आंतरिक सुरक्षा, सांप्रदायिक संतुलन और सामाजिक संसाधनों के वितरण पर सीधा प्रभाव डालती है। हालांकि, DGP अजय कुमार सिंह ने 66 अधिकारियों को घुसपैठियों के सत्यापन और उनकी निगरानी का निर्देश दिया है, पर सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई पर्याप्त और समयोचित है? सच तो यदि है कि प्रशासनिक ढांचे की निष्क्रियता और राजनीतिक संरक्षण की संभावनाओं ने इस समस्या को विकराल बना दिया है।
सामाजिक दृष्टि से भी इस घुसपैठ का व्यापक प्रभाव है। स्थानीय रोजगार, सरकारी सुविधाएं, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे सीमित संसाधनों पर पहले से ही दबाव है। जब बाहरी नागरिक इन संसाधनों में हिस्सेदार बन जाते हैं, तो इससे मूल निवासियों में असंतोष पनपता है, जो सामाजिक अशांति को जन्म दे सकता है। इसके अलावा, राजनीतिक दलों द्वारा इन घुसपैठियों को संभावित ‘वोट बैंक’ के रूप में देखे जाने की संभावना ने भी इनकी उपस्थिति को पोषित किया है। राज्य में पहले से ही मादक पदार्थों की तस्करी एक चुनौती बनी हुई है, और रिपोर्ट के अनुसार, घुसपैठिए भी इस अवैध धंधे से जुड़ते जा रहे हैं। भाजपा नेता देवेंद्र सिंह का यह आरोप कि बांग्लादेशी व रोहिंग्या घुसपैठिए नशे के व्यापार में संलिप्त हैं, जो प्रशासन के लिए एक गंभीर चेतावनी है। नशीले पदार्थों का अवैध कारोबार केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी के भविष्य और सामाजिक संरचना को खोखला करने वाला तत्व है।
इस पूरे घटनाक्रम की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि स्थानीय प्रशासन को पिछले कई वर्षों से इस घुसपैठ की जानकारी थी, लेकिन किसी स्तर पर सक्रिय कार्रवाई नहीं की गई। क्या यह महज लापरवाही है या जानबूझकर अनदेखी? यह भी सवाल है कि क्या कुछ राजनीतिक तत्व इन घुसपैठियों की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश कर रहे हैं? स्थिति को नियंत्रित करने के लिए राज्य सरकार को सिर्फ कागजी कार्रवाइयों से आगे बढ़ना होगा। सत्यापन प्रक्रिया को पारदर्शी और तकनीकी रूप से मजबूत बनाना आवश्यक है। पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रिया को आधार व फिजिकल वेरिफिकेशन के साथ जोड़ा जाना चाहिए। सीएनटी एक्ट की भूमि की बिक्री पर निगरानी और कड़ाई जरूरी है, ताकि झारखंड की आदिवासी संरचना से कोई छेड़छाड़ न हो।
केंद्र और राज्य को मिलकर एक संयुक्त अभियान चलाना चाहिए, जिसमें गृह मंत्रालय, सीमा सुरक्षा बल, राज्य पुलिस और खुफिया एजेंसियां समन्वय के साथ काम करें। इसके साथ-साथ स्थानीय समाज को भी सतर्क किया जाना चाहिए, ताकि वे अवैध बसावट की पहचान कर प्रशासन को सूचित करें। कुल मिलाकर, बहरागोड़ा से रंगामाटी तक बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती संख्या केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि झारखंड की आंतरिक सुरक्षा, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर खतरा है। इस संकट से निपटने के लिए त्वरित, प्रभावी और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है। यदि, समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या राज्य और राष्ट्र दोनों के लिए असहनीय बोझ बन सकती है।